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■चर्चा में राजनीति : 2024 में राहुल गांधी होंगे प्रधानमंत्री ? -संजय शेखर मिश्र [ कंसल्टेंट एडीटर ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ ]

3 years ago
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एक कहावत है कि ‘पेट भरे की खोटी चाल’। बजट पर सवाल पूछे जाने पर जब सहयोगी मंत्री, जो उप्र से सांसद हैं, जवाब दे रहे होते हैं तो अपने ही सहयोगी को वित्त मंत्री ‘टिपिकल यूपी टाइप’ यानी “ठेठ यूपी छाप” करार देती हैं, वह भी मीडिया के सामने। क्या उन्हें नहीं पता है कि यूपी में चुनाव सिर पर हैं और इसका चुनाव पर क्या असर पड़ेगा? वही हुआ भी। कांग्रेस ने इसे यूपी की जनता का अपमान करार देते हुए मुद्दा बना दिया। यह एक नमूना भर है, भाजपा की चाल का। मानो सत्ता से जो कुछ भी हासिल हो सकता था, वह सब ‘भर पेट’ हासिल कर लिया गया है और अब आने वाले 20-25 सालों तक आराम करना है! कांग्रेस नेता राहुल गांधी को यह खूब समझ में आ रहा है, मानो उन्होंने भाजपा के ज़रूरत से ज़्यादा भरे पेट का अल्ट्रासाउंड कर रखा हो।

भारतीय राजनीति में राहुल गांधी कोई छोटी-मोटी शख़्सियत नहीं हैं कि कुछ भी बोल दें और जनता हवा में उड़ा दे। हालांकि यह ज़रूरी नहीं कि वह हर बार सही ही हों, जैसे कि वैक्सीन के मामले में वह ग़लती कर बैठे थे और जनता को गुमराह करने के लिए उन्होंने अब तक माफ़ी भी नहीं मांगी है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनकी हर बात ग़लत ही होगी। राहुल गांधी ने बजट के बाद भरी संसद में भाजपा के भरे पेट को ‘उघाड़ने’ में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने यह भी जताया कि वह जो कुछ भी बोल रहे हैं, उसे पूरी निष्ठा और जिम्मेदारी से बोल रहे हैं।

कहा कि इस देश के लिए मेरे खून ने बलिदान दिया है, मेरे नाना पंद्रह वर्ष जेल में रहे, मेरी दादी ने सीने पर बत्तीस गोलियां झेलीं और मेरे पिता का शरीर बम धमाके में बिखर गया, इसलिए मैं इस देश की क़ीमत समझता हूं…। उन्होंने यह समझाने का जतन किया कि कैसे देश की जनता का सारा पैसा बीजेपी सरकार ने अडाणी और अंबानी की तिजोरियों में ठूंस दिया है। बताया कि एनर्जी, इंफ्रास्ट्रक्चर, माइनिंग, टेलीकॉम, एविएशन, पोर्ट… इत्यादि तमाम औद्योगिक क्षेत्रों में कैसे मोदी सरकार ने अडाणी और अंबानी को वरीयता देकर देश के छोटे-बड़े अन्य उद्यमियों का सूपड़ा साफ़ कर दिया। उन्होंने खुलकर कहा कि बीजेपी सरकार ने देश की पूंजी को अडाणी, अंबानी सहित अपने कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों के हवाले कर दिया है। जबकि छोटे और मंझौले उद्योग-धंधों का सफ़ाया कर दिया गया। इससे बेरोज़गारी बेतहाशा बढ़ी है। क्योंकि लघु और मध्यम उद्योग ही देश में रोज़गार का बड़ा साधन रहे हैं। कहा कि मोदी सरकार मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं का ढोल पीटकर केवल अपनी पीठ थपथपाने का काम करती आई है, जो रोज़गार देने में सफल नहीं रही हैं…।

अब जनता सोचती होगी कि मोदी सरकार ने आखिर अडाणी और अंबानी की तिजोरियां क्यों भरी होंगी? यदि वाकई में भरी हैं, जैसा कि राहुल गांधी ने संसद में कहा! और क्या यह भ्रष्टाचार का कोई नया तरीका था? या भारत का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला? जो भी हो, राहुल गांधी की मानें तो अडाणी-अंबानी का अगले 20-25 सालों का कोटा तो पूरा हो चुका। वहीं, राहुल गांधी की बातों से ऐसा समझ में आता है‌ मानो मोदी सरकार अब खा-पीकर निकल लेने की तैयारी में है! मान लीजिए कि ऐसा न भी हो, तो भी जनता तो जानना चाहेगी कि मोदी सरकार आखिर क्यों कर देश की पूंजी को अपने चहेते उद्योगपतियों के हवाले करेगी? ऐसा करके उसे क्या हासिल होगा? यदि पैसा गया भी तो अंबानी और अडाणी की जेबों में ही गया, मोदी और भाजपा की तो नहीं? उन्हें आखिर क्या मिला?

