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■साहित्य : लखनऊ.
♀ साहित्य भूषण डॉ. रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ की साहित्यिक यात्रा.
♀ आलेख, डॉ. योगेश गुप्त,अध्य्क्ष नवसृजन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था [लखनऊ].
■सत्य युग का अंत
कुछ साहित्यकार केवल साहित्य का सृजन करते हैं और ऐसे साहित्यकार हर गली- कूचे में मिल जायेंगे, किन्तु कुछ साहित्यकार ऐसे हैं जो न केवल साहित्य का सृजन करते हैं बल्कि उसे जीते भी हैं, उनके चिन्तन में, मनन में जीवन के प्रत्येक कृत्य में केवल साहित्य ही रचता है, बसता है और ऐसे साहित्यकार उँगलियों में गिने जा सकते हैं। लखनऊ नगर निवासी क्रान्तियुगोत्तर साहित्यकार डॉ. रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ ऐसे ही विरले साहित्यकारों में से एक थे जिनकी साँस-साँस साहित्य की सुगन्ध से सुवासित थी।
आपका जन्म 01 मार्च 1942 में रायबरेली जनपद के कुर्री सुदौली ग्राम में हुआ था।आपकी साहित्य यात्रा का प्रारम्भ बाल्यावस्था से ही हो जाता है। कक्षा नौ से ही आप कविताएँ लिखने लगे। तरुणावस्था तक आते-आते विद्यालय और विश्वविद्यालय में रहते हुए अनेक साहित्यिक -सांस्कृतिक समारोहों का संयोजन एवं संचालन कुशलता पूर्वक करने लगे । आपने विद्यान्त हिन्दू डिग्री कालेज, लखनऊ में हिन्दी साहित्य परिषद् के महामंत्री पद तथा लखनऊ वि० वि०, लखनऊ में हिन्दी विद्यार्थी परिषद् के अध्यक्ष पद को भी विभूषित किया। आपने साहित्य-मण्डल, ‘तरुण- साहित्यकार सम्मेलन’ एवं ‘कवि कोविद क्लब’ के अध्यक्ष व मंत्री पद पर रहकर साहित्य-सेवा में अपना अमूल्य योगदान दिया।
आपका प्रथम स्वरचित काव्य संग्रह ‘बिछुड़े मीत’ सन् 1960 में प्रकाशित हुआ। ‘कवि सोहन लाल सुबुद्ध: एक परिचय’ आपकी बहुचर्चित कृति है। एक अन्य लोकप्रिय कृति ‘महाकवि जगत नारायण पाण्डेय एक परिचय’ है।
सन् 1966 में आपने “अखिल भारतीय अगीत परिषद् की स्थापना कर अगीत-वाद का प्रारम्भ किया।” अगीत विधा” चार से दस पंक्तियों में अपने विचारों, भावों को अभिव्यक्त करने में समर्थ वह कविता है जिसमें लय, गति स्वीकार्य है। एक मार्च सन् 1972 को “साहित्यकार दिवस” पर पद्मविभूषण पण्डित अमृतलाल नागर ने कहा था कि “अगीत आन्दोलन यदि फैशन के लिए नहीं चलाया गया तो उसका भविष्य उज्ज्वल है” उनकी यह बात अक्षरशः सही सिद्ध हुई। अगीत विधा से प्रेरणा लेकर अब तक दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें श्रीकृष्ण तिवारी की “खिड़की से झाँकते अगीत”, मंजु सक्सेना की “महकते फूल अगीत के” अनिल किशोर शुक्ल ‘निडर’ की “मेरे सौ अगीत” प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त अगीत विधा से प्रेरणा लेकर प. जगत नारायण पाण्डेय ने ‘मोह-पश्चात्ताप’ खण्ड-काव्य और ‘सौमित्र गुणाकर महाकाव्य तथा डॉ. श्याम गुप्त ने ‘सूर्पणखा” खण्ड-काव्य और ‘सृष्टि’ महाकव्य और कुमार तरल ने “बुद्ध महाकाव्य” की रचना अगीत विधा में की।
