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रोमांचक संस्मरण- वीरेन्द्र पटनायक

4 years ago
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कवर्धा जिले में खोजा गया नया झरना

प्रकृति को माँ का दर्जा दिया जाता है। इस कारण यह हर प्राणी जीव का ख्याल रखती है। प्यासे को पानी देती है, गर्मी में शीतलता प्रदान करती है, नदी-नाले, सागर, कीट-पतंग, फूल सरीसृप, पौधे-वृक्ष, जमीन-अंबर, यह सब श्रृष्टि प्रकृति का है ।
ईश्वर का हम मानव पर एक ऐसा आशीर्वाद है एक ऐसी अनुभूति प्रदान की गई है जिसे हम केवल कल्पना से, आभास नहीं कर सकते! उसके यथार्थ को दृष्टि पटल पर अंकित कर ही उसका सही मायने में मनोरंजन लिया जा सकता है। झरना या जलप्रपात सृष्टि का एक नायाब तोहफा है, जिसकी ओर हर जीव दौड़े से चला आता है।
भिलाई इस्पात संयंत्र कर्मी न केवल इस्पात उद्योग में अपना तन मन खपाता है, बल्कि ड्यूटी के पश्चात भी अपने सामाजिक, प्रादेशिक, राष्ट्रीय गतिविधियों के लिए जाने जाते हैं। ऐसे ही अनछुए मनोरम स्थल का खोज मैंने, सारंगढ़ निवासी, भिलाई इस्पात संयंत्र कर्मी द्वय – वीरेन्द्र पटनायक (प्रकृति प्रेमी-छायाकार) व ग्राम-कुथरौद जिला-बलौदाबाजार निवासी श्री ईश्वर पटेल (पक्षी-छायाकार) ने किया है।
हम मित्र द्वय अपनी मानसिक और शारीरिक थकान मिटाने के लिए, प्रकृति प्रेम संतुलन बनाए रखने के लिए छुट्टी के दिन आस-पास के जंगलों की ओर लैण्डस्केप व बर्डिंग फोटोग्राफी के लिए निकल पड़ते हैं।
इस बार का पड़ाव था, कवर्धा जिले के सहसपुर-लोहारा तहसील के रेंगाखार जंगल का, जो कि मैकल पर्वत श्रेणी का एक भाग है।(सहसपुर-लोहारा से रेंगाखार-35 किमी)। अलसुबह 5 बजे भिलाई से नेनो कार में चलकर 7.30 बजे हमने लोहारा में नाश्ता किया और आगे रेंगाखार की सड़क पर चल पड़े। 9 बज चुके थे सोचा कुछ सूखा नाश्ता, नमकीन, बिस्कुट वगैरह रख लिया जाय। गाड़ी बोडला ब्लाक व तहसील के ग्राम-तेलीटोला,पंचायत-बोडला के लोकेश किराना स्टोर्स पर रूकी।
मालिक पेवर राम साहू अपने मित्रों के साथ आसपास के जंगलों, मंदिरों, झरनों, गुफाओं आदि दर्शनीय स्थलो के संबंध में चर्चा कर रहे थे, जिसे हमने ध्यान से सुन लिया। उनसे बातचीत की तो पता चला कि लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ी नाला से बहकर आने वाला पानी कुछ स्थानों पर छोटे-बड़े जलप्रपात श्रेणी का निर्माण करते हुए आगे बहती है। हमने दुकानदार पेवर राम साहू से इस स्थल को दिखाने का अनुरोध किया। पेवर राम साहू ने आवश्यक कार्य में व्यस्त होने के कारण, रास्ते की जानकारी देते हुए तीन लड़कों को हमारे साथ मार्गदर्शक के रूप में भेजा। (धनेश्वर साहू, टीकम साहू और लीला राम साहू)
इस गांव से 2 किलोमीटर आगे बाईं ओर पगडण्डी रास्ता जो जंगल, झरना की ओर गया है। यह जंगल तेलीटोला गांव से लगा होने के कारण “तिलई जंगल” के नाम से जाना जाता है। इस राह में लगभग 200 मीटर की दूरी पर एक स्थानीय नाला बहता है, नाले में 1फीट पानी चलकर पार किया। यह नाला दोनों ओर खुबसूरत पहाड़ियों के बीच से होकर बहती है। इस नाले के किनारे-किनारे चलकर लगभग 3.5 किलोमीटर का बहुत ही सुंदर ट्रैकिंग मार्ग है। मन में उमंग, स्फूर्ति और लक्ष्य का जुनून सवार था।

