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■इस माह के कवि. ■समरेन्द्र विश्वास [बांग्ला कवि]. ■राधा बोस [हिंदी रूपांतर].
♀ समरेन्द्र विश्वास जमशेदपुर यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद, भिलाई इस्पात संयंत्र में उपमहाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए. समरेन्द्र विश्वास मूल रूप से बांग्ला में कविता लिखते हैं. बांग्ला में इनकी कई काव्य संग्रह प्रकाशित हुई. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में आज़ दो बांग्ला में लिखी कविता प्रकाशित कर रहे हैं, जिसे सुप्रसिद्ध अनुवादक व साहित्यकार राधा बोस ने हिंदी में रूपांतर किया है.●
♀ राधा बोस रायपुर छत्तीसगढ़ से हैं. उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रायपुर में हिंदी की शिक्षिका हैं. राधा बोस बांग्ला से हिंदी औऱ हिंदी से बांग्ला में कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए कर चुकी हैं. विशेष रूप से ‘अक्षर पर्व’,’देशबंधु’,’नवभारत’. साप्ताहिक पत्रिका ‘स्नातक’ के संपादन कार्य से जुड़ी हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए पहली बांग्ला से हिंदी अनुवाद कविता पढ़िये.●
♂ अनन्त जलशब्दों में मैं.
[ मूल बंगाल कविता समरेन्द्र विश्वास, हिंदी रूपांतर राधा बोस ]
अनन्त जलशब्दों में आक्रान्त मै
उस अनन्त जलधारा की ओर
एक बार निहारता, एकबार आंखेंफेर लेता
इस तरह हीपल पलसरकता जातासमय
धुल जाती गोधुली कीम्लान आभा ।
एक बार निहार कर आंखेफेरनेकेबीच
एक नि:शब्दअभिमान का सेतुबंध
बंध जाता।
जो आंखें आज देख रही,’गर
वो अंधी हो जाय
जो कान आज सुनरहे’गर वो
आगे न सुने
जो ह्रदय आज उद्वेलित हो रहा
‘गर आगेउसका दोलनथमजाय
फिरभी यह जल शब्दउच्चारित होगा
युगयुगान्तरों मे।
हम तो दोदिनों के बटोही हैं
ये पेड़,ये पहाड़,ये नदियां,ये झरने
इस पृ्थ्वी का भ्रमण तो हैअंतहीन।
इस अंत हीनता के बीचके ए़कएकक्षण एक एकअतिथि है
भ्रमण का आतिथ्यसमाप्त होनेपर
एटीएम कार्ड ,डायरी,रंगीन रुमाल
कुछ फल्ली के छिलकेभूल करयहीं
डाल कर,
ड्रायव्हर अनल का अंतंर्दहनगाड़ीलिए लौट जाऊंगा
सम्मुख के जल शब्दये बातें जानते हैं या नहींं ?
#
अनन्त जल राशि की मायावी कुहकमे,एक के बाद एक
मेरे आगे उन्मोचित हो रहा
यह पृथवी शरीर,
उसकाउत्थान,योनिश्रोतनदी भू त्वचा वृक्षमर रोम कूप,
इच्छाओं का वाष्पीयभवन,
कल्पना का घनीभूत मेघ;
उन्मोचित हो रही झर्ना
स्तनों से उद्ग्रीव धूसर यहविन्ध्यपहाड़।
नि:शब्द जलशब्दोंमेंआक्रान्त मै
इस देहतत्वमयी पृथ्वीका वयस
निर्धारणकरते करते
एक समय अपनायौवन अतिक्रान्त-करता हुआ क्रमश:
एकशव देह में पूंजीभूत हो जाता।
#
मेरे शव देह कणजल श्रोत मे
बह जाते पश्चिम_दक्षिण मे,
क्रमश: समुद्रीजीव मुझे ग्रास-
कर लेते।
मै समुद्र प्रवाल किंवारंगीन मेघहोकर,बार बार इस पृथ्वी
पर लौट आता,
झर्ना बन कर जलशब्दों मे
अविराम झर जाता।
पलाश फूल बन करसुनता रहताहूं
गांव गंज का संकीर्तन।
शैशव का आर्द गंध मेरेअनु परमाणु
असीम आवेग में,आलओड़ित
इस पृथ्वी मेआवर्तितहोते रहते,
चारअक्षरों मे लिखा मेरा नाम
इस अनन्तजल शब्दोंमे
पंछी बन जाता।
दस अक्टूबर दो हजार छै की शाम
धुलजाती है, मिट जाती है,
मेरे सामने झरते रहता_
एक मायावी जलप्रपात।
◆◆◆
♂ तुम्हें, समुंदर की निहित छाया में.
[ मूल बंगला कविता समरेन्द्र विश्वास, हिंदी रूपांतर राधा बोस. ]
1. समुन्दर की गर्जना नहींं,चढ़ती उतरती फेन नहींं, मैने बस स्तब्धतामे धरा है तुम्हे;
दूर,बहुत दूर यादों से भरी डोंगियां
बह जाती है।
पता नहींं कभी कोई प्रेम मे क्लान्त
हो कर
अ-बेला मे ही समुन्दर किनारे लौट- आता या नहीं आता?
2. गर आती हो ,तोआओ फिर,शाम- सात बजे,बंदपडी़ घड़ी के नीचे,
टूटे हुए बाती घर में,
समुन्दर किनारे;
हृदय नाविक बन तुम्हारे हीसंकेतोंसे
समुन्दर के किनार किनार में
घूमा है बहुत।
3. स्तब्ध बातीघर मे तुम आई,
आंखों मे आंखें डालो,लहरों पे रखो लहरें।
समुन्दर में निहित छाया मे नौका तैर रही, यही तो समय है _
इसजन्मके अहंकारों में आओ बह जायें
समुन्दर सा शांतसमाहित
दिक्-चिन्हविहीन।
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