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■बसंत पंचमी पर विशेष : डॉ. नीलकंठ देवांगन.
♀ बसंत तेरा आना सार्थक नहीं क्योंकि प्रिया साथ नहीं
♀ डॉ. नीलकंठ देवांगन
[ शिवधाम कोडिया, जिला-दुर्ग,छ. ग. ]
ऋतुराज बसंत तू क्यों आया
उत्कंठ भाव से देख रहा था तेरा आना
आया तो अकेले ही साथ नहीं लाया
उसके बिना सार्थक नहीं है तेरा आना
प्रफुल्लित है नव कुंज
सुरभित हरियाली है कूकती है कूक मधुर
सुमधुर मतवाली है सरस है उपवन उमङ्ग में
झूमता डाली डाली है रसिक जन हैं मगन सङ्ग प्रिया
कितने भाग्यशाली हैं
ऋतुराज बसंत तू क्यों आया
अपलक निहारता था तेरा आना
विरहावस्था में जलता है बदन
उसके बिना सार्थक नहीं है तेरा आना
नव पल्लव दल फूल
मंजरित डाल रसाल की
गा रही अनुराग भर
नव रागिनी मधु काल की
मुकुलित है नवल कलिदल
मृदु सुर ताल की
अंतर मधु पी रही
भ्रमरी रसाल की
ऋतुराज बसंत तू क्यों आया
नैनमूंद अंतरमुख देख रहा था तेरा आना
मादक गंध उर को करता आहत
उसके बिना सार्थक नहीं है तेरा आना
प्रकृति सजी संवरी खड़ी
बासंती परिधान में
आरती थाल लिए सुंदरता
सशरीर खड़ी सन्मान में
यौवन मद की मस्ती में
आलिंगन रत उन्मान में
क्रीड़ा में लिप्त बन कनक
काम मृग अज्ञान में
ऋतुराज बसंत तू क्यों आया
पलक पंखुड़ी बिछा जोह रहा तेरा आना
विरह से संतप्त मन का बढ़ता तपन
उसके बिना सार्थक नहीं है तेरा आना
बसन्त तू ऋतुपति है ना
ऋतुओं का राजा
पल्लव का रुचिर किरीट
तेरे सर पर बिराजा
सुख हर्ष का सौभाग्य सुमन
सर्वत्र सुरम्य भ्राजा
कड़वी नीम की डाली
मीठी सौरभ से स्राजा
ऋतुराज बसंत तू क्यों आया
उम्मीदी निगाहों से देखता था तेरा आना
विरह जनित महावेदना से व्यथित मन
उसके बिना सार्थक नहीं है तेरा आना
शीतल मन्द सुगंध
पवन करते मधु दान
आराम रम्य बन बाग में
अलि करते मधु पान
चूस चूस मकरंद हृदय में
भरते अति अभिमान
अंग अंग में अति उमंग
फूलों से करते पहचान ऋतुराज बसंत तू क्यों आया
अति अधीर हो तकता था तेरा आना
विरह से संतप्त मन का बढ़ता है तपन
उसके बिना सार्थक नहीं है तेरा आना
■कवि संपर्क-
■84355 52828
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