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एनकाउंटर में मरते टॉप कमांडर, घटते कैडर, अब नक्सलियों ने बच्चों को थमाए हथियार

4 days ago
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रायपुर: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों का एक्शन ने माओवादियों के खेमे में खलबली मचा रखी है। बड़ी तादाद में नक्सल कैडर लगातार सरेंडर कर रहे हैं या मुठभेड़ में मारे जा रहे हैं। घटते कैडर और बढ़ते एक्शन के बीच नक्सली संगठनों ने बच्चों पर नजरें गड़ा दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दिनों माओवादियों ने बस्तर के माड़ इलाके के लोगों को धमकी देकर 130 लोगों को जबरन हथियारबंद दस्ते में शामिल कराया है। इस नई भर्ती से सुरक्षा बलों के लिए टेंशन ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि इनमें करीब 80 नाबालिग है। नक्सलियों ने 9-10 साल के कई बच्चों को भी हथियार थमा दिया है।

नक्सलियों की रिपोर्ट से खुला राज

पिछले एक साल के दौरान छत्तीसगढ़ में 413 नक्सली मारे गए हैं। इसके अलावा 1054 नक्सलियों ने सरेंडर किए और एक हजार से अधिक गिरफ्तार किए गए। तीन दिन पहले 25 मार्च को दंतेवाड़ा में मुठभेड़ के दौरान तीन माओवादी मारे गए, जिसमें 25 लाख का इनामी नक्सली कमांडर सुधीर उर्फ सुधाकर भी शामिल था। सुधीर नक्सल आर्मी में शामिल नए रंगरूटों को हथियार और गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग देता था। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों को मुठभेड़ स्थल पर तेलुगु में लिखा एक माओवादी दस्तावेज मिला। माना जा रहा है कि यह दस्तावेज सुधीर की आंतरिक समीक्षा रिपोर्ट थी, जिसे नक्सलियों के मीटिंग के लिए लिखा गया था।

युवा नहीं चाहते नक्सली बनना

इस दस्तावेज में नक्सली कमांडर ने बताया है कि माओवादियों ने माड़ क्षेत्र में एक ग्राम सभा आयोजित की, जिसमें 130 कैडरों की भर्ती की गई। इनमें 50 लोग 18-22 साल के हैं जबकि 40 की उम्र 14-17 साल के बीच है। नई भर्तियों में 40 ऐसे कैडर बनाए जा रहे हैं , जिनकी उम्र नौ से 11 वर्ष के बीच है। पत्र में यह भी लिखा है कि इन नए रंगरूटों को गुरिल्ला युद्ध, हथियार चलाने और आईईडी बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। रिपोर्ट में नक्सली कमांडरों ने बताया है कि युवाओं के बीच माओवादी विचारधारा से जुड़ने की इच्छा कम हो रही है, इसलिए नई भर्तियों में उन्हें परेशानी हो रही है। नए रंगरूटों के बिना, क्षेत्र में नक्सलवाद का अस्तित्व ही खतरे में है।

गांववालों को धमकी देकर जबरन भर्ती

सरेंडर करने वाले एक नक्सली ने बताया कि युवा अब माओवादियों के साथ विचारधारा से प्रभावित होकर नहीं जुड़ रहे हैं बल्कि उन्हें मजबूर किया जा रहा है। माओवादी गांवों में पंचायत बुलाते हैं और एक निश्चित संख्या में बच्चों और युवाओं को सेना में शामिल होने का फरमान सुनाते हैं। गांव का जो परिवार उनके फरमान की अनदेखी करते हैं, उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। माओवादी गांव के लोगों पर दबाव डालते हैं कि वे अपने बच्चों को संगठन में शामिल करें, नहीं तो उन्हें गांव से निकाल दिया जाएगा।

बदल दिया भर्ती करने का तरीका

बस्तर रेंज के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पहले माओवादी युवाओं और नाबालिगों को अपने कल्चरल विंग चेतना नाट्य मंच में भर्ती करते थे। उनका माइंडवॉश किया जाता था, फिर उन्हें हथियार थमाया जाता था और गुरिल्ला वॉर के लिए ट्रेंड करते थे। मगर पिछले एक साल से चल रहे एनकाउंटर और सरेंडर के दौर के बाद उनके संगठन में अनुभवी लोगों की कमी हो गई है। अब माओवादियों ने लंबे प्रोसेस को दरकिनार कर छोटे बच्चों और नाबालिगों के हाथ में सीधे बंदूक थमा दिया है। पुलिस इसे रोकने के लिए नए सिरे से अभियान चलाएगी।

बच्चों पर कड़ी नजर, तालिबानी सजा

माओवादियों ने सेना में शामिल बच्चों की ट्रेनिंग के लिए सख्त नियम बनाए हैं। उन्हें अब अपने गांव जाने या परिवारजनों से मिलने की अनुमति नहीं है। कमांडरों को डर है कि उनके चंगुल से निकलते ही बच्चे आत्मसमर्पण कर सकते हैं या गिरफ्तार हो सकते हैं। यदि कोई नई भर्ती होने वाला युवा ट्रेनिंग छोड़ने की कोशिश करता है तो बड़े कमांडर तक पहुंचा दिया जाता है। नए रंगरूटों को परिवार या बाहरी लोगों के साथ बातचीत करने से मना किया गया है। अगर वह ऐसी कोशिश करते हैं तो उन्हें तालिबानी सजा दी जाती है।

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