गज़ल

4 years ago
1893

बेहद सहमा सा है आदमी आजकल
-डॉ. प्रभा शर्मा ‘सागर’

बेहद सहमा सा है आदमी आजकल
कोरोना की जानलेवा घड़ी आजकल

याद परदेश में घर की जब आ गई ,
बे वतन सी लगी हर खुशी आजकल ।

कतरा – कतरा हुई है सदी आजकल,
मौत सस्ती हुई है बडी आजकल ।

आंसुओं से भी अब प्यास बुझती नहीं,
बढ़ गई इस कदर तिश्न्गी आजकल ।

जिस्म लगता है सूखा हुआ इक शजर,
उम्र लगती है सूखी नदी आजकल ।

शहर पे छा गया मौत का जब धुआँ,
सूनी- सूनी लगी हर गली आजकल ।

दर्द ने पाँव में बेडियाँ डाल दी ,
याद में आ गई कुछ कमी आजकल ।

वक़्त के साथ चेहरे बदलते रहे ,
क्या से क्या हो गया आदमी आजकल ।

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97699 79435

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