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■लेख : आप छत्तीसगढ़ में महाभारत करवाते हो ?

3 years ago
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♀ छत्तीसगढ़ गौरव पद्म विभूषण डॉ. तीजन बाई जब पहली बार इंदिरा गांधी से मिली थी तो उन्होंने पूछा था- तो आप हैं जो छत्तीसगढ़ में महाभारत करवाती हैं ? इस पर तीजनबाई ने कहा- ‘में ह महाभारत नहीं करवाथव…में ह महाभारत सुनावत हव’.



♀ लेख आधारित बातचीत : – डॉ. सोनाली चक्रवर्ती.

इस लेख का शीर्षक कुछ समझ नहीं आ रहा होगा ना लेकिन यह वाक्य हमारे देश की एक गरिमामयी व्यक्तित्वसंपन्न महिला ने एक दूसरी महान कलाकार महिला से पूछा था और उनके जवाब ने प्रश्न पूछने वाले को अभिभूत कर दिया था

छत्तीसगढ़ गौरव पद्मविभूषण डॉ.तीजन बाई जी जब पहली बार श्रीमती इंदिरा गांधी जी से मिली थी तो उन्होंने हौले से मुस्कुरा के पूछा था-” तो आप हैं जो छत्तीसगढ़ में महाभारत करवाती हैं”
इस पर तीजनबाई जी ने अपनी निर्भिक आंखें उठाकर उनसे कहा था
-” में ह महाभारत नहीं करवाथंव.. में ह महाभारत सुनावत हंव”
इस पर हंसकर इंदिरा गांधी जी ने उनके कंधे पर हाथ रख कर कहा था-” कौन कहता है आप पढ़ी-लिखी नहीं है। आपने तो मेरी बात को एक क्षण में पकड़ लिया” और वह यादगार क्षण इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया

26 सितंबर को इंटैक (भारतीय सांस्कृतिक नीधि) का कार्यक्रम था।
आदरणीय गुरु जी
डी.एन. शर्मा सर ने मुझे बताया कि दो कार्यशाला होने वाले हैं। एक 26 तारीख को तीजन बाई जी के साथ और एक 3 अक्टूबर को रिखी क्षत्रीय जी के साथ

26 सितंबर को सुबह एक गाड़ी में शर्मा सर, मैं, दीपक रंजन दास दादा एवं श्री अनिल कुमार चौबे सर, प्राचार्य एम जे कॉलेज तीजन दीदी के गांव गनियारी जाने के लिए निकले ।
गांव पहुंचते-पहुंचते मैं उनके साथ हुई अपनी पहली मुलाकात का स्मरण करने लगी।
2008 या 2009 की बात है मुझे ठीक से याद नहीं- बीएसपी का कार्यक्रम संचालन करना था
स्टील मिनिस्टर श्री वीरभद्र सिंह जी आए हुए थे जिसमें तीजन बाई जी का भी कार्यक्रम था।
मैं उहकी तैयारी के लिए मंच के पीछे घूम घूम के अपनी तैयारी को और सशक्त कर रही थी ।
केंद्रीय मंत्री जी के साथ अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम था। कोई भूल त्रुटि ना हो
इस की चेष्टा तो करनी ही थी ।
मंच के पीछे ही धीरे धीरे पान चबाती हुई तीजनबाई जी बैठी हुई थीं।
मैंने कई बार उनकी तरफ चोर निगाहों से देखा तो वे मुस्कुरा पड़ी .
मैंने उनको जाकर प्रणाम किया और वे सहज भाव से बात करने लगी
-“तोर का नाव हे नोनी”

मैने बैठने की आज्ञा मांगी। दीदी ने मुझे अचंभित करते हुए मेरी साड़ी के पल्ले को अपनी दो उंगलियों में लिया और उसे हल्के से खींचते हुए बोल़ी -“अब्बड़ सुंदर लुगरा है…. महंगा होही ना नोनी”?

