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■16वीं पुण्यतिथि पर विशेष : ■पंथी नतर्क देवदास बंजारे.
■सुरता – ‘बाबा गुरु घासीदास के संदेश को पंथी नृत्य के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने वाले प्रख्यात नर्तक देवदास बंजारे की आज़ 16वीं पुण्यतिथि है.
♀ आलेख,ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’.
[ सुरगी-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ ]
देवदास बंजारे का जन्म 1 जनवरी 1947 को धमतरी जिला के सांकरा गाँव में हुआ था. वे कबड्डी के बेहतरीन खिलाड़ी थे. उनके मन में बचपन से ही संत घासी दास की शिक्षा एवं उनके द्वारा किए कार्यों का बहुत ही प्रभाव पड़ा. देव दास जी ने बाबा के संदेशों को लोगों तक पहुंचाने के लिए पंथी नृत्य को चुना. वे इसमें इस कदर रमे कि वे पंथी के पर्याय बन गए. सबसे तेज गति से नृत्य करने वाले पंजाब के भांगड़ा के समकक्ष बंजारे जी ने पंथी को लाकर खड़ा कर दिया. इसे कई देशों में प्रस्तुति दी. 26 जनवरी 1975 को दिल्ली के गणतंत्र दिवस समारोह में छत्तीसगढ़ एवं स्पात मंत्रालय का प्रतिनिधित्व किया.
साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के लिए यह परम सौभाग्य का क्षण रहा है कि शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला सुरगी के प्रांगण में वर्ष 2003 में आयोजित चतुर्थ वार्षिक सम्मान समारोह में अन्तर्राष्ट्रीय पंथी नर्तक एवं गायक स्व. देवदास बंजारे बतौर अतिथि के रूप में उपस्थित हुए थे. वे जाने माने साहित्यकार डॉ. परदेशी राम वर्मा जी के साथ आए हुए थे. विदित हो कि डा. वर्मा जी और स्व. बंजारे जी की जोड़ी बहुत प्रसिद्ध रही है. जैसेै राम -लक्ष्मण की जोड़ी. दोनों में गहरी मित्रता के चलते ही हम लोगों को स्व. बंजारे जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ था. सुरगी के इस समारोह में स्व. बंजारे जी की सादगी एवं सहज, सरल, सरस स्वभाव के दर्शन हुए थे. उस समय अल्प संसाधन में वार्षिक समारोह संपन्न होता था. परिषद् का शुरूआती सफर था. संघर्ष के दौर से गुजर रहे थे. साकेत से जुड़े प्रत्येक सदस्य में कुछ कर गुजरने की चाहत थी. यह वह दौर था जब किसी गाँव में साहित्यिक संस्था चलाना तो दूर साहित्यिक संगठन बनाने को भी नहीं सोच सकते थे. लेकिन संस्था 21 मार्च 1999 को गठित हुआ. संस्था चलना सीखा और दौड़ा भी । इसके पीछे संस्था से जुड़े प्रत्येक सदस्य का समर्पण भाव रहा है.
