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■कहानी : डॉ. दीक्षा चौबे.
♀ जाके पैर फटी बिवाई
♀ डॉ. दीक्षा चौबे
[ दुर्ग-छत्तीसगढ़ ]
राघव- रागिनी के बेटे व्योम ने आज उन्हें अपनी पसंद अवनि से मिलाया था । उन्होंने अपने डॉक्टर बेटे की पसंद सुंदर और चुलबुली सी डॉ. अवनि को देखते ही अपनी सहमति दे दी थी । एक ही व्यवसाय में रहकर पति- पत्नी एक दूसरे को अच्छी तरह समझ सकते हैं ,यह बात उनसे बेहतर कौन जान सकता था । दरअसल उन्होंने भी प्रेम – विवाह किया था । परन्तु बच्चों के रिश्ते में एक बाधा आ गई थी । व्योम के विजातीय होने के कारण अवनि के माता – पिता को यह बात पसंद नहीं आई थी और वे इसके लिए सहमत नहीं हुए । अवनि के बहुत मनाने पर भी वे विवाह समारोह में शामिल नहीं हुए । स्वयं राघव और रागिनी ने सारी व्यवस्था की और यह कोशिश की कि अवनि को अपने परिवार की कमी महसूस न हो । पति के साथ सास- ससुर का प्यार पाकर अवनि बहुत खुश थी । वह सोचती -काश ! उसके मम्मी- पापा इस रिश्ते को अपना लेते तो उसके जीवन में कोई कमी न रहती । सुख में वक्त बहुत तेजी से बीतता महसूस होता है , वहीं दुख भरे पल काटे नहीं कटते । रागिनी ने अपनी बहू की इस पीड़ा को समझा और उसे सदैव खुश रखने का प्रयास भी किया । अवनि अब इस घर के अनुसार ढल गई थी और वह भी सास-ससुर की खुशियों का ध्यान रखती । उसने महसूस किया कि कभी – कभी रागिनी बहुत उदास और चुप- सी हो जाती थी ,यह देखकर अवनि ने पापा जी से इसका कारण पूछा और कारण जानकर वह स्तब्ध हो गई थी ।
बीस जून , रागिनी का जन्मदिन था और उस दिन घर सुनसान लग रहा था । “अरे ! आज ये व्योम और अवनि सुबह से कहाँ चले गए ? उसने राघव से पूछा था ।” ” हो सकता है अस्पताल में उनका कोई केस आ गया हो और वे हमारी नींद खराब न हो , यह सोचकर चुपचाप निकल गए होंगे “। अरे भई ,अधिक रोक- टोक करना ठीक नहीं , बच्चों को थोड़ा स्पेस दिया करो – राघव ने कुछ खीझते हुए कहा था । हाँ भई , मैं सब समझती हूँ …बस इसीलिए पूछ रही थी कि नाश्ते के लिए उनकी पसंद जान लूँ । चलो हम आज चंडी मंदिर हो आते हैं , बहुत दिन हो गए वहाँ गये । ठीक है तुम तैयार हो जाओ तब तक मैं भी नहा लेता हूँ , राघव ने कहा ।
वे मंदिर से भी आ गए परंतु अवनि – व्योम की कोई खबर नहीं थी । रागिनी को अब उनकी चिंता होने लगी थी , कई बार उन्हें फोन लगाया पर उनका फोन बंद आ रहा था । वे खाना खाकर आराम कर रहे थे कि शाम को एक गाड़ी घर के बाहर आकर रुकी , उत्सुकता वश रागिनी खिड़की से बाहर झाँकने लगी थी । उनके पीछे व्योम की कार भी आ खड़ी हुई थी । अवनि और व्योम किसी को सहारा देकर अंदर ला रहे थे । उनके पास आने पर चेहरा थोड़ा स्पष्ट हुआ तो रागिनी के पैर मानो जमीन में धँस गये हों और उसकी चेतना शून्य सी हो गई । कुछ पल के लिए उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि वह जो देख रही है वह सच है ।
