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दहेज में दिए जाते हैं जहरीले सांप, कारण जानकर हो जाएंगे हैरान.
नए जीवन की शुरुआत के लिए शादियों में घर गृहस्थी का सामान दहेज स्वरूप दिया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में एक समुदाय ऐसा भी है, जहां दहेज में जहरीले सांप दिए जाते हैं. बता दें कि जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर स्थित गांव कुरुडीह में रहने वाली संवरा (सपेरा समुदाय) जनजाति के लोगों में परंपरा है कि ये लोग शादी में दहेज के तौर पर जहरीले सांप देते हैं. खास बात ये है कि संवरा जनजाति में अगर दहेज में सांप नहीं दिया गया है तो शादी संपन्न नहीं मानी जाती.
यही वजह है कि इस जनजाति के लोग भले ही किसी से सांप मांगकर उसे दहेज में दे लेकिन यह परंपरा उन्हें निभानी पड़ती है. दहेज में 2 से लेकर 10 सांप तक भेंट में दिए जाते हैं.
क्या है इसकी वजह,
संवरा जनजाति में सांप रोजी-रोटी कमाने का जरिया है. ये लोग रोजगार के लिए सांपों पर आश्रित हैं और सांप दिखाकर अपने परिवार का पेट पालते हैं. इस जनजाति के लोगों की यह पुश्तैनी परंपरा है, जिसके चलते जनजाति के बुजुर्गों ने दहेज में सांप देने की परंपरा बनाई थी, जो आज भी जारी है. दरअसल इसकी वजह ये है कि दहेज में मिले सांपों से ये लोग अपना परिवार पाल सकते हैं. भले ही ये लोग चार पैसे कमाने के लिए कोई और भी काम करें लेकिन सांप लेकर घूमना और उससे पैसे कमाना इनकी पुश्तैनी परंपरा है, जिसे ये लोग आज भी मानते हैं.
नागपंचमी का है खास महत्व,
भारत मे नागपंचमी के दिन नागों की पूजा करने की परंपरा है. चूंकि संवरा जनजाति का जीवन ही सांपों पर आश्रित है, इसलिए इन जनजाति के लोगों के लिए यह दिन बेहद खास माना जाता है. नागपंचमी के दिन संवरा जनजाति के लोग टोकरी में सांप लेकर निकलते हैं और घर-घर सांप दिखाकर दान लेते हैं. सांप को देखकर जहां अन्य लोगों के डर के मारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं लेकिन संवरा जनजाति के बच्चे सांपों के साथ खेलकर ही बड़े होते हैं.
विकास से वंचित है ये जनजाति,
कुरुडीह में संवरा जनजाति के 42 परिवार रहते हैं. इनकी आबादी लगभग ढाई सौ के करीब है लेकिन ना तो इन जनजाति की बस्ती में ना तो कंक्रीट की सड़क बनी है और ना ही पक्के आवास बने हैं. अभी भी इस जनजाति के लोग झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर हैं. कोरबा जिले के अलावा छत्तीसगढ़ के हरदीबाजार, नुनेरा, कोरकोमा में भी संवरा जनजाति के लोग रहते हैं. इनके पास खेती के लिए भी कोई जमीन नहीं है. संवरा जनजाति के लोग घुमंतू होते हैं. इसके चलते इन्हें शासकीय योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता. इस जनजाति के कई लोगों के पास तो राशन कार्ड की सुविधा भी नहीं है.