और मैं चुप !
मुझे किसी ने मंत्र कीलित कर मानो वहां पर गाड़ दिया था।
ऐश्वर्य व सफलता के इस शीर्ष पर पहुंच कर यह महिला इतनी सादगी पूर्ण ढंग से अपनी मन की बात कैसे कह सकती है ।
यह साड़ी उनके कमाए गए समृद्धि के लिए कुछ भी नहीं है। ऐसी साड़ियां वह चुटकियों में खरीद सकती है लेकिन उनका पूछना और उनकी आंखों की मासूमियत मैं कभी नहीं भूल पाई।

साहस कर मैंने पूछा
-” दीदी मैं बचपन से आपको सुनते आ रही हूं आपकी बहुत बड़ी प्रशंसिका हूं।क्या मैं एक बार आपका हाथ छू सकती हूं? मैं आप को छूकर महसूस करना चाहती हूं”।

तो वह हंसने लगी और अपना हाथ बढ़ा दिया।
मैंने धीरे से उनकी कलाई पर अपनी थरथराती उंगलियां रखी
वे बुखार से तप रही थी ।
मैंने आश्चर्य से उनको देखा -“दीदी आपको तो बहुत बुखार है”
उन्होंने कहा-” हव सुब्बे ले हे।आए के पहिलि गोली खाकर आए हंव”
मैंने उनसे पूछा
-“दीदी 15 मिनट बाद आपका का कार्यक्रम है जिसकी अवधि 40 मिनट है। आप कैसे कर पाएंगी आपकी तो आंखें बिल्कुल लाल जवाफूल सी हो गई हैं”

उन्होंने पान उठाते हुए मुझसे वह बात कही जो मेरी आगे आने वाली जिंदगी के लिए पाथेय बन गया ।
उसके बाद पता नहीं मैंने कितने कार्यक्रम किए होंगे उनकी इस बात ने मुझे कभी अपने कर्तव्य पथ डिगाया नहीं।
उन्होंने हंसकर कहा – *”कार्यक्रम के बात तो अइसे हे*….*वो तो मोर बर पूजा हे* *ते मोला मंच पर खड़ा भर कर… फेर देख”*

और हम मंच प्रेमियों के लिए यह वाक्य देववाणी बन गई।
उसके बाद कई बार ऐसा हुआ कि मुझे बुखार रहा, पैरों में दर्द रहा ,बच्चे की तबीयत खराब रही, घर में कोई मुसीबत रही लेकिन अगर कमिटमेंट थी तो मैं मंच पर अपना कार्य अच्छे से कर पाई क्योंकि सच में मंच पर खड़े होते ही सारी व्याधि भाग जाती थी ।यह मुझे लगता है कि तीजन दीदी का ही आशीर्वाद है।

उसके बाद उनको मंच पर आमंत्रित किए जाने पर मंच पर वे ऐसे दहाड़ी कि वह क्षण भी इतिहास में दर्ज हो गया।

जब वे मंच के पीछे पहुंची तो पसीने में लथपथ थी और बुखार का नामोनिशान नहीं था। चेहरे पर थी वही परमहंसी मुस्कान….

मैंने उनसे पूछा था
-‘दीदी भिलाई इस्पात संयंत्र में आप किस पद पर हैं कृपया बता दें”.
थोड़ी देर सोचने का भान करती हुई वह मुझे एक भैया को दिखा कर कहती है -“मैं ह नई जानंव नोनी। ते दीपक ले पूछ ना। वो ह बने जानते”

ऐसी कई छोटी-छोटी बातों की गठरी उस दिन मेरी झोली में जमा हो गई थी। एक कार्यक्रम का वर्णन सुनाते हुए मुझसे कहने लगी कि ऐसी ऐसी हरकत करते हैं आयोजक कि क्या बताउ़ं।
किसी जगह कार्यक्रम देने से पहले मैं गेस्ट हाउस में थी तब आयोजक आया मेरे पास और वह भी टेंपो लेकर आया था कार्यक्रम स्थल ले जाने
और मुझसे कहता है कि दीदी गाड़ी की व्यवस्था नहीं हो पा रही है ।
आप टेंपो में चल सकेंगी?
तो मैंने उनसे कहा
-“मे ह ठेला मं घलो चल दूंहूं पर बेटा तोर नौकरी ह चल दीही। अइसने झन कर। जिम्मेदार मन सुनही ना तो तोला रिसियाही”

इस भोलेपन पर मन हुआ था उनके गले लग जाऊ।

उसके बाद भी कई मुलाकातें हुई है कार्यक्रमों में।
पिछले वर्ष महिला दिवस पर राजनांदगांव में उनसे ही टीम स्वयंसिद्धा ने सम्मान ग्रहण किय। कई प्रोग्राम में मिले और उनकी सादगी देखकर हर बार लगता था कि क्या यही है पद्मश्री,
पद्म भूषण, पद्म विभूषण डॉक्टर तीजन बाई जी???