ग्रेनाइट चट्टानों, पत्थरों को काटते हुए यह जल धारा नीचे बढ़ रही थी और हम प्रकृति पर्यटन प्रेमी छायाकार महुआ, सियाली
कउहा के वृक्ष और जंगली बेलों से बातें करते पानी के विपरीत दिशा में आगे बढ़ रहे थे। कभी धार नाले के किनारे तो कभी पानी में घुसकर दूसरी ओर से रास्ता सुगम करते थे। ग्रेनाइट पत्थर पर लाइकेनाइज्ड फन्ज़ी (डिरीनेरिया, कुल-केलिसिएसी) अपनी अलग आकृति बनाई हुई थी। कैमरा, ट्राइपॉड, पीने का पानी, नमकीन-मीठा के वजन को संभालने के लिए हमने जंगली लकड़ी को डंडा बनाकर सहारा ले लिया था। रास्ता आसान नहीं था पर मौसम मेहरबान था। दाईं ओर से एक छोटा धार यहाँ मिलती है, जिधर हमें नहीं जाना था, यह धानीकुटा गाँव से आती है ।
छोटी-बड़ी पहाड़ी चट्टानें और ऊंचे-ऊंचे घने पेड़ पौधे जो मार्ग अवरोधक का कार्य करती हैं। इस नाले की बहने वाली जलधारा कई छोटे-बड़े जलप्रपात का निर्माण करती है। लगभग ढाई किलो मीटर की दूरी पर है “सामरबुडा़”। सामरबुड़ा एक छोटा सा उथला कुण्ड है, जिसमें गर्मी के दिनों में भी पानी भरा रहता है और इसमें साम्हर डियर(रूसा यूनीकलर) अपने आप को डूबा कर शीतलता का आनंद लेती है, इस कारण ग्रामीण जन इसे सामरबुड़ा के नाम से संबोधित करते हैं।
उचित लैण्डस्केप दृश्य के लिए चट्टान में ट्राइपाॅड खड़े करने में डर लगता था, पर यह मौका हम कैसे चूकते ? कई बार पानी में घुस कर,भीग कर, ट्राइपाॅड खड़ा कर एक्सपोजर लिया।
11:15 हो चुका था और हमें दूर से एक विशाल चट्टान दिख रहा था। सामरबुड़ा के ठीक ऊपर लगभग 4000 वर्ग फीट का एक विशाल चट्टान है, यह बहुत ही चिकना, फिसलन भरा और ढलान युक्त है। यह चिकना होने के कारण इसे “तिलई चट्टान” के रूप में जाना जाता है। किनारे एक छोटा सा बंजारी मंदिर है। हमें उड़िसा के ऐसे ही नृसिंहनाथ झरना की याद आ रही थी। इस चट्टान से होकर 25° के कोण से पानी बहकर बहुत ही आकर्षक झरना बनाती है। यहां पहुंच कर हमें अद्भुत आनंद की अनुभूति हो रही थी। इस चट्टान को बहुत ही कठिनाई पूर्वक पार कर ट्रेकिंग का कठिन मार्ग शुरू होता है, जोकि हर किसी के लिए संभव नहीं है।
जल, जंगल, जीव और जमीन का शास्वत श्रृंगार दर्शन हम कर रहे थे। थकान किस कोने में दुबका था हमें मालूम नहीं, हां रोमांचित और प्रफुल्लित जरूर थे। जहां चाह वहां राह।
सारंगढ़, जिला-रायगढ़ में स्कूल के दिनों में थीपा, खपान, गोमर्डा, बमनदाई पहाड़ की खड़ी चढ़ाई चढ़े थे जो आज प्रेरणा दे रही है। प्रकृति व वन्य प्राणी संरक्षण अभियान के तहत ट्रिप्स एण्ड क्लिक्स संस्था रायपुर के श्री अरुण कुमार भरोस(वन्य प्राणी विशेषज्ञ व अध्यक्ष-छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ सोसायटी) के साथ हमने बर्ड काउण्टिंग, गरियाबंद जिला किया। वाय.एच.ए.आई.,भिलाई के अंतर्गत पिथौरा-बागबिल जलप्रपात (15किमी), सूरजपुर-पवई जलप्रपात(20किमी) का ट्रेकिंग किया। अंतर्राष्ट्रीय दिव्य जीवन संघ, मुख्यालय ॠषिकेश के आजीवन सदस्य होने के नाते भिलाई-शाखा को प्रतिनिधित्व करने कई बार गंगा जी के किनारे, नीलकण्ठ महादेव (25किमी) और अम्बा देवी (17किमी) मंदिर ट्रेक किया। 2018 मे मणिमहेश, हिमाचल (14 किमी, 14000 फीट ऊंची) ट्रैक किया। 2019 में ढोलकाल गणेश, बीजापुर, बस्तर ट्रैक।
