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- ■ लेख : आज़ादी के रंग. ■सरस्वती धानेश्वर.
■ लेख : आज़ादी के रंग. ■सरस्वती धानेश्वर.
●आज़ादी के रंग
-सरस्वती धानेश्वर
[ निदेशक विश्व शांति समिति एवं अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन, छत्तीसगढ़ ]
इस समय देश आजादी के विभिन्न मायने ढूंढ रहा है कि आखिर आजादी है क्या ?
आजादी दुनिया का सबसे सुखद और खूबसूरत एहसास है,
आजादी विचारों की, खुलकर जीने की, अपने मन की अभिव्यक्ति की आजादी, दुनिया को एकाकार करने की आजादी, आसमान में विचरने की आजादी,
आजादी के अपने मायने हैं,एक मीठा सा सुखद एहसास!
आजादी के सही मायने पूछिए उस परिंदे से जब वह पिंजरे से आजाद होता है,तब सारा आसमान उसका होता है।
तुलसीदास जी ने भी अपनी पंक्तियों में यही कहा है कि “पराधीन सपनेंहू सुख नाही” अर्थात स्वतंत्रता कितनी अनमोल है,
आजादी के विभिन्न रंगों को अपने आंचल में समेटे हुए हमारा देश सदियों से अपने अनुपम सौंदर्य व सांस्कृतिक धरोहर में अग्रणी रहा है, यहां के तीज त्यौहार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतीक रहें है, जो अपने विविध रंगों को सहेजे हुए अनुपम छटा एवं स्वतंत्रता और सौंदर्य से परिपूर्ण है।
असल में आजादी व स्वतंत्रता का मतलब भी यही है कि हम सब खुली हवा में बिना किसी दबाव के सांस लें पाएं हमारा अपना आसमान हो जहां कोई भी दूषित हवा प्रवेश ना कर पाए,
हम सभी के लिए बेहतर से बेहतर उपाय और अवसर पाने के सिवाय आजादी और है क्या!
लेकिन क्या हम आजादी मिलने के कई दशकों के बाद भी स्वतंत्र एवं बेहतर हो पाए, शायद नहीं?
पिछले दिनों हम सभी ने मिलकर वैश्विक स्तर पर महा- त्रासदी का सामना किया और जाना कि सबसे बड़ी और सुरक्षा- आत्मक आजादी अपने शरीर एवम् स्वास्थ्य को को रोग मुक्त रखना है जब महात्रास्दी ने पूरे विश्व में हलचल मचा दी और हम सभी को अपने सीमित दायरे में रहने को मजबूर किया तब हमने आजादी के सही महत्व को समझा और महसूस किया कि स्वास्थ एवं शरीर कि सजगता व सुरक्षा कितनी महत्वपूर्ण है।
हमने इन दिनों प्रकृति से भी बहुत कुछ सीखा और देखा कि प्रकृति को भी अपना सौंदर्य और आजादी बहुत प्यारी है,
इन दिनो प्रकृति नेअपने स्वयं के प्रयासों से अपने सौंदर्य की छटा को चहूंओर बिखेरा है,
सच में प्रकृति का यह मदमस्त सौंदर्य बेहद खूबसूरत और निराला है अब प्रकृति की आजादी भी बेहद सुखद है
यह तो आजादी का एक उज्जवल पाक्षिक रूप है, जो प्राकृतिक है, किंतु यदि हम देश और समाज में आजादी की अभिव्यक्ति का विश्लेषण करें तो निराशा ही दिखाई पड़ती है क्योंकि लोग अपने विचारों और सोच से अभी भी विक्षिप्त और संकुचित मानसिकता में कैद है,उनकी सोच में मतभेद और मन भेद परिलक्षित होता है आखिर आजादी का सही मूल्यांकन क्या है, और क्या होना चाहिए,
क्या आजादी सिर्फ “तीन रंगों” का नाम है,
“मजदूर तथा किसानों” के राज्य की भगत सिंह की अवधारणा -तथा “गांधीजी के सत्य अहिंसा और सत्याग्रह” के उपदेशों की सार्थकता का क्या उद्देश्य है?
हमारे वीर शहीदों ने अपनी शहादत देकर जो आजादी हमें दिलाई, ताकि हम सभी खुली हवा में सांस ले पाएं,
क्या आजादी सिर्फ नाम के लिए है इसी आजाद भारत में अभिव्यक्ति की आजादी के प्रारुप ही बदल दिए गए,आज आजादी के नाम से हमने अभिव्यक्ति की समग्रता को एक राजनीतिक जामा पहना दिया है, समग्र सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में एवम मानवीय दायरे में अभिव्यक्ति के मायने अब हाशिए में खड़े नजर आते हैं,
प्रायः लोग एक दूसरे से श्रेष्ठता के वर्गीकरण में अनावश्यक एवं आधार हीन टिप्पणी करते नजर आते हैं तब महसूस होता है कि अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ कितना निरर्थक है, कई दफा लोग अभिव्यक्ति के नाम पर आधार हीन, अनावश्यक एवं अविश्लेषक टिप्पणी करके विद्वैश उत्पन्न करते हैं। कुछ तथाकथित धर्मांध लोग देश में धर्म और जाति के नाम पर लोगों के बीच में वैमनस्य फैलाते हैं,
समाज में व्याप्त अवधारणा निसंदेह विभिन्न वैचारिक विषम तांए, राजनीतिक सांस्कृतिक,धार्मिक, वेशभूषा सभी के अपने रंग हैं प्रकृति में विभिन्न विषमताएं हैं पर सभी के अपने रंग हैं, प्रत्येक व्यक्ति में विभिन्न विषमताएं हैं पर सभी अपने दृष्टिकोण में सही हो यह संभव नहीं है, क्योंकि सभी की अपनी वैचारिक संपन्नता है,
आजादी के रंग में वेशभूषा प्रायः दृष्टिपात होती है कभी फूहड़ता एवं अश्लीलता के रूप में, जो समाज में स्वीकार तो है पर उसके दुष्परिणाम किसी न किसी रूप में परिलक्षित होते रहते हैं।
भारत के संविधान में कुछेक कानून ऐसे हैं जो वर्तमान समय में अप्रासंगिक हैं उन्हें परिवर्तित करने की आवश्यकता है क्योंकि भारतीय संविधान ने उन्हें वैसे ही अपनाया जब हम परतंत्र थे पर आज स्थिति उलट व विपरीत है।
भारतीय संस्कृति अपने आप में स्वतंत्र समग्र और शशक्त हैं पश्चिमी देशों ने भी इसका अनुसरण किया हुआ है,और कुछ देश हमारी संस्कृति और धर्म दर्शन को अपनाने के लिए तत्पर हैं, क्योंकि हमारा धर्म दर्शन “वसुधेव कुटुंबकम,” की अवधारणा को स्वीकारता है एवं हमारे दर्शन में भौतिक विलासिताओं से ज्यादा आंतरिक शांति को महत्व दिया गया है जो वस्तुत; सभी स्वतन्त्रतांओ से परिपूर्ण हैं।©
सरस्वती धानेश्वर, निदेशक विश्व शांति समिति भारत, एवं अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संगठन छत्तीसगढ़।
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