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कविता, हो सकता है एक दिन- प्रकाश चंद्र मंडल

4 years ago
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हो सकता है एक दिन

इस हिंसा की दुनिया से
हो सकता है एक दिन मैं चला जाऊं
पर मैं हर एक पत्थर पर
लिख कर जाऊंगा मेरी कविता।
जो लोग देश में क्रान्ती की बात करते है
मैं उनका कोई भी नहीं हूं
जो लोग विध्वंस की बात करते हैं
मैं उनके साथ में भी नहीं हूं
उनके पात में भी नहीं हूं
लेकिन मैं हर एक पन्नों पर
शान्ति की कविता लिखकर जाऊंगा।
देश को जो लोग अपने तेज नाखुनों से
चिथड़े- चिथड़े कर रहे हैं
उनके शरीर में लगा हुआ रक्त
सियार और कुत्ते चाट-चाट कर खा रहें हैं
ऐसे विध्वंस और बर्बरता के बदले
मैं रखकर जाऊंगा ढेरों कविताएं
पृथ्वी के सोपान में
हो सकता है एक दिन।

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