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- ■श्रद्धांजलि : कीर्तिशेष हरिहर वैष्णव सम्मान के आग्रही नहीं थे- डॉ. बलदाऊ राम साहू.
■श्रद्धांजलि : कीर्तिशेष हरिहर वैष्णव सम्मान के आग्रही नहीं थे- डॉ. बलदाऊ राम साहू.
♀ हिंदी साहित्य भारती, छत्तीसगढ़ द्वारा दिवंगत साहित्यकार हरिहर वैष्णव को दी गई श्रद्धांजलि.
♀ गूगल मीट में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और उड़ीसा के साहित्यकारों की उपस्थिति थी.
♀ विशेष रूप से डॉ. चितरंजन कर,लक्ष्मीनारायण पयोधि, अशोक तिवारी,डॉ. महेंद्र मिश्रा, ललित शर्मा, सीताराम साहू,रश्मि अग्निहोत्री, सुनील झा, उमेश मंडावी ने सम्बोधित किया.
♀ आयोजन डॉ. बलदाऊ राम साहू,अध्य्क्ष हिंदी साहित्य भारती.
हिंदी साहित्य भारती छत्तीसगढ़ के द्वारा दिवंगत साहित्यकार हरिहर वैष्णव को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए गूगल मीट पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई. जिसमें छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश और उड़ीसा के साहित्यकारों ने भी अपनी उपस्थित दर्ज कराई.विख्यात साहित्यकार डाॅ चित्तरंजन कर ने कहा कि बस्तर का लोक साहित्य बेहद सशक्त और समृद्ध है. श्रुति परंपरा के माध्यम से इस ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित किया जाता रहा है. लोक का यह ज्ञान बदलते जमाने के साथ विलुप्त होने के कगार में है। बस्तर के लोक साहित्य की समृद्ध विरासत को संजोने के लिए हरिहर वैष्णव ने अपना पूरा जीवन लगा दिया. लक्ष्मीनारायण पयोधि भोपाल ने कहा कि हरिहर वैष्णव ने बस्तर के लोक साहित्य को नई ऊँचाई दी है.उन्होंने जनजातियों में प्रचलित लोक गाथाओं, गीतों को लिपिबद्ध कर लोक को समर्पित किया.
राहुल सिंह ने कहा कि हरिहर वैष्णव ने जीवन भर बस्तर के लोक साहित्य पर शोध करते रहे। आदिवासियों की जिंदगी, उनकी परंपराएं उनके साहित्य दृष्टिगत होते हैं। उनकी साहित्य साधना आज तक अनवरत जारी रहा। बस्तर के साहित्य और संस्कृति पर लिखे उनके आलेख प्रमाणिक माने जाते हैं। अशोक तिवारी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हरिहर वैष्णव ने बस्तर की स्थानीय बोली हल्बी, भतरी में प्रचलित लोक ज्ञान को लिपिबद्ध करने के लिए खूब कलम चलाई है। उड़ीसा के लोक साहित्य के अध्येता डाॅ महेंद्र मिश्रा ने कहा कि हरिहर वैष्णव एक यशस्वी साहित्यकार हुए. वे लोक के बेहतर समझते थे, इसलिए उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से लोक को परिभाषित किया. हिंदी साहित्य भारती छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष बलदाऊ राम साहू ने कहा कि हरिहर वैष्णव एक स्वाभिमानी साहित्यकार थे उन्हें अनेक संस्थाओं ने सम्मानित किया है, किंतु वे सम्मान के पीछे कभी नहीं भागे. उनका मानना था कि यदि पाठक आपके साहित्य को चाव से पड़ते हैं तो उससे बढ़ कर कोई सम्मान नहीं है. वे कभी भी सम्मान के आग्रही नहीं थे.
श्री ललित शर्मा ने कहा कि हरिहर वैष्णव जीवन भर बस्तर लोक साहित्य पर शोध करते रहे.
बस्तर के लोक साहित्य के संकलन का उनका जुनून वंदनीय है. वे रात-रात भर जागकर लिखते थे.
श्रद्धांजलि सभा को सीताराम साहू, श्रीमती रश्मि अग्निहोत्री, सुनील झा, तथा उमेश मंड़ावी ने भी संबोधित किया.
ज्ञात हो कि हरिहर वैष्णव की 24 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. हरिहर वैष्णव की अब तक 24 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके साहित्य में बस्तर की विशिष्ट प्रतिभाओं को भी जगह मिली है। वन विभाग में लेखाकार रहे हरिहर का साहित्य के प्रति गहरा अनुराग था. उनका साहित्य लोक की धरोहर है.
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