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कविता महज़ ये वायरस नहीं – गोविंद पाल

5 years ago
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महज ये वायरस नहीं

कब तक भागते फिरोगे

अपने आप से,

प्रेम की संक्रमण को छोड़

बहुत आगे निकल आये हो

लिहाजा कोरोना की

संक्रमण के दौर में पंहुच गये हो,

तुम्हारे अंतर्कलह के

निर्वाध कलूष की स्याह

विस्तार लेता हुआ

पृथ्वी के अक्स की चारो ओर

घुमता हुआ मृत्यु के तांडव बन

तुम्हारी ओर निरंतर बढ़ रहा है,

वुहान से निकाला हुआ

महज ये वायरस नहीं

लाखों वर्षों से दबे हुए

तुम्हारे लिप्सा का संक्रमण

तुम्हारे समक्ष लंबी जीभ बनकर तैयार है

ये भूख तुम्हारी पैदा की हुई भूख है

प्रतिद्वंद्विता की भूख है

हर हाल में जीतना चाहते हो

पर जीत की विभीषिका तुम्हें

समूल विनाश तक ले जाने को

तैयार खड़ी है,

अब भागो ! कितना भागोगे

अपनों से और खुद से

कहाँ तक भाग सकते हो!

पत्तियों की हल्की सी सरसराहट से

अब कांपने लगे हो

कभी झुरमुटों के अंदर सर छिपाने की

कोशिश कर रहे हो

कभी सुतुर्मुर्ग की तरह रेत के अंदर

मुंडी गड़ाये बैठे हो

चांद, मंगल तक पंहुचकर

ब्रह्माण्ड जीतने की खुशी से

अपने ही आशियाने में आग लगाकर

उपलब्धियों की फेहरिस्त गिना रहे हो

रिश्तों के संवेदनाओं की पेड़ों को

अगर प्रेम की पानी से सींचे होते

तो आज ये विष वृक्ष पैदा न होता

और न ही ये जहरीले फल मिलता,

शाश्वत सत्य की तेज से बचने के लिए

एक झूठ की दिवार खड़ी करके

कब तक बचा जा सकता है !

संपर्क पता – 203/बी, न्यू रूआबांधा सेक्टर, दुर्ग

संपर्क मोबाइल नम्बर – 7587168903

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