बेटी -निधि सिन्हा
क्यों कभी निर्भया
तो कभी मनीषा
होती हैं बलात्कार का शिकार
क्यों हवस पर शिकंजा नहीं,
क्यों दुःशासन पर होता नहीं प्रहार.
क्यों दब जाती लाशें नेताओं की आड़ में
क्यों आते नहीं आरोपी कानून कि लताड़ में
दोष दिया जाता है उसे ही
की वो बदजलन थी
दे दिया जाता है उसके चरित्र को प्रमाण
क्या यही भारत देखा था सपनों का
क्या यही है नए भारत का निर्माण
जहाँ ना बेटी माँ की कोख़ में सुरक्षित है
ना घर में ना रोड़ पे
जहां बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ
लिखा है हर मोड़ पर
लूट रही है आबरु दिनदहाड़े सारे राह
और जल रही है बेटियां (लाशें) आधी रात को
दबी रही 15 रोज़ लूटी आबरू कटी जुबान की,
जहाँ सुर्खियां बना रखा था छज्जा टूटने की बात को
अब क्यों बंद है सबके मुख (ज़ुबान) इसलिये ना
क्योंकि वो एक ग़रीब की बेटी है
जाने क्यों इतना सन्नाटा है
अब बेटियों को उठाना होगा शस्त्र
और गुनहगार को देना होगा सजा-ए-मौत
सरेआम
कवयित्री संपर्क –
78030 74991