कहानी
मुआवजा
-संतोष झांझी
भिलाई-छत्तीसगढ़
वह चुपचाप बेटी का हाथ पकडे़, पाँव घसीटते सीढीयां उतर रही थी। कुछ देर बीच की सीढी पर ठहर गई. चेहरे पर छलक आया पसीना या आँखोँ मे छलक आये आँसू पोछनें के लिये साड़ी के छोर को मुँह पर कुछ देर के लिये फिराया, लंबी साँस ली। रोली मिचमिचाती आँखो से उसके चेहरे पर नजर गड़ाये थी. ठीक से नजर नही आता उसे. कंपकंपाती उंगलियों से माँ का चेहरा टटोला. बस टटोलकर महसूस किया. बोल और सुन तो वह पाती नही . बस आँखे डबडबा आई माँ को दुखी जानकर।
“विकलांग वेलफेयर” में शादियां हो रही थी। लोग अपने विकलांग रिश्तेदारों को लेकर आये थे। मालती के मन में भी बेटी के ब्याह की एक उम्मीद जाग उठी।मालकिन से पचास रूपये उधार मांगकर, तीन तीन बसें बदलकर, धक्के खाती वह रोली को लेकर वहां पहुंची थी।. वहां वह सभी को बताती रही उसकी बेटी जन्म के दो महीनें तक एकदम ठीक थी पर भाग्य खराब, बच्ची को लेकर मायके से आई, बस से उतरी देखा पूरे शहर मे भगदड़ कोहराम मचा है। घर पहुंची पूरा मोहल्ला सूना,…खुले दरवाजे… कोई नही था… उसका गला सूख रहा था..खाँसी आनें लगी… सांस घुटनें लगी.. वह बेहोश हो गई…. बच्ची हाथ से छिटक कर दूर जा गिरी…..
तीन दिन बाद कुछ सोचने समझने लायक हुई. पर उठने चलने फिरनें लायक नही….आँखोँ पर मोटी पट्टी बँधी थी… महीनों बाद खोज खबर मिली. मिलिन्द और मेरा बेटा दीपू मुहल्ले के बाकी लोगों के साथ घर छोड़कर भागे। थे. अस्पतालों में ढूंढा, पुछवाया, कुछ खबर नहीं मिली. मुहल्ले के बहुत से लोग लापता थे।
महीनों मालती अस्पताल में रही। कयी महीनों बाद उसकी बच्ची उसे सौंपी गई। डाक्टरों ने साफ साफ कहा–गैस प्रभावित क्षेत्र में बहुत देर तक पड़ी रही। अब यह जिन्दगी भर ऐसी ही रहेगी। उसकी आवाज और कान तो गए ही आँखे भी धुंधला गई. पाँव और हाथ कँपकँपाते रहते हैं। मालती भी उसके बाद ठीक से पाँव उठाकर चल नहीं पाती ।पाँव घसीटकर चलती है।
विकलांग वेलफेयर में रोली का नाम लिखवाया तो मुन्शी मुंह ताकने लगा.–तूं यहां काहे आ गई? इसका क्या करेगा कोई? सारे अंग तो डैमेज हैं इसके ?
पास बैठी औरत हँसने लगी। पता नही धीरे से मुन्शी को क्या कहा दोनो का ठहाका उसे बाहर गेट तक सुनाई देता रहा। बहुत रोई गिड़गिड़ाई– पच्चीस बरस की हुई रही है बिटिया. बड़ी किरपा होयंगी साहब। इसका भी जोड़ा बनाए दो सरकार।
जवाब मिला—केवल गूंगी बहरी होती तो भी बात बन जाती आँखों से भी गई ये तो। हाथ पाँव भी कांपते है तो घर का काम भी…..अच्छा जे बताओ.. मुआवजा का पैसा इसके नाम जमा है…..
मुआवजा ,? पैसा ?
हाँ मिला होगा न पैसा ? मुआवजा …गैस का..?
न..न सरकार हमैं तो एक्को पैसा नहीं मिलो.”
