तीन लघु कथा
विक्रम ‘अपना’
नंदिनी-अहिवारा,छत्तीसगढ़
1.यमराज
माँ ये दुनियाँ क्या भगवान ने बनाई है?
हँसकर माँ ने कहा हाँ बेटे।
क्या वही सबको जीवन देता है? माँ ने उसे पुचकारते हुए कहा हाँ मेरे लाल।
तो क्या वही मारता भी है?
अब पिंजरे में बंद ब्रायलर मुर्गी सहमकर अपने बेटे से बोली।
श…………श…। चुप हो जा। सामने यमराज खड़ा है।
अभी-अभी झोला लेकर आये ग्राहक की ओर इशारा करते हुए मुर्गी बोली।
2.पगली
सब उसे पगली बुढ़िया कहते थे।
हाँ!!! वह पागल ही तो थी।
भाई-भाई को लड़ते देखकर वह रो रही थी।
वृद्धाश्रम में बूढ़े माँ-बाप को देखकर वह विलाप करती रहती।
सभ्यता की नग्नता पर रुआंसी हो उठती।
लोगों को संग्रह करते देखकर उसका मन मायूस हो जाता।
वह भूखी थी।
वह प्यासी थी।
पर किसी से कुछ नहीं मांगती थी।
एक दिन वह हँस रही थी जब घर के सभी सदस्यों ने एक साथ बैठकर भोजन किया।
वह खुश थी, जब बच्चों ने बुजुर्गों के चरणामृत का पान किया।
वह तब बहुत खुश हुई जब रहमान ने राम से कहा- भाई आप कैसे हो?
और जब नन्हे राम ने अपने जन्मदिवस पर एक नन्हा पौधा लगाया तो वह पगली नाच उठी।
वह पगली और कोई नहीं बूढ़ी धरती थी।
3.तुम मुझे नहीं जानते ?मैं कौन हूँ
वह अतिकाय दुष्ट मानव, सबको इसी तरह धमकाकर पैसे, संपत्ति और किसी भी भोजनालय में पेट भर कर भोजन करता और बदले में लाल आँखे दिखाकर कहता तुम मुझे नहीं जानते? मैं कौन हूँ?
समय बीता। अब वह बेहद बूढ़ा हो चुका था। उसके अंग- प्रत्यंग शिथिल हो गए थे। एक दिन चलते-चलते वह दिशा भ्रमित होकर नए शहर में पंहुच गया। कई दिनों के भूखे-प्यासे बूढ़े पर कुछ लोगों ने दया करके उसे भोजन कराया और उसका नाम पता पूछा ताकि उसे उसके घर पंहुचा सकें। उसकी याददाश्त चली गई थी।
वह बोला- “मैं नहीं जानता मैं कौन हूँ”?