ग़ज़ल

5 years ago
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यादें-मेहबूब तस्वीर लिए बैठी हूँ
मोहब्बत की जागीर लिए बैठी हूँ

-कविता बिष्ट
देहरादून, उत्तराखंड

यादें मेहबूब तस्वीर लिए बैठी हूँ
मोहब्बत की जागीर लिए बैठी हूँ

सुध-बुध खोने लगी प्रिये-याद में
दर्दे-दिल की मैं पीर लिए बैठी हूँ

अक़्सर खोने लगती हूँ ख्वाबों में
प्रिये तुम्हारी नजीर लिए बैठी हूँ

प्रिय के साथ बंधी मैं अटूट बंधन
मैं इश्क़ की जंजीर लिए बैठी हूँ

व्याकुल मीन तड़पे जैसे नीर बिन
पिया इंतज़ार-ए-तीर लिए बैठी हूँ

हाले-ए-जिगर बयाँ किया कविता
एहसास-ए-तासीर लिए मैं बैठी हूँ

 

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