तो खैर बात हो रही है आरूग फूल स्व. बंजारे की. वार्षिक समारोह स्थल बहुत छोटा था. प्रथम पंक्ति में बमुश्किल से चार -पांच अतिथि ही आ पा रहे थे. एक गठीला शरीर वाला शख्स इत्मीनान से दूसरी पंक्ति में बैठ गए. स्वागत का दौर प्रारंभ हुआ तो कार्यक्रम का संचालन कर रहे भैया धर्मेन्द्र पारख मीत ने इस शख्स का नाम जानने हेतु मुझे आगे बढ़ाया. मैंने परिषद् के प्रमुख सलाहकार आदरणीय डॉ. नरेश कुमार वर्मा जी ( प्राध्यापक दिग्विजय कालेज राजनांदगाँव, मूल निवास -भाटापारा, बलौदाबाजार) के पास जाकर नाम पूछा? वर्मा जी के कारण ही यह शख्स और आदरणीय परदेशी राम वर्मा जी हमारे कार्यक्रम में आए हुए थे. वर्मा जी ने मुझे बताया कि जिस शख्स के बारे में पूछ रहे हो वह कोई व्यक्ति नहीं अपितु एक संस्था है. 64 देशों की यात्रा कर चुके हैं. वे पंथी के पर्याय है. वे “आरूग फूल” है. फिर इस आरूग फूल का चरण स्पर्श करते हुए मैं मीत जी के पास आकर बताया कि भई! हमारे बीच तो पंथी के महान कलाकार आदरणीय देवदास बंजारे जी पधारे हुए हैं. मीत जी फिर खुशी खुशी उद्घोषणा किए कि पंथी के भगवान बंजारे जी का बहुत बहुत स्वागत है तो परिषद् के सदस्यों के साथ ही उपस्थित साहित्य एवं कला प्रेमी अाश्चर्यचकित हो गए और अब सबकी दृष्टि बंजारे पर ही टिक गई. जब उनकी उद्बोधन की बारी आई तो बहुत ही कम बोले. अपने भावों को पंथीगीत के माध्यम से सुना कर सबको भाव विभोर कर दिया. कार्यक्रम समाप्त होने के पश्चात लोगों से सहज, सरल भाव से मिलते रहे और अपने व्यवहार से सबको कायल बना दिया. बंजारे जी, वर्मा जी, तत्कालीन निगम अध्यक्ष आदरणीय सुदेश देशमुख जी के द्वारा हमारे परिषद्
के संरक्षक एवं वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय कुबेर सिंह साहू जी एवं सुप्रसिद्घ लोक गायक भाई वासुदेव साहू जी को” साकेत सम्मान -2003 ” से सम्मानित किया गया.
इसी प्रकार वर्ष 2004 में भाई थनवार निषाद सचिन के गाँव ढोड़ियां में परिषद् का पंञ्चम वार्षिक सम्मान समारोह आयोजित किया गया. इस समारोह में भी बंजारे जी और डॉ. परदेशी राम वर्मा जी पहुना के रुप में पधारें. इस समारोह में बंजारे जी के कर कमल से परिषद् के वरिष्ठ सदस्य एवं सुप्रसिद्घ गीतकार आदरणीय प्यारे लाल देशमुख जी (निकुम)और चिरपरीचित लोक गायक भाई दिलीप कुमार साहू (बुचीभरदा) को “साकेत सम्मान 2004 ” प्रदान किया गया. अपने उद्बोधन के दौराना बंजारे जी ने यह इच्छा व्यक्त की थी कि वे साकेत के मंच से अपनी मंडली सहित पंथी गीत की प्रस्तुति दूँ.
लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था. साकेत के अगले वार्षिक समारोह आने से पहले ही 26 अगस्त 2005 को सुबह 9 बजे टाटीबंध रायपुर के पास एक सड़क दुर्घटना में पंथी का यह पुरोधा पुरुष भगवान को प्यारे हो गए. इस दुर्घटना में साहित्यकार डॉ. परदेशी राम वर्मा जी भी बुरी तरह घायल हो गए. दिल्ली में ईलाज चला और वर्मा जी फिर से पैरों में खड़े होकर मजबूती से कलम चला कर छत्तीसगढ़ी साहित्य के साथ ही हिन्दी साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं. साहित्य के माध्यम से छत्तीसगढ़िया लोगों की चेतना को जागृत करने का सतत प्रसाय कर रहे हैं. “अगास दिया” संस्था के माध्यम से छत्तीसगढ़ के कलमकारों एवं कलाकारों का सम्मान कर उन्हें छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा करने हेतु प्रेरित कर रहे हैं.
और जब अगली बार साकेत के वार्षिक सम्मान समारोह में वर्मा जी पधारें तो स्व. बंजारे की कमी बहुत खल रही थी. हमारे संरक्षक आदरणीय कुबेर सिंह साहू जी ने यादें को ताजा कर सबकी आँखो को नम कर दिया था.
इस “आरूग फूल” को उनकी 16 वीं पुण्यतिथि पर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगाँव एवं पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया जिला राजनांदगाँव की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि है. शत् शत् नमन है. 👏👏👏💐💐💐
●लेखक संपर्क-
●79746 66840
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