कविता : ” तलाशती निगाहें “

5 years ago
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कवि – त्र्यम्बक राव साटकर “अम्बर”

जरा सा झाँक लीजिए,
कोविड में गिरफ्त,
उस अपने को,
जो आपका अपना है ।
दूर से,दूरभाष से ही सही,
पूछ लीजिए उसे,
तत्काल में,
यही उसका सपना है ।
आँखें निहारती द्वार ।
छत घूरती बारम्बार ।
दीवार फाँदती निगाहें,
तलाशती अपनों की आहट ।
मुरझाया सा चेहरा,
बेचैन दिल की छटपटाहट ।
ढाढस की अपेक्षा लिए,
मचलती सी पुकार है ।
उबार लो मुझे कोई,
यही उसकी गुहार है ।
आओ सँवार लें हम,
फिर अपनों की जिंदगी ।
बिलखता ना छोड़ें,
उबार लें उनकी जिंदगी ।

कवि संपर्क- 94792 67087

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