उसकी आँखें वर्तमान में थीं पर मन मानो वर्षों पुरानी उन यादों की गलियों में दौड़ गया था , जहाँ झाँकने से भी उसे डर लगता था । जब उसने घर पर अपने सहयोगी राघव के बारे में बताया था तो हंगामा हो गया था । वह एक कट्टर ब्राह्मण परिवार की लड़की थी जहाँ उसे मुश्किल से नौकरी की इजाजत मिली थी । उसके पिता प्रेम- विवाह के ही पक्ष में नहीं थे ऊपर से राघव की निम्न जाति , वह तो नाम सुनकर ही आग – बबूला हो उठे थे । आज से तीस वर्ष पहले समाज वैचारिक रूप से इतना विकसित भी कहाँ था । जहाँ प्यार हो वहाँ जाति- पांति की दीवार आड़े नहीं आ सकती । राघव के प्यार और देखभाल , मधुर व्यवहार ने रागिनी का दिल जीत लिया था और वह किसी और से विवाह करने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी । अपने पिता से अनुमति माँगने पर भी मिलने की संभावना नहीं थी फिर भी उसने अपना कर्तव्य पूरा किया और एक दिन उन्हें बिना बताए घर से बाहर निकल पड़ी । उन्होंने मंदिर में जाकर विवाह कर लिया और अपनी नई दुनिया बसाने में व्यस्त हो गए । दोस्त कहते थे कि हो सकता है बच्चे के आने पर वे कुछ पिघल जाएँ और उन्हें माफ कर दें । पर ऐसा नहीं हुआ और वे दोनों अपना स्थानांतरण करवा कर नई जगह आ गए ताकि परिचितों की प्रश्नभरी नजरों का सामना न करना पड़े । रागिनी के पिता अपने उसूलों के पक्के और जिद्दी थे उन्होंने उसे कभी माफ नहीं किया । माता – पिता सदा अपनी संतान की भलाई चाहते हैं परंतु उनकी खुशी के लिए क्या वे रूढ़ियों , परम्पराओं के बंधन को तोड़ नहीं सकते । विधाता ने उसके जीवन में एक अधूरापन ला दिया था हमेशा के लिए । जिस आँगन में उसका बचपन बीता अब वही उसके लिए बेगाना हो गया । उनकी पसंद के अनुसार शादी करके यदि मुझे खुशी नहीं मिलती तो क्या वे भी खुश रह पाते ? वह अक्सर यह सब सोचकर दुखी हो जाती ।
आज जो दृश्य वह देख रही है जीते- जी वह सब देखने की उसने कल्पना नहीं की थी । अवनि और व्योम जिन्हें सहारा देकर ला रहे थे , वे रागिनी के वृद्ध माता – पिता थे । पता नहीं किस तरह उन्होंने अपने नाना – नानी को मना लिया था , सच ही कहा गया है कि मूल से प्यारा सूद होता है । आखिर अवनि भी तो वही पीड़ा भोग रही थी अपने माता – पिता की नाराजगी , उनसे अलग होने का दुख इसीलिए वह अपनी सासु माँ को दुखी देख नहीं पाई । “जाकी फटी पीर बिवाई वही जाने पीर पराई ” उसकी और उसकी मम्मी जी की दर्द की साझेदारी जो थी और उसने जाकर नाना ससुर को मना लिया था । वर्षों पश्चात वे भी अपनी भूल सुधार कर बेटी को देखना चाहते थे ; बस एक बहाने की जरूरत थी और शायद वे मरने से पहले अपनी भूली-बिसरी बेटी से गले मिलना चाहते थे ।
आज अपने माता – पिता से मिलकर रागिनी को जन्मदिन का प्यार भरा अनमोल तोहफा मिला था जो उनकी प्यारी बहु अवनि की ओर से मिला था । मन का एक कोना जो बंजर – सा पड़ा था उसमें खुशी के पौधे लहलहाने लगे थे । आज रागिनी ने भी संकल्प ले लिया था कि वह अवनि के अधूरे जीवन को अपने प्यार से तो भरेगी ही साथ ही उसके माता – पिता को भी अवश्य मनाएगी ।
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