आज फिर उनसे मिलने जा रहे थे ।

उनके गांव के घर पहुंचे और घर भी तो फिर उनका ही था ।
वैसा ही सादगी से भरा हुआ ना कोई तामझाम ना कोई टीम टाम।
एक सादा सा घर। बाहर वाले कमरे में एक बड़ा सा गेट मानो वह सभी के लिए हमेशा खुला है ।
एक साधारण सा सोफा और प्लास्टिक की दो-चार कुर्सियां।

दीवार पर अचानक मेरी आंखें अटक कर रह गई… पद्म विभूषण!

पद्म विभूषण का प्रमाण पत्र एक साधारण से फ्रेम में एक साधारण से बिना पुट्टी की दीवार पर अपनी पूरी गरिमा के साथ चमक रहा था। उसे दिखावे की कोई जरूरत नहीं थी ।
घर के अंदर से तीजन दीदी निकली -‘तुम मन आ गे हस गा.. बइठो ।”
भोले-भाले ग्रामीण वेशभूषा में सजे उनके घर वालों को उनका आर्डर हो गया कि चाय पानी लाओ, मेहमानों का स्वागत करो।
फिर हमारे कैमरा और नेटवर्क सेटिंग तक वह अपनी बातें धीरे-धीरे कहने लगी कि अब कान से ठीक से सुनाई नहीं देता।

कहने लगी मंच का शोर इतना सुना जिंदगी भर कि अब कानों से ठीक से सुनाई नहीं देता ।
हमें हर बात उनसे दो-तीन बार जोर से कहनी पड़ रही थी
डी.एन. शर्मा सर जी के साथ उन्होंने साक्षरता अभियान में बहुत काम किया था। वे स्वयं भी उसी समय साक्षर हुई थी ।

उनका साक्षात्कार लेने वाले थे दीपक दास दादा जो पुरे भिलाई के चलते फिरते गजेटियर है। तिजन दीदी ने उनको देखते ही कहा-” ते हा फिर आ गे हस”
और दोनों खिलखिला कर हंस पड़े

और मैं फिर से उनके सानिध्य व उपस्थिति के मोह में खोने सी लगी। उनके चेहरे से मेरी आंखें हटती नहीं और
वह
वह मानो किसी भावजगत में थी। सबके बीच में बैठकर भी कहीं और खोई सी लेकिन उनकी आंखों से कुछ छूट भी नहीं रहा था।

उनके घर के सामने ही किसी ने अपनी गाड़ी जोरों से स्टार्ट करने की कोशिश की तो अपनी कुर्सी से ही उन्होंने झिड़क दिया
-” ते जा तो… आगे जाकर अपना फटफटिया ला चलाबे ।एक सूटिंग चल थे”
फटफटिया वाला भाई “हव दीदी हव” बोल कर अपनी गाड़ी पैदल ही आगे ले गया।

हम पद्म विभूषण
डॉ (श्रीमती) तीजन बाई जी के घर पर थे और यह था माहौल ।
छत्तीसगढ़ के एक गांव में गोबर और धान से मिली जुली धरती की सुगंध और दीदी की उपस्थिति एक जादुई तिलिस्म रच रहा था।

उसके बाद शुरू हुआ कार्यक्रम।
उनके विषय में बताया वरिष्ठ साहित्यकार
डॉ.परदेशी राम वर्मा जी ने।

तिजन दीदी के बारे में क्या बताया यह लिखने की मुझे जरूरत नहीं लेकिन डॉ. परदेशी राम वर्मा की आवाज में जो गर्व था उसने मुझे मुग्ध कर दिया ।
तीजन दीदी छत्तीसगढ़ के लिए कोहिनूर हीरा है और यह बात छत्तीसगढ़ के हर नागरिक व सरस्वती के वरद पुत्र अच्छी तरह जानते है।
वर्मा जी के वक्तव्य में स्पष्ट था कि तीजन केवल पद्म विभूषण तीजनबाई नहीं है हम सब के प्राणों के अंदर भरी हुई मणि हैं ।

