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- ■अदबी महफ़िल में याद किये गए-शायर ‘बद्र’.
■अदबी महफ़िल में याद किये गए-शायर ‘बद्र’.
♀ मशहूर शायर मरहूम बदरुल कुरैशी ‘बद्र’ की चौथी बरसी पर हुआ ‘याद-ए-बद्र’.
♀ मध्य भारत में शायरों की पूरी पीढ़ी तैयार की थी ‘बद्र’ ने.
दुर्ग ।
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छत्तीसगढ़ के गालिब के तौर पर पहचाने जाते रहे मशहूर शायर मरहूम बदरुल कुरैशी ‘बद्र’ की चौथी बरसी के मौके पर याद-ए-बद्र के तहत शेअरी नशिस्त एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन शायर आलोक नारंग के केलाबाड़ी दुर्ग स्थित निवास पर किया गया। इस आयोजन में छत्तीसगढ़ के विभिन्न अंचलों से साहित्यकारों ने अपनी भागीदारी दी और मरहूम शायर के उर्दू के प्रति योगदान को याद किया गया।
इस मौके पर मेहमाने खुसूसी इस्पात नगरी भिलाई के अंतरराष्ट्रीय शायर शेख निजाम ‘राही’ थे। दल्लीराजहरा से आए मशहूर शायर लतीफ खान ने निजामत की। समूचे आयोजन का संचालन मशहूर शायर डॉ. साकेत रंजन प्रवीर और हाजी इसराइल बेग ‘शाद’ ने किया। शुरूआत में मरहूम शायर ‘बद्र’ को खिराजे अकीदत पेश की गई। आलोक नारंग ने शायर ‘बद्र’ की हालाते-जिंदगी से लोगों को रूबरू कराया। आयोजन के पहले सत्र में गीत, गजल और काव्य पाठ किया गया। शायर ‘बद्र’ के कुछ चुनिंदा कलाम उनकी बड़ी बेटी नसरीन बानों ने पढ़े और उन्हें याद किया।
इस आयोजन में शायर/कवि नावेद रजा, आलोक नारंग, अबू तारिक, रामबरन कोरी ‘कशिश’, सेवाराम पांडेय, बीआर साहू, शुचि भवि, एजाज बशर, नभनीर हंस, तीजन सिन्हा, युसूफ सागर, हाजी रियाज खान गौहर, डॉ. नौशाद सिद्दीकी, डॉ. इकबाल (मोहला), ओमदीप शरण, यशवंत सिन्हा, डॉ. वीना सिंह, गजेंद्र द्विवेदी, अनुराधा बख्शी, शशि तिवारी (कुम्हारी), नीलम जायसवाल, घनश्याम सोनी, शत्रुघ्न तिवारी, वयोवृद्ध कवि प्रदीप वर्मा, हिंदी साहित्य समिति दुर्ग की अध्यक्ष श्रीमती सरला शर्मा और मरहूम शायर बद्र की छोटी बेटी परवीन बानों सहित अन्य लोग मौजूद थे।
मध्य भारत में शायरों की पूरी
पीढ़ी तैयार की थी ‘बद्र’ ने
मशहूर शायर बदरुल कुरैशी ‘बद्र’ ने उर्दू अदब की खिदमत में पूरी उम्र लगा दी। 19 जून 1929 को जन्में ‘बद्र’ ने रिवायती तालीम पायी थी। लेकिन अपने रुझान के चलते उन्होंने उर्दू अदब को साहित्य का माध्यम चुना और अपना एक अलग मकाम हासिल किया। उन्होंने भिलाई स्टील प्लांट में सेवा दी। वहीं देश के कई प्रमुख मुशायरों की वह शान बनें। उन्हें 10 अक्टूबर 2003 को आईना-ए-सुखन अवार्ड संस्था बज्म-ए-दोस्ताना दुर्ग की ओर से दिया गया। वहीं उर्दू अकादमी छत्तीसगढ़ शासन की ओर से मीनार-ए-उर्दू का खिताब 29 जनवरी 2006 को दिया गया। उनकी किताब ‘जिया-ए-दाग हाय बद्र’ का प्रकाशन उर्दू अकादमी छत्तीसगढ़ ने किया था। 2009 में संस्था हलक-ए-अदब ने उन्हे ‘छत्तीसगढ़ के ग़ालिब’ के खिताब से नवाजा था। उन्होंने दुर्ग में रहते हुए समूचे मध्य भारत में शायरों की एक पूरी पीढ़ी तैयार की। उनके खास शागिर्दों में बाबा शेख निजाम दुर्गवी, रियाज गौहर, मिर्जा इसराइल बेग शाद, कृष्ण कुमार कशिश, नावेद रजा, मिर्जा अजीम शफक,भुवनेश्वर सागर गर्ग, आलोक नारंग और दिवंगत डॉ बलराम वर्मा सहित कई नाम हैं। वहीं देश भर से कई बड़े शायर भी उनसे मार्गदर्शन लेते थे।
सादगी पसंद तबीयत के शायर बद्र साहब ने न सिर्फ शायरी में एक अलग मकाम हासिल किया बल्कि उनकी लेखनी के भी लोग कायल थे। उनके लिखे खत मिर्जा गालिब की परंपरा के हैं, जिन्हें उनके शागिर्दों ने अनमोल विरासत की तरह सहेज कर रखा है। 29 अगस्त 2017 को शायर बदरुल कुरेशी बद्र का इंतकाल हुआ।
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