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■छत्तीसगढ़ बंगाली एकता मंच ने शहीद खुदीराम बोस को याद किया.
रायपुर
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छत्तीसगढ़ बंगाली एकता मंच, छत्तीसगढ़ ने शहीद खुदीराम बोस को याद किया गया जिस में बंगाली एकता मंच के प्रदेश अध्यक्ष सोमेन चटर्जी ने महान क्रांतिकारी शहीद खुदीराम बोस को याद करते हुए उनके शहीद होने से पहले गाने के बोल से सर्व प्रथम उनके गीत एक बार बिदाई दाव माँ घुरे आसी,
हँसी हँसी चोरबो फाँसी, देखबे भारोत बासी…. गा कर याद किए
श्री चटर्जी ने कहा हिंदुस्तान की आजादी के लिए ना जाने हमारे देश के कितने युवा फांसी पर चढ़ गए. उन्हीं में से एक ऐसा नाम है, जिसका जिक्र भले ही ना होता हो, लेकिन देश की आजादी के लिए सबसे कम उम्र का ये लड़का फांसी चढ़ गया था. हम बात कर रहे हैं महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस की. जो भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र 18 साल की उम्र में देश के लिए फांसी पर चढ़ गए. वह सबसे कम उम्र के उग्र और युवा क्रान्तिकारी देशभक्त माने जाते हैं.
आइए जानते हैं खुदीराम बोस के बारे में..
साल 1908 में 11 अगस्त के यह महान क्रांतिकारी शहीद हुए थे. 18 साल की उम्र में उन्हें फांसी दे दी गई थी. खुदीराम का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गांव में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहां हुआ था. उनकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था. बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और मुक्ति आंदोलन में कूद पड़े.
स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वन्दे मातरम् पैंफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1905 में बंगाल के विभाजन के विरोध में चलाए गए आंदोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया.
6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट में भी उनका नाम सामने आया. इसके बाद एक क्रूर अंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी दी गई और इसमें उन्हें साथ मिला प्रफ्फुल चंद्र चाकी का. दोनों बिहार के मुजफ्फरपुर जिले पहुंचे और एक दिन मौका देखकर उन्होंने किंग्सफोर्ड की बग्घी में बम फेंक दिया. लेकिन उस बग्घी में किंग्सफोर्ड मौजूद नहीं था. बल्कि एक दूसरे अंग्रेज़ अधिकारी की पत्नी और बेटी थीं. जिनकी इसमें मौत हो गई. बम फेंकने के बाद मात्र 18 साल की उम्र में हाथ में भगवद गीता लेकर हंसते – हंसते फांसी के फंदे पर चढकर इतिहास रच दिया
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मुजफ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फांसी के तख़्ते की ओर बढ़ा था. शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक खास किस्म की धोती बुनने लगे कार्यक्रम में तपास बोस,कल्याण रोय,रवि मल्लिक,बबली दास, बासोना मजंदार,सत्यजीत डे,सुकेश घोष ,डी जे चौधरी आदि संख्या में उपस्तिथ थे ।
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