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■टारगेट : रिछपाल ‘विद्रोही’ [ नागौर राजस्थान ]

3 years ago
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दुनिया में कभी भी लड़ाई धर्म – जाति के लिए नहीं लड़ी गई । खून की नदियां वर्चस्व और कुर्सी के लिए ही हमेशा बहायी गई।वर्चस्व की खातिर दो विश्व युद्ध हुए।

राजस्थान वीर प्रसूता धरती है, ऐसा जोर-शोर से पढ़ाया जाता है, गली-गली में ढिंढोरा पीट के बताया जाता है मगर ये कभी भी किसी ने बताने की कोशिश नहीं की , कि राजस्थान सामंतवाद और जातिवाद का भी सबसे बड़ा गढ़ है। हर रोज ओछी मानसिकता वाले लोगों का कहर गोदी मीडिया के अखबारों में दबंग नाम से देखने को मिलता है।ओर सत्ता जले हुए पर बड़ी-बड़ी रोटियां सेकने का काम करती है ।
राजस्थान में दलितों की खासी आबादी है ।
दलितों में भी बहुत सी जातियां-उपजातियां है, जिनमें आपस में रोटी- बेटी का संबंध नहीं होता । यही इनकी सबसे बड़ी कमजोरी है। दलित समुदाय में ही आने वाली एक जाति है – मेघवाल। राजस्थान के प्रत्येक क्षेत्र में इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है । जैसे – मेघ, मेघवंशी , बलाई, भांबी , लाटवा , मारू, बुनकर ,कोरी, सालवी ,सूत्रकार, रिखिया , छडीदार, चौपदार ,बैरवा , जाटव, चांदोर, चमार, रैदास, ऐरवाल, मेहर आदि।
इस जाति का अपना एक पुराना इतिहास रहा है। डॉ. परिहार ‘मेघवंश इतिहास’ में इनका संबंध सम्राट असोक से बताते हैं। इनकी नाथों-सिद्धों और सांगलिया पंथियों के प्रति प्रगाढ श्रद्धा है। इस समुदाय में संत-महापुरुषों का एक साफ-सुथरा लंबा-चौड़ा इतिहास भी रहा है, जिनमें बाबा रामदेव, गरीबदास, धारूदे , खींवण जी, खींवादास, श्यामाराम मावा, रामबक्क्ष , मांगू राम, पूसाराम , डाली बाई ,अणची बाई, चंद्रनाथ , चुनाराम , गोकुल दास इत्यादि ।

राज्य विधानसभा की SC आरक्षित सीटों में से ज्यादातर सीटों पर मेघवाल कौम को ही उम्मीदवार बनाया जाता है। हालांकि SC में ओर भी बहुत सी जातियां है , जो यहां निवास करती है, इसके बावजूद केवल इन्हें ही उम्मीदवार बनाया जाना इनकी क्षमता का प्रतीक है। सभी पार्टियों को इनकी सामाजिक -आर्थिक -राजनीतिक पॉवर का भली-भांति अंदाजा है, तभी तो MLA से लेकर ,सांसद और कैबिनेट मंत्री बनाने तक का ख्याल रखते हैं। SC में इस कौम के अलावा आने वाली कौमों ने आज भी पुराने उसूल अपना के रखे हैं , जिनकी वजह से दिनों-दिन फिसड्डी बनते जा रहे हैं ।
केवल यही कौम टारगेट पर क्यों ?

– चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर कलेक्टर तक के पदों पर जा पहुंचने के कारण गुलामी की बेड़ियां चकनाचूर हो गई, जिससे परंपरागत चौधरियों की चौधराहट खतरे में पड़ गई ।

– अंबेडकर, पेरियार, फूले ,कांशीराम की विचारधारा को दुनिया जाने या ना जाने मगर ये कौम भली-भांति जानती है। इनके घरों में अंबेडकरवाद से जुड़ा साहित्य प्रचुर मात्रा में मिल जाएगा। जिनको अंबेडकर आदि से नफरत रहती है, उन्हें इस कौम से भी नफरत बेशक होगी। तभी तो अम्बेडकर का बैनर लगाने पर हनुमानगढ के विनोद मेघवाल की हत्या कर दी गई।

– सरकारी क्षेत्र में आने के बाद दडबों की जगह बड़ी-बड़ी हवेलियां बन आई ,चारदीवारी से घिरे हुए घरों में जीने लगे, तो सामंतवाद के हाथ- पांव फूल उठना स्वाभाविक बन आया।

– एक रोटी कम खा लेना मगर अपने बच्चों को पढ़ाना, इस ध्येय पर चलने की वजह से समाज की साक्षरता दर अन्य समुदायों की तुलना में बेहतर होती गई । शिक्षा रूपी शेरनी का दूध पीते ही दहाड़ने लगे तो जातिवादियों के पेट में मरोड़े भी उठने लगे।

– दलित समुदाय की अन्य कौमों की बजाय इस कौम के पास जमीन-जायदाद भी ज्यादा है, इस वजह से अपने खेतों पर खेती-बाड़ी करके आर्थिक स्तर में काफी सुधार कर लिया और सवा सेर गेहूं के लिए सामंतों पर निर्भर रहना छोड़ दिया।