अब पैसा भी नही ? अरे कम से कम ऊ पैसा की वजह से ही कोई ब्याह लेतो। अब तो तूं ही करेगी जिनगी भर इसकी सेवा जतन।’
राह भर मुआवजा शब्द दिमाग मे हथौड़ा सा बजता रहा। सुना था लोगों को पैसा मिला है। मालती ने भी पूछताछ की थी।कुछ दिन इधर उधर भटकी भी फिर थककर बैठ गई। पूछताछ और भटकने के लिये भी तो पैसा चाहिये होता है। अपाहिज बेटी को लेकर भटकना जितनी बड़ी परेशानी है उतना ही उसे कहीं अकेली छोडकर जाना.अपाहिज होते हुए भी है तो वह एक औरत ही। उसकी हरपल रखवाली करनी पडती है। मुहल्ले के नाई, धोबी,रिक्शे, ठेलेवाले से लेकर स्कूल कालेज के लड़कों तक की रोली पर पड़ती भूखी नजरें वह देख चुकी है।लड़की को अपनें कपड़ो तक की सुध नही रहती। जहां तहां से बदन उघड़ा रहता है।रंग नाक नक्श अच्छे हैं न भी अच्छे होते तो भी क्या फर्क फड़ता है इन लोगो को ? उनके लिये तो एक औरत होना ही काफी है।
अगर मुआवजा मिल जाता तो भी क्या फर्क पड़ता,?रोली का पैसा ले लेते रोली फिर सड़क पर….. वह सोचती भगवान ने जब पूरे अंग बेकार कर दिये तो उसका यह औरतपन भी क्यों नही मिटा दिया ?वह भी मिटा देता तो इतनी पहरेदारी तो नही करनी पड़ती।
छाती के उभार तक भरपूर एक स्वस्थ लड़की जैसे हैं। हर महीने उसकी महवारी पर नजर रखनी पड़ती है।कुछ ऊँच नीच हो गई तो ?न यह आपराधी पहचान पायेगी न कुछ बता पायेगी उपर से गैस पीड़ित की औलाद भी अपाहिज ही होगी। एक को ही संभालकर हलकान है तो उपर से एक और…..
उसने सिर झटका, ओफ क्या क्या सोचने लगी ,आज अगर मेरे साथ मिलिंद और मेरा बेटा दीपू होता तो….अभी तक बाल बच्चेदार होता मेरा बेटा….. जिन्दा होते तो लौटते दोनों…पता नहीं.. सालों साल राह देखी, मुहल्ले का पहचान का कोई एकाध ही लौटा। वह भी कुछ नही बता पाया उन दोनों के बारे में।
कुछ महीनें माँ के पास गाँव मे रही। माँ भी तो परायेबस। भाभी हमेशा मुँह फुलाये रहती।टूटा शरीर और मन लेकर घर का काम भी करती और खेती मे भी कमाती फिर भी कौई खुश नहीं था। भतीजे भतीजियाँ रोली को चिढाते मारते, वह रोती रहती,पर किसी ने उन्हेँ नहीं रोका। भाई भाभी उदासीन बने रहे। मां चुपचाप आँसू बहाती रहती। वह फिर वहीं लौट आई।
उसी खोली को झाड़ा बुहारा. दो चार घरों में बर्तन भाँडा करनें लगी। सब मेमसाब अच्छी हैं. हमदर्दी भी रखती हैं। बस रोली को साथ लानें में उन्हें उलझन होती है। वह रोली को अंदर नहीं लाती, सीढिय़ों पर या बगीचे मे बैठा देती है. दिन में घरों से जो मिलजाता है वही खाकर मां बेटी रह जाती है। बस कभी कभार रात को पकाती हैं।
मेहता मेमसाहब तो कितनी बार कह चुकी है हमारे घर के आऊट हाउस में आकर रहो। आज घर में पार्टी है। मालती को आज यहीं ठहरना होगा। दिनभर विकलांग वैलफेयर मे जाकर वह तन से अधिक मन से थक गई है।
फुर्ती से वह रसोई का काम निपटानें लगी। ड्राइंगरूम में खूब हंसी मजाक शोरगुल हो रहा था। अचानक ऐसा लगा जैसे कोई क्रोध मे चीख रहा हो फिर गालियों की आवाजें आनें लगी।
–मैं क्या सारा शहर जानता है, तुम क्या हो तुम्हारी औकात क्या है….मेरा मुंह मत खुलवाओ …. ,, मिस्टर पांडे चीख रहे थे।
—मुंह संभालकर बात करो समझे…तुम क्या हो यह भी सब जानते हैं।। मिस्टर मेहता चिल्लाये
–क्या कहा ? मुँह संभालकर ? दो पैसे जेब में आगये तो इतना गुरूर ?कल तक तो घर में भूंजी भाँग भी नही थी….