सम्पादन के क्षेत्र में आपका अमूल्य योगदान है। आपने दर्जनों पुस्तकों का सम्पादन किया। 1966 से लगभग पन्द्रह वर्षों तक ‘अगीत त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादन किया। “अगीत विधा” के अन्तर्गत “अगीत काव्य के चौदह रत्न”, “अगीत काव्य के इक्कीस स्तम्भ”, “अगीत काव्य के अष्टादशपथी”, ‘अगीत काव्य के सोलह सारथी” का सम्पादन किया। इन काव्य संग्रहों में आपके दस-दस अगीत भी प्रकाशित हुए। इसके अतिरिक्त “कश्मीर हमारा है”. “जवानों आगे बढ़ो”, “पनघट” आदि काव्य-संग्रहों का भी कुशलतापूर्वक किया। सन् 1975 में हिन्दी गद्य-साहित्य के क्षेत्र में संतुलित कहानी का सूत्र पात किया। “संतुलित कहानी विधा के क्षेत्र में “संतुलित कहानी के नौ रत्न”, सन्तुलित कहानी के पञ्चादस
रत्न” आदि कहानी-संग्रह का कुशलतापूर्वक सम्पादन किया। सन् 1968 मे हिन्दी साहित्य क्षेत्र को आपकी एक अन्य महत्वपूर्ण देन “संघात्मक समीक्षा पद्धति” है। संधात्मक समीक्षा पद्धति पर आधारित प्रसिद्ध समीक्षक श्री पार्थोसेन की कृति “गुण-दोष” आपके द्वारा सम्पादित है।
आपने निबन्ध-संग्रहों, उपन्यासो एवं लघु उपन्यासों का भी कुशलतापूर्वक सम्पादन किया है जिनमें श्री राजेश कुमार द्विवेदी का निबन्ध-संग्रह “स्वयं गंधा” और श्री दिलीप कुमार वर्मा का लघु उपन्यास ‘सुमि” प्रमुख है।
आपने लगभग दस दर्जन से अधिक पुस्तकों की भूमिका लिखकर लेखकों को प्रोत्साहित किया जिनमें कविता संग्रह कहानी संग्रह, उपन्यास , महाकाव्य आदि सम्मिलित है। आपने प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 1975(नागपुर) एवं तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन 1977 (दिल्ली) में अ.भा. अगीत परिषद की ओर से प्रतिनिधित्व किया। आपके साहित्यिक कार्यक्रम नियमित अंतराल पर आकाशवाणी और दूरदर्शन से प्रसारित हुए हैं। आपने लगभग पाँच हजार से अधिक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समारोहों का संयोजन संचालन एवं अध्यक्षता कुशलतापूर्व किया।
आपके द्वारा चलाई गयी विधाओ “संतुलित कहानी”, ‘अगीत विधा’ और ‘संधात्मक समीक्षा पद्धति को लखनऊ और कानपुर विश्वविद्यालयों ने मान्यता प्रदान की है और इन विधाओं पर कई बार स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं में प्रश्न पूछे जा चुके हैं। आपके द्वारा चलाई गयी विधाओं का उल्लेख “द्वितीय महायुद्धोत्तर हिन्दी साहित्य का इतिहास” ( डॉ. लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय) “हिन्दी साहित्य की विभिन्न प्रवृत्तियों” (डॉ. जयप्रकाश खण्डेलवाल) ,”नया साहित्य नये रूप” (डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित), “हिन्दी साहित्य का विवेचना” (डॉ. राजनाथ शर्मा), “टूटी-फूटी कड़ियाँ” (डॉ. हरिवंशराय बच्चन’), “छायावादोत्तर प्रगीत काव्य” (डॉ. विनोद गोदरे) “हिन्दी साहित्य का वस्तुपरक इतिहास” (डॉ. रामप्रसाद मिश्र) आदि इतिहास ग्रंथों में सम्मान के साथ किया गया है।
आपके ऊपर एक लघु शोध-प्रबन्ध ‘अगीत परिषद् साहित्यिक संस्था एक अनुशीलन” श्री लाल बहादुर वर्मा ने डॉ. पवन अग्रवाल के निर्देशन में लिखा है।
आपके व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित एक कृति आपके प्रिय शिष्यों डॉ. योगेश एवं देवेश द्विवेदी ‘देवेश’ के सम्पादन में “साहित्यमूर्ति-डॉ. रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ नाम से सन् 2012 में प्रकाशित हुई।
आपकी साहित्यिक यात्रा पर प्रकाश डालती सूर्य प्रसाद मिश्र ‘हरिजन’ द्वारा रचित कृति “सत्य का सूर्य” भी प्रकाशित हुई है।
