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■कविता : श्वेतांक कुमार सिंह [ बेलूरमठ, हावड़ा, कोलकाता ]
♀ गाँव की गोद चाहती है
जैसे कविता के
रोम- रोम में
गाँव बसा है
और शिराओं में
धाव रही है उसकी सुध
वैसे ही
गाँव की गोद में
लोट-लोटकर
खेलना चाहती है कविता।
♀ डूबी हुई फसलें देखता एक किसान
बाढ़ में
डूबी हुई फसलों को
कर्ज में
डूबा हुआ किसान
मुँह बाए देख रहा था
उसने
अपने एक-एक बूँद आँसू
धूप में सूखा दिए थे
उसे डर था कि
अगर आँसू
जा गिरे बाढ़ में तो
और भी भयानक
और भी निर्लज्ज
हो सकती है बाढ़
कठ-करेजी किसान
किसी भी हाल में
फसलों की धमनियों में
आँसुओं का
अंश नहीं चाहता था
वह चाहता था
पानी जब कम हो
दोनों एक दूसरे से
खिलखिलाते हुए मिलें
जैसे बारिश के बाद
ठ ठा के मिलते हैं जुते हुए खेत।
♀ संघर्ष में
जब संघर्ष करोगे
तो कुछ हासिल होगा
कुछ हासिल होगा
तो तुम्हारा विरोध होगा
पर रुकना-घबराना मत
तुम उन विरोधों को
अपने संघर्षों का
आहार बना लेना।
[ ●श्वेतांक कुमार सिंह बेलूरमठ हावड़ा,पश्चिम बंगाल, कोलकाता से हैं. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए इनकी पहली रचना है. ●कवि संपर्क-77048 13001 -संपादक ]
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