कहानी
क्वारंटाईन
-डॉ. नलिनी श्रीवास्तव
स्टेडियम में रोज लल्ला बास्केट बाल खेलने जाता है वहाँ से जल्दी ही लौट आया। क्या बात है लल्ला आज इतने जल्दी कैसे? दादी क्या बताऊँ आज मेरे दोस्तों का मन खेलने में नहीं लग रहा था, क्योंकि अनिल के दादाजी सत्यप्रकाश अंकल की डेथ हो गई है, अरे वही ना वे तो अभी अभी कुछ दिन पहले ही अमेरिका से आए हैं । हाँ दादी उन्हें कुछ तकलीफ थी । इसलिए उन्हें क्वारंटाईन में एम्स हास्पिटल ले गए है, वहाँ उन्हें बहुत घबराहट होने लगी थी ना किसी से मिलना जुलना, नजरबंद जैसे हालात उनकी हो गई थी कल वहाँ से सूचना मिली कि उनका हार्टफेल हो गया । हम बच्चों के साथ वे भी आकर बैठते थे।
सच है बेटा किसी के जाने के बाद सचमुच बहुत खराब लगता है। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे ।…..
कैसी हो ? कितना अधिक अपनेपन व आत्मीयता से ये कौन बोल रहा है? कमरे की खिड़की दरवाजा सभी बंद है अकेले पलंग में लेटी हूँ। ए.सी चल रही है। उसकी ठंडक से कुछ तो राहत मिल रही है, पर ये आवाज किसकी है ?
स्वयंप्रभा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था । अतः वह कमरे में ही उठकर टहलने लगी अचानक ड्रेसिंग टेबल के पास खड़ी हो गई। अपनी ही प्रतिच्छाया को देख सोचने लगी क्या ये मैं ही हूँ । कितना अधिक बदल गई हूँ कि स्वयं को पहचान नहीं पा रही हूँ।……
प्याज की परत दर परत जैसे अतीत की तलहटी में मन ना जाने किसे खोजने में तल्लीन है? स्वयंप्रभा अपनी आलमारी खोलती है। उसमें पुराना एलबम रखा हुआ था। उस जमाने में संध्या के समय घूमने अवश्य निकल जाते साथ में हमारी दो साल की बिटिया रश्मि रहती । कितना हँसती खिलखिलाती रहती । अचानक फेरीवाले को देख चश्मा लेने के लिए मचल उठी । वह फेरीवाला रंग-बिरंगे फुग्गे भी रखा था, पर उसे चष्मा ही लेना था । वह रोने लगी अतः उसे चश्मा ही खरीद कर दे दिए । सच ही कहा गया है बालहठ से बड़ा कुछ भी नहीं है । चश्मा पाकर रश्मि बिटिया बहुत खुश हो गई मानो उसे कोई अनमोल खजाना मिल गया । हम लोग बाजार में घूम रहे थे कि अचानक एक स्टुडियो की दुकान दिखा । चलो एक तस्वीर ले लेते है।……
एलबम भी पुराना हो गया है । तस्वीर का कागज भी पीला हो गया है, पर उस तस्वीर में हम कितने प्रफुल्लित नजर आ रहे है मन की शांति भी स्पष्ट नजर आ रही थी । घंटों उस तस्वीर को देखती रही । ………
समय कैसे बदल जाता है। आज आइना में स्वयं को पहचान नहीं पा रही थी। सच ही किसी ने कहा है। हम क्या थे, क्या हो गए, ना जाने अब क्या होंगे। बुढ़ापे की दहलीज, शरीर की शिथिलता, बीमारी की दस्तक से परेशानी बढ़ती चली जा रही है ।………
कमरे में अकेले करवटें बदलती हुई दीवाल को देखने लगी । छिपकली अपने खाने के लिए उड़ते हुए पतंगा को पकड़ने की कोशिश में कितना धीरे-धीरे चल रही है, पास पहुँचते ही उस पतंगा को दबोच लेती है । पतंगा भी कम नहीं था, अपना बचाव करने के लिए इधर उधर अपने पंख को हिलाते हुए उड़ने की कोशिश में सफल हो जाता है, पर प्रतिशोध की भावना से वह पतंगा बार-बार उस छिपकली के आस पास ही मंडराने लगता है। छिपकली भी कम कम नहीं थी, वह चुपचाप मौके के तलाश में थी। अचानक छिपकली ने उस पतंगा को मुँह में दबोच लेती है और देखते ही देखते धीरे-धीरे उस पतंगा को निगल जाती है। कितना आत्म निर्भर रहते हैं ये सभी जीव जन्तु, सिर्फ मनुष्य को छोड़कर । मनुष्य को बचपन से बुढ़ापे तक किसी न किसी के आश्रय की जरूरत होती ही रहती है।…….
