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- ■खैरागढ़ विश्वविद्यालय के वार्षिक संस्कृत पाठ्यक्रम बैठक में डॉ. महेशचंद्र शर्मा आमंत्रित.
■खैरागढ़ विश्वविद्यालय के वार्षिक संस्कृत पाठ्यक्रम बैठक में डॉ. महेशचंद्र शर्मा आमंत्रित.
■भिलाई-
इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के स्नातक एवं स्नातकोत्तर संस्कृत विद्यार्थिओं के संस्कृत पाठ्यक्रम नवीन शिक्षानीति के तहत तैयार करलिये गये हैं।भिलाई के संस्कृत विद्वान् डा.महेशचन्द्र शर्मा विशेष आमन्त्रित बाह्य विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित हुये ।विश्वविद्यालय से आर्ट्स फैकल्टी की डीन एवं संस्कृत विभागाध्यक्षा डा.मृदुला शुक्ल और संस्कृत की सहायक प्राध्यापिका डा. पूर्णिमा केलकर उपस्थित थीं।एम.ए.संस्कृत और बी.पी.ए.(बैचलर आफ पर्फार्मिंग आर्ट) के पाठ्यक्रमों पर विद्वानों ने विचार विमर्श करके औचित्यपूर्ण निर्णय लिये।चूँकि यहाँ गीत,संगीत और प्रदर्शनात्मक नृत्य और नाट्यकला आदि का पठन-पाठन और शोध किया जाता है इसलिये संस्कृत कोर्स को भी बैचलर आफ पर्फार्मिंग आर्ट्स(बी.पी.ए.) प्रदर्शनात्मक कला स्नातक के रूप में तैयार किया गया है। संस्कृत में भी साहित्य के साथ गीत,संगीत, नृत्यों और नाटक आदि प्रदर्शनात्मक कलाओं का पर्याप्त भण्डार है।इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ केवल छत्तीसगढ़ और भारत का ही नहीं अपितु पूरी एशिया का एक विशेष विशेष विश्वविद्यालय हैं। दुनियाभर के कौने-कौने से कला प्रेमी विद्यार्थी इसका लाभ उठाते हैं।यहाँ रुचि के अनुसार सी.बी.सी.एस.(च्वॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम)पाठ्यक्रम संचालित हैं। बी.पी.ए.के आधार पाठ्यक्रम में आधार भाषा संस्कृत को रखा गया है।बी.पी.ए. प्रथम वर्ष में नाटक स्वप्नवासवदत्तम् और व्याकरण है।वेद,पुराण और गीता को एम.ए.की पृष्ठभूमि के रूप इसी कक्षा में रखदिया है। बौद्ध दर्शन परक और सम्राट् हर्ष वर्द्धन रचित नाटक नागानन्दम् और विश्व प्रसिद्ध नाटक अभिज्ञानशाकुन्तलम् भी स्नातक पाठ्यक्रम में रखे गये हैं। आधुनिक संस्कृत रचनाकारों को भी यहाँ स्थान दिया गया है। परीक्षाओं में आन्तरिक मूल्यांकन का भी प्रावधान है।साथ ही एम.ए.संस्कृत के विद्यार्थियों के लिये शोधप्रवृत्ति, वक्तृत्वकला,पर्यटनक्षमता,सेमिनार और पुस्तकसमीक्षा पर भी जोर दिया गया है। विगतवर्षों से बाह्य विशेषज्ञ के रूप में प्रो.डा. महेशचन्द्र शर्मा विश्वविद्यालय के अकादमिक सहयोगी हैं।ज्ञातव्य है डा.शर्मा उच्चशिक्षा में आचार्य और प्राचार्य के रूप 42 वर्ष की सफल सेवा पूर्ण कर गतवर्ष सेवानिवृत्त हुये हैं। किन्तु पठन-पाठन और अनुसन्धान-लेखन में अभी भी सक्रिय हैं।देश-विदेश की अनेक सफल शैक्षिक यात्राओं के साथ उनकी अनेक पुस्तकें भी ससम्मान प्रकाशित हैं।
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