MP के इस जिले तक कैसे पहुंची भारतीय संविधान की मूल प्रति, राजेंद्र-नेहरू-आंबेडकर सहित 284 सदस्यों के हैं हस्ताक्षर
26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान को आत्मसात किया गया था. जिसके बाद भारत एक लोकतांत्रिक, संप्रभु और गणतंत्र देश कहलाया. लेकिन इससे पहले 26 नवंबर 1949 को देश के लिए एक सर्वश्रेष्ठ संविधान तैयार किया गया था. यूं तो संविधान के बारे में हम सबने पढ़ा-सुना है, लेकिन कभी भी इसके मूल प्रति को नहीं देखा है. सात दशक पहले तैयार हुए संविधान की मूल प्रति आज भी मध्य प्रदेश के ग्वालियर में मौजूद है. शहर की शान में संविधान की मूल प्रति ने चार चांद लगाए हुए हैं, जिसके दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से शहर पहुंचते हैं.
भारतीय संविधान तो हमारी संसद का हिस्सा है, लेकिन ग्वालियर के लिए बड़े गौरव की बात है कि इस संविधान का ग्वालियर से भी एक भावनात्मक रिश्ता है. इसकी एक मूल प्रति आज भी यहां सुरक्षित रखी हुई है.
ग्वालियर में सुरक्षित है संविधान की एक मूल प्रति
ग्वालियर में हृदयस्थल महाराज बाड़ा पर स्थित केंद्रीय पुस्तकालय में आज भी भारतीय संविधान की एक मूल दुर्लभ प्रति सुरक्षित और संरक्षित करके रखी हुई है, जिसे हर वर्ष संविधान दिवस पर आम लोगों को दिखाने की व्यवस्था की जाती है. अब यह पुस्तकालय डिजिटल हो चुका है. लिहाजा इसकी डिजिटल कॉपी भी देखने को मिलती है. हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग अपने संविधान की इस मूल प्रति को देखने ग्वालियर पहुंचते हैं.
1927 में सिंधिया शासकों द्वारा निर्मित कराये गये इस केंद्रीय पुस्तकालय की स्थापना कराई गयी थी तब यह यह मोती महल में स्थापित किया गया था. तब इसका नाम आलीजा बहादुर लाइब्रेरी था. कालांतर में इसे महाराज बाड़ा स्थित एक भव्य स्वतंत्र भवन में स्थानांतरित कर दिया गया. स्वतंत्रता के पश्चात् इसका नाम संभागीय केंद्रीय पुस्तकालय कर दिया गया.
ग्वालियर कैसे पहुंची संविधान की मूल प्रति
ग्वालियर के इस केंद्रीय पुस्तकालय में रखी संविधान की यह मूल प्रति यहां पहुंची कब और कैसे? यह सवाल सबके जेहन में आना लाजमी है. अंग्रेजी भाषा में लिखे गए पूरी तरह हस्त लिखित इस महत्वपूर्ण दस्तावेज की कुल 11 प्रतियां तैयार की गयीं थी. इसकी एक प्रति संसद भवन में रखने के साथ नुच प्रतियां देश के अलग-अलग हिस्सों में भजना तय हुआ था, ताकि लोग अपने संविधाना को देख सकें. इसी योजना के तहत एक प्रति ग्वालियर के केंद्रीय पुस्तकालय में भेजी गयी. इसकी सुरक्षा और संरक्षण की ख़ास व्यवस्था भी की गई.
संविधान सभा के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर है
इसकी ख़ास बात यह है इसकी सभी ग्यारह पाण्डुलिपियों के अंतिम पन्ने पर संविधान सभा के सभी 286 सदस्यों ने मूल हस्ताक्षर किये थे जो आज भी इस पर अंकित हैं, इसमें सबसे ऊपर पहला हस्तक्षर राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के हैं. इनके अतिरिक्त संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ भीम राव आंबेडकर और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल के भी हस्ताक्षर हैं. इतने महं और बड़े नेताओं के ऑरिजनल दस्तखत देखने पर देखने वाले एक रोमांच पैदा हो जाता है.
पूरा संविधान कैलीग्राफी है
केंद्रीय पुस्तकालय के अधिकारी कहते हैं कि इसके कारण वे भी अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं. उनका कहना है कि यह पूरा संविधान हस्तलिखित है और सुन्दर सुन्दर शब्दांकन करने के लिए कैलीग्राफी करवाई गयी है.
सोने से की गयी है रूप सज्जा
संविधान की इस पाण्डुलिपि की रूप सज्जा भी अद्भुत है. इसके पहले पैन को स्वर्ण से सजाया गया है. इसके अलावा हर पृष्ठ की सज्जा और नक्काशी पर भी स्वर्ण पॉलिश से लिपाई की गयी है.