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- ■प्रेमचंद जयंती : ■लोक से शास्त्र है न कि शास्त्र से लोक-बुद्धिनाथ मिश्र. ■प्रेमचंद जन चेतना के साहित्यकार थे कि न कि जनवादी साहित्यकार-डॉ. बलदाऊ राम साहू.
■प्रेमचंद जयंती : ■लोक से शास्त्र है न कि शास्त्र से लोक-बुद्धिनाथ मिश्र. ■प्रेमचंद जन चेतना के साहित्यकार थे कि न कि जनवादी साहित्यकार-डॉ. बलदाऊ राम साहू.
■आयोजन-हिन्दी साहित्य भारती छत्तीसगढ़ और भारतीय भाषा मंच, छत्तीसगढ़.
■विषय- ‘प्रेमचंद के साहित्य में लोक जीवन’.
■आतिथ्य- डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र,डॉ. प्रेमलता चुटैल.
■स्वागत भाषण डॉ. चितरंजन कर,संचालन व आभार डॉ. सुनीता मिश्र.
हिंदी साहित्य भारती, छत्तीसगढ़ और भारतीय भाषा मंच, छत्तीसगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में “प्रेमचंद के साहित्य में लोक जीवन” विषय पर परिचर्चा आयोजित किया गया है. जिसके मुख्य अतिथि देश के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार डाॅ बुद्धिनाथ मिश्र केंद्रीय उपाध्यक्ष हिंदी साहित्य भारती उत्तराखंड तथा अध्यक्षता- डाॅ प्रेमलता चुटेल, प्राध्यापक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, मध्यप्रदेश ने की. मुख्य अतिथि के आसंदी से विचार रखते हुए डाॅ बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा-लोक से ही शास्त्र बनता है. लोक के बिना शास्त्र अधूरा है. उन्होंने प्रेमचंद के साहित्य को समक्ष रखते हुए प्रेमचंद को युग प्रवर्तक बताते हुए कहा कि प्रेमचंद ने अपने साहित्य में लोक तत्व को उठाया है. विषय प्रवर्तन करते हुए संस्था के प्रदेश अध्यक्ष बलदाऊ राम साहू ने कहा कि प्रेमचंद केवल साहित्यकार नहीं थे बल्कि एक समकालिक चिंतक, समाज सुधारक और सुधि विचारक थे. वे जन चेतना के साहित्यकार थे न कि आज के तथाकथित जनवादी साहित्यकार. प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से लोक को प्रतिष्ठा दिलाई है.
स्वागत भाषण करते हुए डाॅ चित्तरंजन कर ने कहा कि प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में सामाजिक परिवेश को लिया और गांव के जन-जीवन को चित्रित किया. उनका साहित्य जन कल्याण के लिए था. इसलिए उनके साहित्य में लोक का सुख-दुख, राग-द्वेष, धार्मिकता के साथ समग्र में लोक का उत्सव दिखता है.
प्रमुख वक्ता के रूप में विचार रखते हुए डाॅ दिनेश प्रसाद साह,एसोसिएट प्रोफेसर, दरभंगा, बिहार, ने कहा कि प्रेमचंद ने पराधीन भारत के यथार्थ को लोक के समक्ष रखा. उनके साहित्य में सच की परख है और जन मानस की आकांक्षा है.
खुर्शीद हयात ,वरिष्ठ साहित्यकार बिलासपुर, ने कहा प्रेमचंद की कहानियों में समसामयिकता है, इसी कारण वे हर काल में स्वीकार्य रहे हैं उनकी रचनाएं कालजयी हैं. श्रीमती अनीता करडेकर, साहित्यकार, भिलाई, ने कहा प्रेमचंद के साहित्य में लोक संस्कृति का भोलापन है. हम उनके साहित्य से भारतीय संस्कृति का दर्शन कर सकते हैं.वे हमेशा सत्य के साथ खड़े दिखते हैं. अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रेमलता चुटेल ने कहा प्रेमचंद पात्रों के माध्यम से समाज के मनोविज्ञान को विश्लेषित करते हैं और समाज को दिशा देने का प्रयास करते हैं, यथार्थ का समावेश करते हैं. उन्होंने देश के बाहर भारतीय संस्कृति को स्थापित किया. कार्यक्रम का संचालन और आभार प्रदर्शन संस्था के महामंत्री डाॅ सुनीता मिश्र द्वारा किया गया.
इस कार्यक्रम बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तराखण्ड, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश के विद्वान साहित्यकार और हिंदी साहित्य भारती के पदाधिकारियों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ रायपुर से राम शरण सिंह, राम चरण पांडव, दुर्ग से डाॅ बी रघु, श्रीमती सरला शर्मा, डाॅ हंसा शुक्ला, बिलासपुर से शैलेंद्र गुप्ता, विजय तिवारी, बालोद से सीताराम साहू, जगदीश देशमुख,शंकर सिंह राठौर, कांकेर से डाॅ स्वामी नाथ बंजारे, प्रोफेसर नवरत्न साव, गंड़ई से डाॅ पीसी लाल यादव, सरगुजा से रणजीत सारथी, अजय चतुर्वेदी महासमुंद से महेश राजा उपस्थित रहे.
【 साहित्यिक डेस्क,’छत्तीसगढ़ आसपास’. प्रिंट एवं वेबसाइट वेब पोर्टल, न्यूज़ ग्रुप समूह,रायपुर, छत्तीसगढ़. 】
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