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■माघी पूर्णिमा पर विशेष : डॉ. नीलकंठ देवांगन.
♀ ‘गौ तीर्थ बानबरद’
♀ जहां गौ हत्या के पाप कटते माघी पूर्णिमा पर लगता विशाल मेला.
■दुर्ग
दुर्ग जिला के धमधा विकास खंड के नंदिनी थानांतर्गत स्थित ग्राम बानबरद का पूरे छत्तीसगढ़ में खास पहचान है, प्रसिद्धि है | यहां गौ हत्या के पाप कटते हैं | इसे गौ तीर्थ कहा जाता है | यहां का चतुर्भुजी विष्णु मंदिर, पास का पवित्र कुंड एवं यहां का गतवा तालाब विशेष महत्व रखते हैं | गौ हत्या के पापी यहां आते, कुंड में या गतवा तालाब के पवित्र जल में स्नान कर मंदिर के पुजारी से पाप मुक्ति हेतु पूजा पद्धति से गुजरते, कुछ दान पुण्य करते, उनके पाप कट जाते हैं |
बाणासुर की नगरी, वरदानी भूमि है बानबरद- द्वापर युग की बात है | बाणासुर बड़ा पराक्रमी था | उन दिनों असुरों एवं देवताओं में युद्ध होते रहते थे | एक बार श्री कृष्ण के साथ उसका युद्ध हुआ | परास्त करने अपने सारे अस्त्र शस्त्र छोड़े | उसके बाणों से कृष्ण की कई गायें मर गयीं, कई घायल हो गयीं और कइयों को खुरहा रोग हो गया | लड़ाई तो वह जीत न सका, उल्टा उस पर गौ हत्या का पाप चढ़ गया |
उसे पाप बोध हुआ | ग्लानि से भर गया | पाप मुक्ति का उपाय ढूंढ़ा | नहीं मिला | वह शिवजी का भक्त था | उसने उनका ध्यान किया और प्रायश्चित का मार्ग पूछा | शिवजी उसकी भक्ति एवं तपस्या से प्रसन्न तो थे ही, बताया- ‘ अमुक स्थान पर श्री विष्णु की प्रतिमा जमीदोज है | जाकर उसे निकालो, पूजा स्तुति करो, पास के कुंड में स्नान कर दान पुण्य करो | पाप कट जायेंगे |
बाणासुर वहां गया | निर्दिष्ट स्थान पर जमीन खोद चतुर्भुज विष्णु के श्री विग्रह को निकाला | भावना के साथ पूजन किया | कुंड में स्नान कर दान पुण्य किया | उसे गौ हत्या के पाप से मुक्ति मिली | वह माघ पूर्णिमा का शुभ दिन था | तब से यहां गौ हत्या के पाप कटते हैं और हर साल माघी पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है |
नामकरण- बाणासुर ने तब इसे अपने मुआफिक बसाया | इसे अपनी राजधानी बनाया | चूंकि यह बाणासुर की नगरी थी, वरदानी भूमि थी, इसका नाम पड़ा- बानबरद | पहले श्रोणितपुर कहलाता था |
पाप मुक्ति- गौ हत्या के पाप से प्रायश्चित हेतु लोग यहां आते हैं | पहले तो 21 दिन घर छोड़ अन्य गावों में जाकर भिक्षा याचन कर तांबे के बरतन में खाते, जमीन पर सोकर रात बिताते | अंतिम दिन यहां आकर कुंड या गतवा तालाब में स्नान कर मंदिर के पुजारी से हवन पूजा करा दान दक्षिणा देते थे | बताते हैं कि अब तो कोई 7 दिन में, कोई 5 दिन में तो कोई 3 दिन में ही यहां आकर निवृत्त हो जाते हैं |
विष्णु मंदिर- यहां चतुर्भुज श्री विष्णु जी का प्राचीन मंदिर है | पाषाण कला का सुंदर नमूना है | कहते हैं खुदाई में दो मूर्तियां मिली थीं- श्री विष्णु और श्री लक्ष्मी जी की | दोनों मूर्तियां बढ़ती जा रही थीं | कारण वश लक्ष्मी जी की मूर्ति खंडित हो गई | उसका बाढ़ रुक गया | अभी भी गर्भ गृह में चतुर्भुज विष्णु के बगल में वह मूर्ति ढंकी हुई है | चूंकि वह खंडित है, श्री लक्ष्मी जी की दूसरी मूर्ति स्थापित कर दी गई है | बाद में श्री विष्ण- मूर्ति का बढ़ना भी रुक गया |
छः मासी रात में मंदिर बना- कहते हैं जब छः महीने की रात हुई थी, तब मंदिर बना था | जैसे ही सबेरा हुआ, काम रुक गया | इसलिए मंदिर पर कलश नहीं चढ़ा है |
मंदिर 16 – 17 वीं शताब्दी में बना है |
