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■छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल ■डॉ. बलदाऊ राम साहू
3 years ago
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खुद ल जउन हुशियार समझ बइठे हे
बैरी मन ला यार समझ बइठे हे।
पूछत – पूछत रद्दा रेंगत रहिस हे
ठीहा ल ओ सियार समझ बइठे हे।
गाँव-शहर उनकर आना – जाना हे
जिनगी ला बइपार समझ बइठे हे।
डार – डार मा बइठे हे घुघुवा मन
उनला ओ रखवार समझ बइठे हे।
बात-बात म जउन मन भड़कावत हे
उनला खेवनहार समझ बइठे हे।
मीठलबरा के मीठ – मीठ बानी हे
का कहिबे ब्यवहार समझ बइठे हे।
कतको मनखे इहाँ आवत-जावत हे
लुचपतिया ल सरकार समझ बइठे हे।
[ ●ठीहा-निर्धारित चिन्ह. ●सियार-सरहद. ●घुघुवा-उल्लू. ●रखवार-पहरेदार. ●खेवनहार-नाविक. ●मीठलबरा-चिकनीचुपड़ी बात करने वाला. ●लुचपतिया-बिचौलिया/भ्रष्टाचारी. ]
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