– पढ़ा – लिखा व्यक्ति गुलाम बनके जीना कतई पसंद नहीं करता। जब पास में नौकरी-पैसा- घर आदि हो तो भला गुलामी कौन करें । तब रसूखदारों को लगने लगा कि ये लोग हमारी कोठी पर हाज़री नहीं देंगे तो हमें खेतों पर काम करना पड़ेगा, इनकी तरह कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी और यों ही चलता रहा तो भूख से मरने की नौबत भी एक रोज आ जाएगी ।
– अच्छा खान-पान आदि होने की वजह से शरीर भी मजबूत कद-काठी वाला हो आया । जेब में पैसा होने पर शरीर पर सोने-चांदी के आभूषण सजने लगे। युवक- युवतियां अच्छे-अच्छे कपड़े पहन के सरे-बाजार मोटर गाडी पर बैठ के निकलने लगे।
पगड़ी ,जिसे रजवाड़ों में सिर का ताज कहा जाता था, शान की प्रतीक थी , वह अब इन के सिर पर सजने लगी तो सामंतशाही कीडे-मकोडों की तरह बिलबिलाने लगे।
– इस समुदाय में एक से बढ़कर एक लेखक,इतिहासकार, संगीतकार आदि है, जो पाखंड- अंधविश्वास का विरोध करते हुए अक्सर नजर आते हैं। ये भी जातीय पंचों को कतई मंजूर नहीं है।
ताजा मामला पाली जिले के बारवा गाँव का है, जिसमें जितेंद्र पाल मेघवाल की इस वजह से हत्या कर दी जाती है कि वह मूछों पर ताव देता है, जय भीम के गानों पर नाचता है, अच्छे कपड़े पहनता है। और ये मामला पूरे भारत में फैलने की वजह से एक बार फिर जातिवाद – सामंतवाद जैसे घृणित शब्द लोगों की जुबां पर आ गए, वरना लोगों को तो लगता है कि राजस्थान वीरों की भूमि है।
जबकि सच्चाई यह है कि ये भूखे भेड़ियों की , जाली राष्ट्रवादियों की और नपुंसक लोगों की सरजमीं है।
यहां पर झुंड में किसी निहत्थे को मारने पर दबंग की पदवी दी जाती है। औरत की इज्जत लूटने वालों को धर्म-रक्षक का ताज दिया जाता है।
मेघवंश की यशोगाथा का बखान करना या जातीय विद्वेष की भावना भड़काना मेरा कतई मकसद नहीं है , बल्कि यह बताने की कोशिश है कि दुनिया में आगे बढ़ने के लिए और खुलकर जीने के लिए संघर्ष और संगठन बहुत जरूरी है ।
मेघवाल समुदाय उस समय एक बार फिर सुर्खियों में आया, जब बाड़मेर जिले के बिढाणी गाँव में दुल्हन को हेलिकॉप्टर से लाया गया। ये वाकया सामंतवाद को खुली चेतावनी था कि अब क्या करोगे!
कभी – कभार तो ऐसी खौफनाक स्थिति बन आती है कि पूरा गाँव एकमत होकर इनके ऊपर टूट पड़ता है। नागौर का डांगावास कांड जिसमें पाँच मेघवालों की दिनदहाड़े पीट-पीटकर हत्या कर दी गई, इस बात की गवाही देता है ।
सामाजिक आजादी के लिए ये कौम मरने-मारने के लिए हर पल तैयार रहती है।
जब राजनीति में इतनी पकड़ है, आर्थिक तौर पर संघर्ष करने वाला स्तर है , फिर भी दिनों-दिन अत्याचार क्यों हो रहे हैं । इसकी दो वजह है – समाज में चमचों का बोलबाला और समाज के जनप्रतिनिधियों का अपनी-अपनी पार्टियों का गुलाम होना । ऐसे हालातों में समाज को एकजुट होना बहुत जरूरी है और यह समझना भी कि नागनाथ और सांप नाथ दोनों ही विषैले हैं।

जिस कौम के जनप्रतिनिधि अंधे-गूंगे-बहरे हो आते हैं, उस कौम को वक्त रहते जाग जाना बहुत जरूरी है और यदि कानून उदासीन बन आए , तब हथियार उठा लेना कतई गलत नहीं है ।
अगर समाज का नेता जुल्म के खिलाफ खड़ा नहीं होता है, तो उसे अपने घर से बाहर ही मत निकलने दो। और अगर निकल आए तो उसके चेहरे पर स्याही पोत दो, गोबर और जूते फेंको। इस तरह की अगर एक-दो बार घटना हो जाएगी , तब ये गुलामी करना छोड़ देंगे। दूसरे समाज के नेताओं को गाली देना बंद कर दीजिए बल्कि अपने वालों को ही जीभर के दीजिए ताकि वे कार्यालयों में दरी बिछाना छोड़ दे। और यही प्रयोग चमचों पर करना होगा।
सामंतवादियों के टारगेट पर तुम्हारी प्रगति, तुम्हारी बहन-बेटियां, तुम्हारा स्वाभिमान,तुम्हारा आने वाला कल और तुम्हारी कौम है। इसलिए अब पुराने गिला-शिकवा भूला के मजबूत गठरी बन जाने में ही सभी का फायदा है। याद रहे, जब समाज एकजुट होगा, तभी जनप्रतिनिधि समाज हित में काम करेंगे।

♀ दिलेर विद्रोही संपर्क-
♀ 96601 07654

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