दिल में जूनून, जोश और जज्बा लिए हंसते हुए यह संस्मरण सुनाते पटनायक जी ने बताया कि “उमर 55 का और दिल बचपन का” को मैं चरितार्थ कर रहा हूँ। पिछले दिनों कोरोना मुक्ति अभियान और राष्ट्रीय तितली चुनाव के जन जागृति कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। अब तक सारंगढ़ जिला न बन पाने का जहाँ मुझे दुख है वहीं माटी का कर्ज अदा करने के लिए वे सतत् प्रयासरत है। गोमर्डा, बार नवापारा अभयारण्य में चाक-चौबंद चौकसी की अनदेखी के कारण आए दिन साम्हर, चितल की हत्या हो रही है।
साथी पटेल जी का पूरा परिवार पक्षियों के लिए समर्पित है। वे हर वर्ष गरमी में वृहद रूप से सकोरा वितरण करते आ रहे हैं। उनकी भी छायाचित्र प्रदर्शनी भिलाई में आयोजित हो चुकी है।
शारीरिक और मानसिक प्रबल व्यक्ति ही आगे ऊंचाई की ओर जा सकते हैं। यहां से लगभग आधे किलोमीटर की दूरी पर है “तेली-जलप्रपात”। यह जलप्रपात लगभग 25-30 फीट ऊंचा है, इस जलप्रपात के ऊपर किनारों से होकर पहुंचा जाता है। जलधारा दो हिस्सों में विभक्त हो कर दुग्धाभिषेक सा कर रही है। यह जगह नहाने के लिए सुरक्षित है पर यह धृष्टता हमने नहीं की। स्वच्छ निर्मल जल का भरपूर स्वाद लिया। महंगे बिसलरी से कहीं बेहतर है यह। हम जंगल जरूर पार कर रहे थे पर हमारी किस्मत में बंदर और तितलियाँ ही दिखाई दी। तितलियाँ मरे हुए केकड़े का रसास्वादन कर रही थी। अध्ययन से ज्ञात हुआ कि ये कत्थे रंग में सफेद चकता वाली तितली “कमांडर”(मोडूजा प्रोकरिस) और काले रंग में सफेद चकता वाली तितली “व्हाइट एडमिरल”(लिमेनिटिस ग्लोरीफिका) है। चिड़ियों की चहचहाहट जहाँ मनोबल बढ़ा रही थी वहीं ताजा अस्थि अवशेष हममें सजगता लिए हुए थी।
धार के दाईं ओर चट्टान और गोल पत्थर के ऊपर रेंगते हुए पार कर ही रहे थे कि मेरी नज़र पड़ी एक मेंढक पर। पीठ पर पीली सीधी लकीर, त्वचा राना टिग्रिना से अलग, दाईं आंख नीली(अंधी/बीमारी) और बाईं सामान्य काली स्थिर शांत बैठी है। बहुत नजदीक से देखा, कई तस्वीरें खींचे, उसने भरपूर मौका दिया और बाद में अध्ययन किया क्योंकि वहां नेटवर्क नहीं मिला, तो मुझे एसा लगा कि यह एशियन ग्रास फ्रॉग(फिजरवार्या लिम्नोचेरिस) है।
थोड़ा उपर चढ़े तो देखते हैं कि धार चट्टान को छेद कर प्रवाह बनाए हुए है जिसका विहंगम लैण्डस्केप बन रहा था। टीकम साहू ने बताया कि इसे हम लोग “गुफा-प्रपात” कह देते हैं। दो-चार लोग ही यहाँ तक आए हैं और ऊपर कोई नहीं गया। इसके ऊपर हमारा लक्ष्य था जो कठिनतम चढ़ाई थी, घुटनों के बारह बज चुके थे।
एक बजने को थे, भूख-प्यास छछूंदर सा बिल में घुसा था। झरने की कल-कल ध्वनि और पंछियों की कलरव के बीच विलम्बित जुगलबंदी हम शून्य प्रदूषण क्षेत्र में स्पष्ट सुन रहे थे। प्राकृतिक, नैसर्गिक आनंद और कैमरे की स्लो शटर स्पीड एक सुखद सामंजस्य बनाए रखे थे।
