नव गीत- डॉ. मीता अग्रवाल ‘मधुर’, रायपुर-छत्तीसगढ़
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झुरमुट छनती
अरुण किरण धरणी
खिली कमलिनी
तरन ताल तरणी।
आभा दमके,
खुशियाँ शहनाई
दुख का अंबर
मेघ बरन छाई
आस निराशा
मानो हो तरुणी
झुरमुट—
पवन झकोरे
डोले रे नैया
पास बुलाती
लोरी गा मैया
थपकी देती
भोली वो घरनी
झुरमुट—
बसंत आया
लाया संदेशा
कोयल कूके
जन मन चित हरषा
महके अम्बर
पुलकित अवनी
झुरमुट—
खिली पंखुडी
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खिली पंखुडी ही
धूल मिली है
नई तरूणाई
खिली खिली हैं
मधुर राग वाणी
मिसरी घोले
घाव सदा गहरे
अंतस खोले
ताल साधना सुर
प्रीत घुली हैं
धवल चाँदनी शुभ्र
निखरी निखरी
झरी ओस बूँदें
मानो झख री
मंद मंद झोंके
निशा धुली हैं ।
घर भेदी सारे
बात छुपाते
नैनो की भाषा
कुछ समझाते
मौन अधर फड़के
बात सिली हैं ।
कवयित्री संपर्क-
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