महिलाएं बीच बचाव करनें पहुंची—- मजाक को इतना सीरियसली क्यों ले रहे हैं पाँडे साहब ? मिसेज मेहता बोली
—मजाक ? इसनें कोई मजाक में नहीं कहा। बहुत घमंड चढा है तुम लोगों को पैसे का। अरे हम लोग तो पैदाइसी रहीस हैं तुम लोगो ने देखा है नया नया पैसा ,इसीलिये……
देख पांडे, तूं मेरे घर में है इसलिये मैं लिहाज कर रहा हूँ। मेरे घर की पार्टी खराब मत करो। जाओ यहाँ से निकलो…..
–,यार तुम लोग दो पैग मारकर सारा माहौल ही खराब कर देते हो।
— यह पैग का नशा नहीँ। हराम का पैसा बोल रहा है पैसा…. इस मेहता के ससुर जबलपुर से आकर होटल में ठहरे थे।अपनी बेटी का रिश्ता करने परिवार सहित आये थे। बिल्ली. के भागों छीका टूटा, गैस रिसाव हो गया. यहाँ के लोगोँ को चाहे कुछ न मिला हो… पर इसके ससुर ने… पूरे परिवार के पन्द्रह लोगों के नाम सरकार से मुआवजा वसूल लिया। साले चोर लखपति बन बैठे…..
–ऐ पाँडे… झगड़ा मत बढाओ
एक ने टोका.
—अरे आगे सुनो… हम गवाह हैं इस घटिया कमाई के। इस मेहता के ससुर ने इसे भी मालामाल किया, खुद भी मालामाल हो गये। साला..टुच्चा..
— बड़ी बड़ी मत हाँक….खुद तूनें अपने नौकर के परिवारके आठ लोगोँ के नाम से पैसा खाया है। साला चोर…..
,–अरे मैनै उनका कुछ तो भला किया था पर तूं तो अपनें ड्राइवर के परिवार के नाम का पूरा पैसा खा गया। अब और सुनो अभी विकलांग माँ बेटी को भी इसनें इसीलिये रखा हुआ है ……
धक्का. मुक्की,उठा पटक, गाली गलौच, प्लेटे गिलास टूटनें पटकनें की आवाजों से पूरी कोठी गूंज उठी.
मालती बेटी के साथ रसोई के बाहर बरामदे में दुबक गई । किसी के गिरनें की आवाज आई।औरतें बड़बड़ा रही थी।
–ये पांडे और मेहता किसी दिन मुसीबत खडी़ कर देंगे।
हाँ. दोनों पीकर आउट होजाते है और एक दूसरे के कच्चे चीट्ठे खोलते रहते हैं।
दुनियाभर की बकवास कर अब दोनो ढेर हो गये। मिसेज चोपड़ा मुंह बनाकर बोली फिर अपने पति से कहा—आईंदा इसतरह की ड्रिंक पार्टी मे हम नही आयेंगे। किसीदिन कोई ऊंच नीच हो गई तो….
मालती रसोई के बाहर अंधेरे मे बेटी के साथ दुबकी रही। एक एक कर सारे मेहमान चले गये. मेहता साहब कालीन पर लुढके पड़े रहे. पाँडे को पाँडे की मिसेज अपने ड्राइवर की मदद से उठाकर ले गई।
रोली खाना खाकर सो चुकी थी ।रात के दो बजे थे दिनभर की थकी माँदी मालती भी वहीं अपनी साड़ी से मुंह लपेटकर लेट गई पर नींद कोसों दूर थी. सोच रही थी कौन है वह अंग्रेजी साहब जो गैस से इतनें लोगोँ को मरा अधमरा छोड़कर मुंह छुपाकर किसी दूर देश मे छुप गया।
वो विलायती साहब तो दूसरे देस का है पराया है पर हमारे अपने देस के लोग तो उससे भी बड़े चोर हैं। अपने ही देस के गरीबों का पैसा खा गये।
पैसा अगर मिल भी जाता तो क्या भला होजाता मेरा या मेरी बेटी का ? क्या पैसा मेरे मिलिन्द और दीपू की कमी पूरी कर पाता ?
खूब देखा आज पैसे का तमाशा…छी… खाने दो ..और खाकर लड़ने मरनें दो। परायों का क्या ?अपनें तो उनसे अधिक धोखेबाज हैं। उसनें करवट बदली ।तीन घंटे बाद सुबह हो जाएगी वह फिर से अपनें काम पर लग जाएगी रोज की तरह….
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