गज़ल
4 years ago
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बेहद सहमा सा है आदमी आजकल
-डॉ. प्रभा शर्मा ‘सागर’
बेहद सहमा सा है आदमी आजकल
कोरोना की जानलेवा घड़ी आजकल
याद परदेश में घर की जब आ गई ,
बे वतन सी लगी हर खुशी आजकल ।
कतरा – कतरा हुई है सदी आजकल,
मौत सस्ती हुई है बडी आजकल ।
आंसुओं से भी अब प्यास बुझती नहीं,
बढ़ गई इस कदर तिश्न्गी आजकल ।
जिस्म लगता है सूखा हुआ इक शजर,
उम्र लगती है सूखी नदी आजकल ।
शहर पे छा गया मौत का जब धुआँ,
सूनी- सूनी लगी हर गली आजकल ।
दर्द ने पाँव में बेडियाँ डाल दी ,
याद में आ गई कुछ कमी आजकल ।
वक़्त के साथ चेहरे बदलते रहे ,
क्या से क्या हो गया आदमी आजकल ।
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