कुंड का नवीनीकरण – कुंड बावली के रूप में था | पानी सूख जाता था | तब वहीं के गतवा तालाब में स्नान कर या वहां से जल लाकर यहां स्नान कर मंदिर में हवन पूजा कराते थे | यह अहिवारा नगर पालिका क्षेत्रांतर्गत hy, नगर पालिका ने सीढ़ीदार कुंड बनवा दिया है | नल कूप से पानी भरने की व्यवस्था कर दी है | यह पाप मोचन कुंड कहलाता है | पास के क्षेत्र को सुंदर बगीचा बना दिया है |
कुंड के पास ही ‘अकोल ‘ वृक्ष है | यह दुर्लभ एवं समृद्धि का सूचक है |
उषा अनिरुद्ध की पौराणिक कथा- बाणासुर की पुत्री राजकुमारी उषा को स्वप्न हुआ- ‘ वह एक सुंदर पुरुष के साथ विहार कर रही है | ‘ सपने की बात सहेली चित्ररेखा।को बताई | वह चित्र बनाने में माहिर थी | बताये अनुसार चित्र बनाती गई | वह अनिरुद्ध था, कृष्ण का नाती, प्रद्युम्न का पुत्र | उसने रात में जाकर सोते अनिरुद्ध को पलंग सहित उषा के महल में ला दिया |
उधर द्वारिका में अनिरुद्ध के गुम होने की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई | पता साजी की गई | पता नहीं लग रहा था | नारद जी ayet | अंतरदृष्टि से देखा | बताया- वह तो बानबरद में उषा के महल में है |
बाणासुर को मृत्यु का पूर्वाभास – इधर नित्य की भांति बाणासुर प्रातः उठा | स्नान कर मंदिर जाने के लिए निकला तो महल में लगा ध्वज नीचे गिरा पड़ा था | डर गया | उसे अपनी मौत सामने दिखने लगा | उसी समय गुप्तचरों से सूचना मिली- ‘उषा के महल में कोई पर पुरुष है | ‘ माथा ठनका | उषा को बुलवाया | सपने की बात बताते उषा ने साफ कह दिया- ‘ पिताजी, मैंने उनको अपना जीवन साथी मान लिया है | ‘
उधर अनिरुद्ध को वापस लाने दूत भेजा गया | बाणासुर ने मना कर दिया | अब युद्ध ही एक मात्र उपाय था | बलराम, कृष्ण, प्रद्युम्न सैनिकों के साथ आये | भयंकर युद्ध हुआ | बाणासुर कमजोर पड़ने लगा | शिवजी को याद किया | शिवजी आये | अब तो शिवजी और कृष्ण आमने सामने थे |शिवजी ने बाणासुर को वरदानों का याद कराया | कहा- तुमने अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो जाने का वरदान मांगा था | अपने आप ध्वज गिर जाय, मृत्यु निकट समझना | युद्ध करते नहीं डरे | अब जबकि मौत सिर पर है, इतने डरे, उतावले, उद्विग्न क्यों हो? यह सुन तन शिथिल पड़ गया, मन शरणागत हुआ | उषा अनिरुद्ध की शाही शादी हुई |
मेला- हर साल यहां माघी पूर्णिमा पर विशाल मेला लगता है | दो दिन पूर्व दुकान सज जाते हैं और दो दिन बाद तक रहते हैं | झूले, सर्कस, मौत का कुआं जैसे खेल वाले कई दिनों तक रहते हैं |
मेला के दिन मंदिर दर्शन का क्रम दिन भर चलता है | हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं | दर्शन कर मेला का आनंद लेते हैं |
गतवा तालाब- इस तालाब का बड़ा महत्व है | इसका जल पवित्र माना जाता है | जब कुंड सूख जाता था, इसी के जल से शुद्धिकरण करते थे | कई श्रद्धालु मेला के दिन यहां डुबकी लगाते, फिर मंदिर जाते हैं |
खुदाई पर प्रतिबंध- यहां खुदाई करने पर बड़े बड़े ईंटें निकले हैं | कइयों को दैनिक उपयोग की चीजें- सील, लोड़हा, बर्तन, घड़े मिले हैं | सोने के सिक्के भी मिले हैं | 9 सिक्कों को राजसात कर घासीदास संग्रहालय रायपुर में रखा गया है | ये गुप्त कालीन सिक्के हैं | 1 सिक्का कुमार गुप्त, 7 सिक्के स्कंद गुप्त और 1 सिक्का काच गुप्त के समय का है | अब तो शासन ने खुदाई पर प्रतिबंध लगा दिया है |
हो सकता है नीचे कोई वैभवशाली नगर दबा हो | मंदिर से थोड़ी दूर एक डीह (ऊंचा स्थान) है, जहां पहले विशाल पीपल वृक्ष था , अब नहीं है | यहां खजाना होने की बात लोग करते हैं |
■लेखक संपर्क-
■84355 52828
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