दीपक दादा ने उनका साक्षात्कार प्रारंभ किया। उन्हें अम्मा कहकर बुलाया तो वे बड़ी प्रसन्न हो गई। क्योंकि यह कार्यशाला बच्चों के लिए थी और किशोर भाई के बच्चे उनको सुनने के लिए लालायित थे इसीलिए उनकी यात्रा के प्रारंभ के विषय में पूछना भी लाजमी था।
हम सब को भले ही पता हो छोटे बच्चों को तो हर चीज बतानी ही पड़ेगी ।

उनसे जब पूछा गया आपने पंडवानी का सफर कब शुरू किया तो उन्होंने बताया कि मैंने पहली बार 18 दिनों तक महाभारत की कथा सुनाई। पूरे 18 दिनों का वर्णन किया और उसके बाद
-‘मे ह गणेश पक्ष में बाहर निकले हंव… अब तक निकलेच हंव”
जी में आया मैं भी श्रीमती इंदिरा गांधी जैसे उनसे कहूं कि कौन कहता है आप पढ़ी लिखी नहीं हैं !

उनका जीवन वृतांत चलता रहा ।बीच-बीच में उनकी पंडवानी के वीडियो दिखाए गए जिसमें ‘दुशासन वध’ और ‘गीता सार’ था। उनके विषय में बताते हुए तीजन दीदी के आंखों में जो चमक और चेहरे पर जो मिठास आई उससे समझ आया कि उन्हें अपना काम कितना पसंद है .
पंडवानी के विषय में बोलते समय ना उनको सुनाई देने की दिक्कत होती थी ना उनकी आवाज में खरखड़ाहट रहती थी।

वह मानो किसी वेगवती नदी सी बहती चली जाती थी

दीपक दादा ने बताया कि उन्होंने एक बार उनसे कहा था।-” यह पद्म विभूषण का प्रमाण पत्र मुझे दीजिए मैं इसे बड़े खूबसूरत से प्रेम में मड़वा के ले आता हूं।
इस पर उन्होंने जो कहा वह संपूर्ण जीवन दर्शन बन सकता है ।
-“ए तो केवल एक कागद के टुकड़ा हे का करबे फरेम के”

सच तो है
जिन की जबान पर स्वयं मां सरस्वती विराजमान है हृदय में स्वयं धरती मां का वास
उन्हें आवश्यकता भी नहीं इन लौकिक वस्तुओं की

उनसे जब पूछा गया कि जब पद्मश्री प्राप्त हुआ तो उन्हें यह खबर कैसे मिले और उन्हें कैसा लगा था तो इस प्रश्न के जवाब में तीजन दीदी अपनी चिर परिचित पान चबाने वाली मुद्रा में आई और कुछ सोचते हुए कहने लगी कि-” मैं कार्यक्रम के लिए तैयार हो रही थी जब तैयार होकर मंच के साइड में पहुंची तो मुझसे किसी ने कहा कि लो आ गई पद्मश्री तीजन बाई।
-” मे ह रिसिया गे हंव।मोर नाम तीजन हे…ए ला बिगाड़बे झन

तो फिर उन्होंने कहा कि आपको पद्मश्री पुरस्कार मिलने वाला है। उनको कुछ समझ में नहीं आया।
फिर जब दिल्ली में उन्हें पद्मश्री प्राप्त हुआ उसके बाद उन्होंने सोचा कि अच्छा यही है क्या पद्मश्री जिसके लिए उस दिन बोल रहा था

सादगी का ऐसा अद्भुत उदाहरण मैंने स्वचक्षुओं से तो नहीं देखा ।

कई मीठी व मधुर स्मृतियों के साथ हमने उनसे विदा ली ।
ऐसा लग रहा था घर के किसी बुजुर्ग को पीछे छोड़ के हम आ रहे हैं।

उनकी आवाज भी बैठी हुई थी वे ठीक से बोल भी नहीं पा रही थी
लेकिन
मैं जानती थी कि फिर उनसे पूछने पर वह यही कहेंगी कि

-” ते मोला मंच पर खड़ा भर कर और फेर देख’

शेरनी की दहाड़ फिर पूरे जगत को प्रकंपित कर देगी

जय छत्तीसगढ़
जय भारत

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