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■दीपावली पर विशेष : ■विजय कुमार तिवारी.
♀ अपने हिस्से का दीया जलाएं.
♀ विजय कुमार तिवारी.
[ भुनवेश्वर-उड़ीसा ]
यह संसार आलोकमय है,सम्पूर्ण सृष्टि,सारा ब्रह्माण्ड ईश्वरीय चेतना से व्याप्त है और हम ब्रह्ममय परमात्मा की उपस्थिति की अनुभूति से भरे हुए हैं। सत्य यही है। जो दिख रहा है,हमारी आँखों का विभ्रम है। हमें अपनी दृष्टि को ईश्वरीय चेतना की अनुभूति के साथ जोड़ना होगा। ईश्वर दिखने लगेगा और संसार का विभ्रम भी खुलता,मिटता जायेगा। यह सृष्टि ईश्वर की है,इसमें अशुभ का प्रवेश सम्भव ही नहीं है। हमारे जीवन में अशुभ इसलिए प्रवेश करता है क्योंकि अपना संसार हम स्वयं बनाना चाहते हैं। संसार बनाना भी शायद उतना बुरा नहीं होता,हम ईश्वरीय विधानों की अवहेलना करते हैं और अपना मनमाना संसार बनाने में लगे रहते हैं।
‘त्याग पूर्वक जीवन जीना चाहिए।’ यह एक महत् वाक्य है, महत् विचार है और हमारे सारे सद ग्रन्थ इसी की सलाह देते हैं। हम ऐसा नहीं करते। हमारे चिन्तन और विचारों की दिशा इसके विपरीत होती है, सारा खेल बिगड़ने लगता है। खेल बिगड़ा तो हमारा संसार बिगड़ा। संसार बिगड़ा तो दुख, परेशानी, पीड़ा, मान हानि, अपमान, अपयश और न जाने क्या-क्या मिलना शुरु हो जाता है। अनेक जन्मों से हम अपना खेल बिगाड़ते आये हैं, अपना संसार बिगाड़ते आये हैं, ऐसे में विचलित होने, दुखी और भ्रम का शिकार होने के लिए बाध्य हैं।
दोष किसका है? हम कभी ऐसा विचार नहीं करते। कभी अपना दोष,अपना आचरण नहीं देखते। यदि देखते भी हैं तो हर घटना, स्थिति-परिस्थिति के लिए दूसरों को दोषी बनाते हैं। भला परिमार्जन कैसे होगा? हम अपना बरतन क्यों साफ करते हैं? क्योंकि दिखता है,वह जूठा है। उसी तरह हमें अपने मन और विचारों की गहरी पड़ताल करनी चाहिए। केवल बाहरी वस्त्र और शरीर धोने,साफ करने से बात नहीं बनेगी। सतत सजग रहना होगा और अपने कर्मों पर कड़ी निगाह रखनी होगी। हर विचलन को रोकना और सम्हालना होगा।
एक और बात करनी चाहिए। सबसे जरूरी है और इसके बिना बात बनती नहीं। अपने जीवन में ईश्वर को उतार लो। यह अत्यन्त सरल है। ईश्वर को उतारने के लिए अलग से किसी तरह का प्रयोजन नहीं करना है। वह तो सर्वव्यापी है,सब में है,सर्वत्र है,बस उसकी उपस्थिति और सर्वव्यापकता को स्वीकार कर लो। तुम्हारा सब कुछ बदल जायेगा। तुम्हारा जीवन बदल जायेगा,तुम्हारी देखने की,चिन्तन करने की दृष्टि बदल जायेगी और सहज ही वह ईश्वर तुम्हें अपनी पकड़ में ले लेगा।
वैसे भी हम उसकी पकड़ में ही हैं परन्तु वह हमें रोकता,टोकता नहीं है। हमें हमारा मनचाहा,मनमाना करने देता है। सहज मौन संदेश भी देता है,हम सुनते नहीं। हम तो अपने द्वारा सृजित संसार में उलझे रहते हैं। उसके संकेतों को अनसुना करते हैं और भटकते रहते हैं। दुखी होते हैं और ईश्वर को ही कोसते रहते हैं। गलत राह हमने पकड़ी, धर्म की राह हमने छोड़ी,ईश्वर के संकेतों को अनसुना किया और लग गये पाप कर्म में,भला ईश्वर क्या करेगा?