रूमाल से पसीना पोंछते हुए आशुतोष अंदर आता है मम्मी अपने कम्प्यूटर के लिए पेपर मंगाया था। मैने ए-4 साईज का एक पैकेट पेपर ला दिया हूँ। स्वयंप्रभा पेपर का पैकेट देखते ही खुश हो गई, बुढ़ापे में छोटी-छोटी जरूरतों की पूर्ति हो जाने पर कितना अधिक आत्म शांति मिलती है….
तभी मेरी चार साल की पोती मिल्की बेबी “कोरोना कोरोना” डरना नहीं, उसे डराना है दादी आप बिलकुल नहीं डरना मैं उस कोरोना को बैग में भरकर डस्टबीन में डाल दूँगी।
यह सुन स्वयंप्रभा मुस्कुरा उठी । 80 के गरीब पहुँच गई हूँ पर रोज ही एक से एक नये बीमारी के बारे में सुनती रहती हूँ…… एक हमारी दादी थी, जो 91 वर्ष की हो गई थी पर बड़े शान से कहती मुझे आज तक कोई इंजेक्शन नहीं लगा न ही कोई गोली खाई हूँ। एकादशी के दिन नहा धोकर रामायण पढ़ रही थी। जब हमारी अम्मा उनके लिए फलाहार बनाकर लायी तो देखती है दादी अधलेटी सी पड़ी थी। तुरंत डाक्टर को बुलाया गया। उन्होंने बतलाया कि एक घंटा पहले ही इनका प्राणपखेरू उड़ गया हैं….।
काम वाली बाई उस दिन कुछ ज्यादा ही देर से आई। बहुरानी ने उसे डॉटकर कहा आज तुझे क्या हो गया था। जानती है आज साहब बिना टिफिन लिए ऑफिस चले गए । तुझे इतना अधिक रूपया इसीलिए देते हैं कि तू रोज टाईम से आती है। समझी… झल्लाकर बाई कहती है मेरी बात तो सुन लो बहुरानी! कल रात भर बिजली बंद थी। रात भर सो नहीं सकी। सुबह सुबह नींद पड़ गई तो देर से उठी इसी कारण देर हो गई …..। ठीक है अब काम जल्द ही खत्म कर।
बड़बड़ाती हुई बाई कहने लगी फ्रिज, मिक्सी, कूलर सब कुछ तो घर में ही है, पर क्या करें अभी तक वाशिंग मशीन नहीं खरीद पाए हैं । इसीलिए देर हो जाती है । कपड़ा तो रोज ही बच्चों का निकल जाता है उसे धोने में समय भी लगता है।
स्वयंप्रभा सोचने लगी। सभी के जीवन शैली का स्तर कितना अधिक बढ़ गया है? भारतीयों ने सचमुच अच्छा प्रगति कर लिया है। विदेशों की चकाचौंध ने अधिकांश युवा पीढ़ी को कितना अधिक प्रभावित कर लिया है, उसी के रंग में डूब जाना चाहते है। फिर भी भारतीय संस्कृति धीरे-धीरे लुप्त नहीं हो रही है, कारण यही है कि कुछ ऐसे भी लोग है जो विदेशी लाग लपेट में नहीं आए है इसीलिए हमारी संस्कृति बची हुई है।
ईरान, रोम, मिश्र सब जहाँ से मिट गए!
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
आज आठ महीने से वैश्विक महामारी कोरोना की चर्चा सब जगह हो रही है, फिर भी भारतीय डर नहीं रहे है, धैर्य से उसका सामना कर रहे है । विषम से विषम परिस्थिति में भारतीय सदैव एक साथ खड़े होते हैं, यही उसकी सबसे बड़ी शक्ति होती है। इसी कारण जीत सदैव भारतीयों के कदम चूमती है।
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