ख़ाली कविता -आलोक शर्मा

4 years ago
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वह अंतर्मुखी था
भरे दिलवाला
मगर आंखों में खालीपन था
सब बोल- बोलकर
दुनिया कमा रहे थे
बोलते समय वह शब्द को
सजाता नहीं था चेहरे पर

उसे अच्छी लगती थी कविता
मगर कविता अब खाली नहीं थी
दिलभरे लोगों के लिए

कविता को अब भाता नहीं था
दिल का कोना, एकांत,
शब्द क्लांत !

कविता तो खेल चाहने लगी थी
खूब सारे लोग,
खूब तालियां, खूब तारीफ

अंतर्मुखी तुम्हारे लिए कविता मरेगी क्यों
तुम खुद ही काटो अपनी अंतर्दशा

महफ़िल चाहिए अब कविता को
कविता कहलाने के लिए

या तो अब महफ़िल खरीद लो
या किसी महफ़िल में खुद बिक जाओ!

कवि संपर्क-
99932 40084

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