कविता
अक्षय पात्र
-रमेश कुमार सोनी
बसना-छत्तीसगढ़
1
असहमति –
जाने कैसे स्वीकार कर लेते हैं लोग
अश्लील दॄश्य , फूहड़ गाने
बजबजाते नाले
सड़कों की बुझी बत्तियाँ
एसिड अटैक , घरेलू हिंसा और
रिश्वत का बाजार ….।
आदमी जब कुछ नहीं करना चाहता
तब इसे अपनी नियति मानकर
अपनी पीठ दिखा देता है
जबकि कुछ जुझारु लोग
थाम लेते हैं झण्डा
अस्वीकृति का और
चीख पड़ते हैं – बंद , हड़ताल
इन दिनों लोगों को
इन समस्याओं के साथ
चैन से जीना सीखा दिया गया है ।
अपने काम से मतलब रखो
मानो आदमी अब
आदमी नहीं रह गया हो उसने
गले मे लटका रखी है
एक तख्ती
जिस पर लिखा है –
मुझे क्या करना है ?
मेरा क्या जाता है ?
ऐसा सोचते हुए
मोहल्ले के साथ
उसका मकान भी जल जाता है और
गाँव के साथ उसका घर भी बिक जाता है ।
…… ……
2
अक्षय पात्र
किसी बीज की तरह
प्यार भी उगता है और
हरिया जाता है
जीवन सारा ।
महकने लगते हैं
प्यार के वन ,
बहने लगते हैं
गीतों का सरगम
लोग सुनने लगते हैं
प्यार के किस्से बड़े प्यार से
छुप – छुपाकर ।
प्यार के साथ ही उग आते हैं
खरपतवार जैसे
काँटो का जिस्म लिए लोग
कुल्हाड़ी और आरे जैसी इच्छाएँ
प्यार का शोर फैल जाता है
अफवाहों और कानाफूसी की दुनिया में
मारो – काटो
जला दो , जिंदा चुनवा दो
जैसे शब्द हरे हो जाते हैं
प्यार का खून चूसने ।
प्यार फिर ठूँठ बना दिए जाते हैं ,
बीज बनने से पहले
कुतर गए लोग इसका फल
प्यार को भी अब
रेड डाटा बुक में रखना होगा ,
कैसे कह सकोगे तुम
मेरे प्यार के बाद भी
बचेगा तुम्हारे संसार के लिए
थोड़ा सा प्यार ,
लोग भूल जाते हैं कि –
प्यार का अक्षय पात्र दिलों में होता है
सदा से धड़कता हुआ सुर्ख युवा ।
….. ……
कवि संपर्क-
70493 55476