गीत, सागर का निमंत्रण – सरोज तोमर
सागर का निमंत्रण
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कूल मुझको रोकता है ,डूबने का भय दिखाकर ,
और फेनिल धार ,सागर का निमंत्रण दे रही है ।
बिन बुलाए ही कहीं मेरे चरण उठते नहीं हैं ।
और संबोधन किसी के ,प्राण से मिटते नहीं हैं ।
नेह की वादी में तुमने गान मेरे गा लिए क्यों?
मेरे सरगम से मधुर ,उन्माद स्वर घटते नहीं हैं।
ले रहा सूरज विदा,कल ऊगने की बात कहकर,
लौट कर फिर जल्द आना ,सांझ यह प्रण ले रही है।
चार दिन आंगन में ठहरे थे ,हठीले फागुनी-दिन ,
लुट गए मधुमास की बातें बयारें रोती गिन-गिन
अब शिकायत कर रहा अलि,टेसुओं की डाल से,
किस तरह अनुराग के मैं,भूल जाऊं मधुर पल-छिन?
रूठ क्यों बैठी परी,मौसम का सुरभित जाम पीकर?
सारिका अमराई की तरुणाई अर्पण दे रही है ।
हैं बहुत वीरान से दिन,जो निगाहों में खटकते
गीत किसको खोजने ,अनजान राहों में भटकते?
जाने क्यों पहुनाई मुझसे चाहता रितुराज है यह,
हर कुसुम आकाश के क्यों,मेरे आँचल में सिमटते?
जाने किसको आ गई है ,पूजने को सांझ सज कर,
मंदिरों के हर कसश को ,वह आमंत्रण दे रही है ।।
कवयित्री संपर्क- 94255 55022