गुफा जलप्रपात के ऊपर लगभग आधा किलो मीटर की दूरी पर है प्रमुख और सबसे ऊंचा जलप्रपात “ठाड़ पानी”। यह लगभग 200 फीट ऊंची है और बरसात के दिनों में जब पानी भरपूर मात्रा में नीचे गिरता है तो यह बिल्कुल सीधा गिरता है और छत्तीसगढ़ी भाषा में सीधा का मतलब होता है ठाड़। इसलिए इसे ठाढ़ पानी के नाम से संबोधित कर सकते हैं ,जब पानी कम होने लगता है तो चट्टानों के बीच झरनें के रूप में बहने से इसकी खूबसूरती में चार चाँद लग जाती है। इस जलप्रपात के बाईं ओर 5-6 फीट की छोटी सी गुफा भी है। चढ़ने-उतरने के लिए किसी भी प्रकार की सीढियां नहीं है जो कि एक पर्यटक/ट्रैकर के कार्यकुशलता की परीक्षा है। चट्टानों की काई, नोक आपको दुर्घटनाजन्य कर सकती है। बड़ी-बड़ी चट्टानों और घने जंगल होने के कारण ऊपर तक जा पाना बहुत ही मुश्किल है इसलिए इस जलप्रपात को नीचे से ही देखा जा सकता है। अद्भुत,अद्वितीय रमणीय,स्वच्छ दृश्य था वह जिसे हमने कैमरे के कई कोण बनाकर, लेट कर, दर्द सह कर संजोया। नुकीले और छोटे चट्टान होने की वजह से यहां नहाने का प्रयास बिल्कुल नहीं करना है क्योंकि यदि फिसले तो गुफा-प्रपात में समा सकते हैं। किसी भी प्रकार की गंदगी, झिल्ली, कचरा दिखाई नहीं पड़ा इस अनछुए जलप्रपात के ट्रैक के दरम्यान। हम करीब एक घण्टे यहाँ रहे और दो बजे दोपहर वापस लौटने लगे। थोड़ा नीचे उतर कर क्योंकि यहाँ आरामदायक बैठने की जगह नहीं थी, मिक्चर बिस्कुट खाते दुकानदार जी का शुक्रिया अदा किया। अपने कचरों को वापस समेट लाया। लाइव विडियो नहीं हो पाया क्योंकि नेटवर्क समस्या थी।
ग्रामीणों से चर्चा करने पर बताया कि यदि साल्हेवारा कोयलारझोरी रोड से जाते तो कन्हारी गाँव (बोडला ब्लाक व तहसील) से भले ही केवल ठाई किमी चलना पड़ता लेकिन “ठाड़पानी” को ऊपर से ही देख पाते। जानकारी लेने पर पता चला कि “ठाड़पानी ” पालक नाला का रूपांतरण है।
इस प्रकार के ट्रैक के लिए ग्रामीणजनो से मेल-मिलाप,अध्ययन और विश्वासपात्र बनना जरूरी है। साहू बंधुओं ने बताया कि साहू आबादी की अधिकता के कारण इस गांव का नाम “तेलीटोला” पड़ा। जनसंख्या करीब- 600। हम लोग यदा-कदा ही तेली-प्रपात तक आते हैं, क्योंकि इस जंगल में हिंसक पशु ( चिता) देखा गया है। “ठाड़पानी” की हिम्मत कोई नहीं करता और आप लोग प्रथम व्यक्तियों में हैं जो इसकी छायाकारी कर प्रचार-प्रसार करेंगे।
हमने उन्हें विश्वस्त किया और समझाया कि “ग्राम विकास पर्यटन समिति” बनाइये और कुछ लोग इसमें गाइड की सशुल्क सेवा दीजिये। जैसा कि हमने ढोलकल गणेश, बीजापुर, बस्तर में करवाया है। इससे पर्यटन पर्यावरण के साथ-साथ कुछ लोगों को रोजगार मिलेगा और आपका “ठाड़पानी” प्रकृति का एक अनमोल खजाना बना रहेगा।
5 बज चुके थे, हमने तीनों पथ-प्रदर्शक बंधुओं को उचित स्नेहाशीष सम्मान निधी भेंट की और फिर जल्दी मिलेंगे कह कर हमने अलविदा लिया।
सारंगढ़ से दूरी- 290 किमी (कसडोल, बलौदाबाजार, बेमेतरा, थानखमरिया, लोहारा)
भिलाई से दूरी-106 किमी (भिलाई से धमधा- 38, धमधा से लोहारा-54, लोहारा से तेलीटोला-14,)
भ्रमण काल-जुलाई से जनवरी तक

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