उसका एक ही काम रह जाता है,वह वही करता है और हमारे कर्मों का फल देता है। ईश्वर कोई भेद-भाव नहीं करता,कोई बेईमानी नहीं करता। उसका अपना पैमाना है,सबको उनके कर्मों के अनुसार फल सुनिश्चित करता है और कब प्रतिफल देगा,यह भी तय करता है। उसके विधान में कोई हेरफेर नहीं होता। उसका कम्प्यूटर कभी बंद नहीं होता,कभी खराब नहीं होता। हमारे जन्म-जन्म के कर्मों के आंकड़े उसके कम्प्यूटर में पड़े रहते है और उसके प्रतिफल भी और सारी व्यवस्था स्वचालित है,सब कुछ स्वतः सक्रिय है,स्वतः गतिशील है।
ईश्वर जब हमारे जीवन में जुड़ा रहता है तो हम स्वतः जागरूक होते हैं और हमारा मन,विचार शुद्ध रहता है। हमारा चिन्तन स्वतः परिमार्जित होता रहता है,ध्यान सक्रिय होता है और ईश्वर प्रसन्न होता है। हमारा यानी जीवात्मा का बाहरी,भीतरी संसार आलोकित हो उठता है और यह स्थित हमेशा बनी रहती है। ईश्वर की उपस्थिति होने से हमारा मन अद्भुत आनन्द की अनुभूति करता है और हम ईश्वरमय हो जाते हैं। कभी ऐसी अनुभूति,ऐसा विचार करके देखिए हमारे-आपके जीवन में अभूतपूर्व बदलाव महसूस होगा।
ईश्वर कभी नहीं कहता कि संसार में सुख मत लो,आनन्द मत लो,वह तो इस संसार का सृजन किया ही है कि जीवात्मा सक्रिय रहे,कर्म करे और सुखी,आनंदित रहे। इस सहज रहस्य को हमें समझना चाहिए और अपने जीवन की दशा-दिशा तय करनी चाहिए। हर प्राणी को स्वाध्याय करना चाहिए,अपने-अपने धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए। यह कर्म-प्रधान संसार है। यहाँ कर्म करना ही पड़ेगा। बिना कर्म किए मुक्ति नहीं है। इसलिए सजग रहकर,अच्छा-बुरा समझते हुए कर्म करना है। अपना पुरुषार्थ जगाये रखो। पुरुषार्थ के साथ कर्मशील बनो। संकल्प ले लो,पुरुषार्थी जीवन जीयेंगे। दूसरे का मुँह नहीं ताकेंगे,अपनी भुजाओं पर विश्वास करेंगे और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति अपने श्रम-पुरुषार्थ से करेंगे। संकल्प ले लो कि हमारे द्वारा किसी की कोई हानि नहीं होगी,किसी का हक नहीं छिनेंगे और किसी को दुखी नहीं करेंगे।
हमारे ग्रंथों में सारे सद् ज्ञान भरे पड़े हैं। आज भी संत-महात्मा उपलब्ध हैं और हमारे सुन्दर जीवन-यापन के लिए उपदेश देते हैं। उनका अनुसरण करना चाहिए,स्वाध्याय करना चाहिए। हमारी आवश्यकता बहुत कम है और हमें शतायु होना है। ईश्वर सारी व्यवस्था करके हर जीव को धरती पर भेजता है। हम ही उल्टी धारा बहाने में लग जाते हैं और अपना संसार बिगाड़ कर रोते रहते हैं। अकेले चल पड़ो,लोग जुड़ते जायेंगे। अपना दीया स्वयं जलाओ और हमारा-तुम्हारा मार्ग आलोकित हो उठेगा। संकल्प कर लो,अपने लिए दीपक मुझे ही जलाना है। यह भी संकल्प करो,मुफ्त का कुछ भी नहीं लेंगे। कर सको तो यह भी संकल्प करो कि अपने साथ-साथ दूसरों के मार्ग में भी रोशनी करेंगे। हमारे यहाँ ईश्वर से बहुत सुन्दर प्रार्थना की गयी है-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मां कश्चिद् दुखभाग्भवेत्।।
अर्थात् सभी सुखी हों,सभी निरोग हों,सभी सबके कल्याण की बातें सोचें और किसी को कोई दुख न हो। शुभं भवतु।
●लेखक संपर्क-
●91029 39190
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