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- ■सेल : ■इस्पात कर्मियों के वेतन समझौते पर सरकार का दोगलापन-श्यामलाल साहू,महासचिव, सेंटर ऑफ़ स्टील वर्कर्स यूनियन [ऐक्टू].
■सेल : ■इस्पात कर्मियों के वेतन समझौते पर सरकार का दोगलापन-श्यामलाल साहू,महासचिव, सेंटर ऑफ़ स्टील वर्कर्स यूनियन [ऐक्टू].
भिलाई :
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भिलाई इस्पात संयंत्र इस्पात कर्मियों के वेतन समझौते को लेकर-केंद्र सरकार और इस्पात् प्रबंधन का दोगलापन खुलकर सामने आ गया है। जहाँ सेल प्रबंधन कर्मियों को सम्मानजनक वेज एग्रीमेंट देने को लेकर नकारात्मक और अड़ियल रवैय्या अपनाए हुए है, वहीं केंद्र सरकार की ओर से इस संबंध में दिया गया बयान अत्यंत निराशाजनक और दुर्भावनापूर्ण है।
बीते दिनों दुर्गापुर दौरे पर गए इस्पात् मंत्री से कर्मियों द्वारा वेतन समझौते को लेकर सेल प्रबंधन के अड़ियल रवैय्ये पर नाराजगी जताते हुए जल्द और सम्मानजनक वेतन समझौता संपन्न कराने की मांग पर इस्पात् मंत्री ने कहा कि सरकार तो चाहती है कि वेतन समझौता जल्द हो, लेकिन ट्रेयूनियन नेता इसमें बाधक बने हुए हैं। इस तरह सरकार वास्तव में उल्टा चोर कोतवाल को डॉटे वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है।
हक़ीक़त यही है कि श्रम-संगठन और इस्पात् कर्मी जल्द और बेहतर वेतन समझौते के लिए लंबे समय से गुहार लगाते आ रहे हैं, किंतु सरकार व सेल प्रबंधन के कानों में जूँ तक नही रेंग रही। ट्रेडयूनियनों ने कोई ज्यादा मांग भी नहीं रखी है। उनका इतना ही कहना है कि अधिकारियों के लिए हुए एग्रीमेंट के अनुपात में ही कर्मियों का वेज एग्रीमेंट किया जाये। अगर अधिकारियों को 15% एमजीबी, 35% पर्क्स और 9% पेंशन फंड में अंशदान दिया जा रहा है तो कर्मियों को भी इसी अनुपात में मिलना चाहिए। ट्रेडयूनियनों ने कोई अतिरिक्त मांग नहीं रखी है। सर्वविदित है कि अधिकारियों का वेतन पहले ही कर्मियों के वेतन के दोगुने से भी ज्यादा है।
दरअसल इस्पात् मंत्री के इस बयान ने ही सरकार के दोमुहेपन को उजागर कर दिया है। उन्होंने कहा था कि ताली दोनों हाथों से बजती है, लेकिन हक़ीक़त यह है कि सरकार कर्मियों को सम्मानजनक कुछ देना ही नहीं चाहती, हाथ खोलना ही नहीं चाहती, वह केवल दोनों हाथों से अपने बड़े कार्पोरेट आकाओं के हाथों सब कुछ लुटा देना चाहती है।
इससे यही आभास मिलता है कि सरकार ने सेल को भी जल्द अपने कार्पोरेट मित्रों के हवाले कर देने की पूरी योजना बना रखी है और उन्हें फायदा पहुँचाने के लिए ही कर्मियों को सम्मानजनक वेज एग्रीमेंट देने में उसे बहुत तकलीफ हो रही है।
दूसरी तरफ सरकार श्रमकानूनों को खत्म कर उसे अपने कार्पोरेट आकाओं के मुनाफे के मद्देनज़र मात्र चार कोडों में समेटने पर आमादा है और इसका मतलब है कि कर्मियों के वेतन समझौते का झंझट हमेशा के लिए खत्म कर कर्मियों को पूरी तरह कार्पोरेट घरानों के रहमोकरम पर छोड़ दिया जाये। इस तरह सरकार ने कर्मियों के साथ क्रूरतापूर्ण रवैय्या अख्तियार कर रखा है।
अगर सरकार में जरा भी शर्मो-हया होती और कर्मियों के प्रति सम्वेदना होती तो 30 जून की लगभग शत्-प्रतिशत् सफल रही हड़ताल भी टाली जा सकती थी। कर्मियों ने ट्रेडयूनियनों द्वारा की गई मांग पर हड़ताल को पूर्णतः सफल कर अपनु सहमति व्यक्त कर दी थी, किंतु कर्मचारी विरोधी बेरहम सरकार सरकार व प्रबंधन को इससे अब तक कोई फर्क न पड़ना यह साबित करता है कि वास्तव में वे कर्मियों को कुछ देना नहीं चाहते।
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