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■नव गीत : डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’.
♀ रिश्वतखोर
♀ डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
[ जमनीपाली, जिला-कोरबा,छत्तीसगढ़ ]
जिन्हें समझते रहे संतरी , निकले वो भी चोर
लूट रहे हैं खुल्लमखुल्ला , सबको रिश्वतख़ोर
अपना उल्लू सीधा करने , लोग लगे हुए हैं
कोई भी बेदाग नहीं है , सभी ठगे हुए हैं
ताक रहे हैं इक दूजे को , कौन करेगा शोर
किसके माथे तिलक लगाएं , किसे कहें सुकरात
गाँव-शहर में अभियुक्तों की ,जब चलती है बात
नज़रें थम जाती हैं जाकर , अक्सर जज की ओर
दरवाजे से सभा कक्ष तक , दिखे कई भिखारी
जो दोहन करते हैं जन का , रोज़ बारी बारी
जहाँ देखिए मिली भगत है , ख़ूब चल रहा ज़ोर
होड़ मची बेईमानों में , गुम हुई सच्चाई
नियम अरु कानून के ऊपर , जम गई है काई
अंधकार में डूबा जीवन , हुई नहीं है भोर
मंज़िल तक जाने का वादा , कभी स्वप्न दिखाकर
शेर बने नित फिरते थे जो , भागे दुम दबाकर
निगल गए जनता का हिस्सा, बने हुए हैं ढोर
■कवि संपर्क-
■79748 50694
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