- Home
- Chhattisgarh
- किसान आंदोलन
किसान आंदोलन
■छत्तीसगढ़-महासमुंद से पत्रकार शिखा दास ने ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए विभिन्न संगठनों एवं जनप्रतिनिधियों से बातचीत की,जिसे हम हुबहू प्रकाशित कर रहे हैं-
♀ क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच [RCF].
■कृषि के कॉरपोरेटीकरण के खिलाफ संचालित ऐतिहासिक ‘किसान आंदोलन’ की बहुत बड़ी जीत. कॉरपोरेट घरानों के दलाल नव फासीवादी संघ परिवार-मोदी शाह की करारी हार- नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि वो तीनों काले कृषि कानून वापस लेने जा रहे हैं । ये कार्यवाही आने वाले संसद सत्र में की जाएगी । ये एक साल से सड़क पर सर्दी गर्मी की परवाह किए बिना आंदोलन कर रहे लाखों किसानों की जीत है । ये उन सभी 700 से ज़्यादा शहीद हुए किसानों की जीत है जो आंदोलन में लड़ते हुए शहीद हुए । ये लखीमपुर खीरी में मंत्री के बेटे द्वारा मारे गए इन किसानों और उनके परिवारों की भी जीत है । हमें याद रखना चाहिए कि इन सभी किसानों की हत्या की ज़िम्मेदार ये फासीवादी मोदी सरकार है । पिछले एक साल में इसी सरकार और इसकी पालतू मीडिया ने किसानों को खालिस्तानी, आतंकवादी , आंदोलनजीवी और न जाने का क्या क्या कहा था । इन होने ये तक कहा कि ये लोग किसान ही नहीं हैं ! आंदोलन स्थलों पर कीलें लगाई गयीं , पानी की तोप और लाठीचार्ज किया गया ।उन पर केस दर्ज हुए और उन्हें कितना दमन झेलना पड़ा । लेकिन ये किसानों के आंदोलन की ही ताकत है कि उसने इस अहंकारी मोदी सरकार को घुटने पर ला दिया है और उन्हें मौखिक रूप से हार माननी पड़ी है । किसानों ने सर्दी में अपने साथियों को मरते देखा , दुनिया भर की बदनामी झेली , कितने हमले झेले , कितने आँसू बहाये लेकिन उन्होने हार नहीं मानी । ये 15 अगस्त1947 के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन रहा है । इसकी एक बड़ी उपलब्धि ये रही है कि इनसे अदानी अंबानी और कॉरपोरेट पूँजीपतियों की तानाशाही का पर्दाफाश किया है। मोदी सरकार सिर्फ दूसरी बार अपने निर्णय से पीछे हटी है ये किसानों और आम जनता की ताक़त नहीं तो और क्या है ? असल में जनता ही वास्तविक नायक या नायिका होती है इस आंदोलन ने ये साबित कर दिया है । किसान नेताओं का कहना है कि अब वो इतेज़ार करेंगे कि संसद सत्र में ये कानून वापस लिए जाएँ । साथ ही उनका कहना है कि MSP की गारंटी और बिजली बिल 2020 की वापसी के लिए लड़ाई जारी रहेगी । ये भी सही है कि पंजाब,उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों को देखते हुए ये कानून वापस लेने की बात हुई है । निसंदेह बीजेपी को इन चुनावों में खराब परिणामों का डर होगा इसीलिए भी वे पीछे हटे हैं । अब देखना होगा कि आम जनता इस निर्णय के बाद किस तरह वोट करती है । लेकिन इससे ये तो साबित हुआ कि पंजाब , हरियाणा , उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड,राजस्थान में फासीवादी बीजेपी के खिलाफ जनता में इस आंदोलन ने आक्रोश तो पैदा किया है । साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी जनता में ये संदेश गया है कि ये लोग सिर्फ अंबानी अडानी की चाकरी करते हैं। किसानों का संधर्ष MSP की गारंटी के लिए जारी रहेगा । लेकिन आज जनता की एकता की जीत तो हुई है , ये साबित हुआ है कि अगर जनता खड़ी हो जाए तो कोई भी तानाशाह कागज़ का शेर ही रह जाता है ।
[ क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच के तुहिन देब ने जैसा शिखा दास से कहा. ]
काले कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा लोकतंत्र की जीत-विनोद सेवनलाल चंद्राकर, संसदीय सचिव.
संसदीय सचिव विनोद सेवनलाल चंद्राकर ने तीन काले कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा को लोकतंत्र की जीत और मोदी सरकार के अहंकार की हार बताया। उन्होंने कहा कि काले कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा पहले हो जाती तो सैकड़ों किसानों को जान गवांनी नहीं पड़ती।
संसदीय सचिव श्री चंद्राकर ने कहा कि प्रधानमंत्री ने आज शुक्रवार को तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। यह पिछले एक साल से आंदोलनरत किसानों के धैर्य की जीत है। किसानों का बलिदान व्यर्थ नही जाएगा। किसानों के आगे केंद्र सरकार को झुकना पड़ ही गया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पारित कृषि बिल विधेयक से किसानों में आक्रोश था। संसदीय सचिव श्री चंद्राकर ने कहा कि नए कानूनों के जरिए सरकार ने किसानों को कारपोरेट घरानों के हवाले करने की तरफ कदम बढ़ाया था। इस विधेयक के लागू होने पर कार्पाेरेट घराने किसानों से एग्रीमेंट करते। किसानों की फसल या उपज खरीदकर पंूजीपति जमाखोरी को बढ़ावा मिलता। इस विधेयक से सहकारी समिति संस्था और मंडी व्यवस्था धीरे-धीरे समाप्त हो जाती। जबकि सहकारी समितियां और कृषि उपज मंडी किसानों को संबल प्रदान करती है। इस काले कानून को लेकर किसानों में आक्रोश व्याप्त रहा। जिसे लेकर किसान संगठन शुरू से विरोध करते आ रहे थे। उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन के दौरान कई किसानों को अपनी जान भी गवानी पड़ी। तब कहीं जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि बिल को वापस लेने का फैसला लिया। हालांकि यह केंद्र सरकार फैसला दो राज्यों में होने वाले चुनाव के मद्देनजर भी लिया गया है।
[ संसदीय सचिव विनोद चंद्राकर की प्रतिक्रिया. ]
नज़रिया-राधेश्याम शर्मा, संयोजक भारतीय जनजागरण मंच,रायगढ़.
तीनों कृषि कानून असंवैधानिक तौर पर पारित किया गया था,भाजपा का बहुमत राज्यसभा में नहीं था इसलिए वहां मतदान नहीं कराया गया।
चूंकि राष्ट्रपति भाजपा का पिटठू था इसलिए उस पर मोहर लगा दिया।उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया जो कि राष्ट्रद्रोह है।
किसानों को इसके लिए आन्दोलन करनें पे मजबूर होना पड़ा। जिसमें सात सौ से अधिक किसान साथी शहीद हुए और सत्ता को संरक्षित करने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का सज्ञान न लेकर मौन रहना उनकी गुलामी को दर्शाता है।
यह र्दुभाग्य जनक घटना देश का काला अध्याय है।
आजादी के पश्चात देश का सबसे बड़ा जनआन्दोलन किसानों का है जिसे जीत कर एक इतिहास देश के किसानों ने लिखा है।
[ पत्रकार शिखा दास से राधेश्याम शर्मा ने जो कहा. ]