आपने युवा रचनाकारों को अगीत विधा से जोड़ने व अगीत को और अधिक प्रचारित प्रसारित करने के उद्देश्य से “अगीत युवा स्वर सम्मान” की शुरुआत की और सर्वप्रथम यह सम्मान अगीत विधा से जुड़े अपने शिष्य देवेश द्विवेदी’देवेश’ को यह सम्मान प्रदान कर सम्मानित किया।इसके बाद अगीत युवा स्वर सम्मान से सम्मानित होने वाले युवा रचनाकारों में दिवाकर दत्त त्रिपाठी, जयदीप सिंह ‘सरस’,अपूर्व त्रिवेदी,अनूप मिश्र ‘मधुर’, विशाल मिश्र,मनु ‘बौछार’ आदि प्रमुख हैं। आपको अनेक सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत सम्मानित किया जा चुका है । आपको दो बार उत्तर. प्रदेश के राज्यपाल श्री मोतीलाल बोरा एवं स्व. सूरजभान द्वारा हिन्दी साहित्य की सेवा के लिए सम्मानित किया जा चुका है। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा अपको “साहित्य भूषण” सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।
अनेक विद्वानों आपको ने विभिन्न उपाधियों से सम्बोधित कर अलंकृत किया है।स्व. प्रो. हरिकृष्ण अवस्थी(पूर्व कुलपति ल.वि.वि.) ने आपको हिन्दी साहित्य जगत का अगिया बेताल कहकर संबोधित किया तो वहीं स्व. पं. राममूर्ति द्विवेदी (पूर्व सम्पादक व वरिष्ठ समीक्षक) ने अगीताचार्य की उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया।श्री महेश चंद्र द्विवेदी(पूर्व पुलिस महानिदेशक,उ.प्र.) ने आपको साहित्यमूर्ति कहकर अलंकृत किया है।
आप साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था सागर (म.प्र.) तथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था जबलपुर, द्वारा भी सम्मानित हो चुके हैं। “नवसृजन” (साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था लखनऊ) द्वारा “एक शाम -डॉ. सत्य के नाम” एकल काल-पाठ संध्या आयोजित कर हिन्दी साहित्य की दीर्घकालीन सेवा के लिए “सृजन साधना-2010” सम्मान प्रदान कर सार सम्मान से सम्मानित किया गया। कला-सदन सांस्कृतिक संस्था, लखनऊ द्वारा कला सम्मान प्रदान किया गया।
अ.भा.अगीत परिषद ने 01 मार्च 1972 से आपका जन्मदिन “साहित्यकार दिवस” के रूप में मनाना प्रारम्भ किया । जिसमे दिवंगत साहित्यकारों की पावन स्मृति में कवियों, लेखकों को सम्मानित किया जाता है। आपका सम्पूर्ण जीवन एक ऐसे कर्मयोद्धा का रहा जो एक ओर सतत साहित्य साधना में लीन रहता था वहीं दूसरी ओर नए रचनाकारों को यथासम्भव प्रोत्साहन देकर उनका मार्ग प्रशस्त करता था। आपके ही शब्दों में:
“मैं भटकते हुओं का सहारा बनूँ।
डूबते साथियों का किनारा बनूँ।
दे सकूँ मैं प्रगति साधना से भरी,
जागरण ज्योति का ही इशारा बनूँ।
आज अ. भा. अगीत परिषद, लखनऊ के संस्थापक अध्यक्ष एवं “नवसृजन” साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, लखनऊ के संरक्षक के रूप में हिन्दी साहित्य व हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार संलग्न साहित्य जगत का सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया है। हम स्वय को सदैव गौरवान्वित अनुभव करते रहेंगे कि आप जैसे महान साहित्यिक मनीषी का आशीर्वाद, सानिध्य और संरक्षण हमें प्राप्त हुआ।
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