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- ■विशेष : वरिष्ठ साहित्यकार संतोष झांझी,आज़ जन्मदिवस के अवसर पर.
■विशेष : वरिष्ठ साहित्यकार संतोष झांझी,आज़ जन्मदिवस के अवसर पर.
■आलेख : डॉ. सोनाली चक्रवर्ती.
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■लेखिका डॉ. सोनाली के साथ संतोष झांझी.
जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई संतोष आंटी जी।
आप जिए हजारों साल और उन को 50000 साल बनाने की कला ईश्वर ने आपको पहले ही दे रखी है। हर पल को द्विगुणित कर खिलखिलाते रहना मैं आपसे सीखती हूं ।ना केवल खुद के बल्कि सबके चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए हर समय तत्पर आप कैसे रह पाती हैं आप ही को इस रहस्य का ज्ञान है। आपने मुझे अपनी पांचवीं बेटी बनाया और फलस्वरुप आज मैं यह देखती हूं कि जब फेसबुक पर अपनी तस्वीर पर करसर लेकर जाऊं तो नीचे संतोष झांझी नाम लिखकर आता है। यकीन मानिए सिर्फ खुश होती हूँ।
आपके साहित्य पर पीएचडी करना मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। थिसिस कैसी बनी मैं नहीं जानती पर आपका यह कहना कि “मेरे बारे में तूने लिख दिया है तो फिर मुझे आत्मकथा लिखने की जरूरत नहीं ”
मेरी हिम्मत बढ़ाता रहा। आपकी परछाई बन सकूं इसी प्रार्थना के साथ आपको एक बार और हृदय तल से जन्मदिन की शुभकामनाएं।
75 वर्ष की युवा ,ऊर्जावान ,सौंदर्य व बुद्धि की प्रतीक कवयित्री, उपन्यासकार कहानीकार, नाटककार, गीतकार को मेरा प्रणाम।
मैं उनसे हमेशा कहती हूं मासी 1 अप्रैल को पैदा होकर आप ने सब को बुद्धू बना दिया।
उस जमाने में एक लड़की जो नहीं सोच सकती थी आपने वह सब किया।
■ सबको लगा लड़की है सिर्फ घर के काम करेगी तब आपने कविताएं लिखी।
■सबको लगा कम उम्र में शादी करवा दो गृहस्थी और बच्चों में सारी जिंदगी गुजार देगी लेकिन आपने जीवन और प्रकृति में से गीत चुने, कविताएं लिखीँ, कहानियां बनाई ,नाटक रचे और अभिनय किया।
■सबको लगा जीवन के इतने झंझावातों के बीच आप की प्रतिभा खो जाएगी लेकिन आपकी कविता की तलाश अभी जारी है ।
आप ही की कुछ पंक्तियों के साथ आपको फिर श्रद्धा भरा प्रणाम एवं जन्मदिन की शुभकामनाएं
कविता की तलाश
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सुबह सुबह जब सूरज
अपनी किरणें धरती पर लाए साँझ पड़े हो लाल शर्म से
क्षितिज के पीछे छुप जाए
ढूंढ लिया है तुझको यही
अनलिखी मेरी कविता हो
सुबह सवेरे आसमान पे
उड़ती चिड़िया जो गाएँ
ओस की बूंदों को छू छूकर
सिहर सिहर तितली जाए
छू लेता भंवरा पराग पर
खुशबू ना छूने पाए
देख देख कर बुलबुल हँसती
डाल डाल उड़ती जाए
ढूंढ लिया है तुझको तुम
अनलिखी मेरी कविता हो
कल कल छल छल
करती नदियां
मंद मंद बहती जाए
ज्योँ हिचकी ली हो नदिया ने मछली यूँ डुबकी खाएँ
द्वार चढ़े सागर को
तब जब चंद्रकिरण
नभ पर छाएं
बेचैनी से तड़प तड़प कर
पाने को उछला जाए
ढूंढ लिया है तुझको वही
अनलिखी कविता हो
नभ को बिजली की कटार
जब चीर चमककर छा जाए पावस की बूंदे जब तन से
आ मन पर भी छा जाए
नाच उठे बूंदों की ताल पर
मोर पंख जब फैलाए
बिरहन की आंखों की बदली
जब आंसू बन झर जाए
नन्हीं-नन्हीं मुस्कानों में लिखी हुई कविता हो
■संपर्क डॉ. सोनाली चक्रवर्ती
[ 98261 30569 ]
■संपर्क संतोष झांझी
[ 97703 36177 ]
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