लिहाजा राहुल गांधी को ज़रा और खुलकर समझाना चाहिए था, जो उन्होंने नहीं किया। बस इतना कहा कि क्योंकि यह उद्योगपति चुनाव में भाजपा की मदद करते हैं। बहरहाल, राहुल गांधी को जो कहना था कह दिया, अब जनता अपना गणित बैठाती रहे। हालांकि वह अरसे से मोदी सरकार को ‘सूट-बूट वाली सरकार’ ही कहते आए हैं। वहीं भाजपा के बारे में यह पुरानी धारणा रही आई है कि यह ग़रीबों की नहीं बल्कि व्यापारियों की पार्टी है। किसान विरोधी पार्टी का तमगा भी पुराना है। अडाणी-अंबानी से यारी पर विपक्ष के हमले और फ़िर किसान कानून के बाद यह धारणाएं और मजबूत होती गईं। अंततः मोदी सरकार को किसान कानून वापस लेना पड़ा।

राहुल गांधी की मानें तो भाजपा ने देश को संकट में डाल दिया है। न केवल अंदर से खोखला कर दिया है, बल्कि बाहर से भी। उन्होंने संसद में कहा कि देश अंदर से भी टूट गया है और बाहर से भी। मोदी सरकार की विदेश नीति ने हर मोर्चे पर, खासकर चीन और पाकिस्तान के परिप्रेक्ष्य, देश को अब तक के सबसे बड़े संकट में ला खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि हमें (कांग्रेस को) लंबा अनुभव है, हम आपकी सहायता को तैयार हैं, आप हमारी सहायता लीजिए और देश को इस संकट से उबारिये। देश को अमीरों के हिंदुस्तान और गरीबों के हिंदुस्तान में मत बंटने दीजिए, इस खाई को कम करिये। नहीं तो भीषण स्थिति उत्पन्न होगी, जिससे निपटना मुश्किल हो जाएगा। अब सवाल यह भी कि राहुल गांधी ने जो दुखड़ा संसद में रोया और अपनी चिंता देश के सामने रखी, वह इसलिए तो नहीं कि कांग्रेस को इस बात का भान हो चला है कहीं भाजपा के किए का भुगतान उसे न करना पड़े?

एक तरह से राहुल गांधी यह भी जताना चाह रहे थे कि भाजपा ने जो करना था कर लिया, अब सब-कुछ ठीक करने की आवश्यकता है, जिसके लिए कांग्रेस के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। यह आत्मविश्वास राहुल गांधी के इस भाषण में साफ़ दिखाई पड़ा। ऐसा लगा कि नेहरू, इंदिरा और राजीव का उत्तराधिकारी उसी कद और हैसियत से बोल रहा है मानो वह देश की बागडोर संभालने को तैयार खड़ा है। भाजपा सरकार की ग़लतियां गिना रहा है ताकि सनद रहे। बड़ी बात यह कि न तो सदन में और न ही सदन के बाहर, राहुल गांधी के इस करारे हमले का भाजपा उसी अनुपात में ज़वाब न दे सकी। इतना भर कह देना क्या काफ़ी है कि हम राहुल गांधी की बातों को गंभीरता से नहीं लेते? आप भले ही न लें, लेकिन आप यह क्यों मान बैठे हैं कि जनता भी नहीं लेगी? राहुल गांधी के कहने पर जब जनता वैक्सीन लगवाने से गुरेज कर सकती है, भले ही तब जान पर ही क्यों बन आई थी, तो तब वह सब भी मान सकती है, जो उन्होंने संसद में कहा है!

ख़ैर, बजट के बाद उधर मोदी जहां यह बता रहे थे कि किसानों को रसायन मुक्त खेती की ओर बढ़ाने के लिए बजट में दीर्घकालीन प्रावधान किया गया है और गंगा किनारे कारिडोर बनाकर जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा ताकि गंगा रसायन और प्रदूषण से मुक्त रहे, वहीं उप्र के प्रमुख अखबार दैनिक जागरण ने एक पुरस्कार विजेता तस्वीर छापी, जिसमें बनारस, यानी मोदी के संसदीय क्षेत्र में एक सफाईकर्मी को लबालब भरे गंदे सीवर के होल में आकंठ डूबे दिखाया गया है। जाहिर है कि सीवर की इस तरह से मैनुअल सफाई देश में प्रतिबंधित है और जोखिम भरे इस काम को मानवीयता के विरुद्ध आचरण माना गया है। लेकिन क्या प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र में इस कानून का पालन नहीं होता है? और क्या राष्ट्रवादी भक्ति से ओत-प्रोत इस अख़बार को यह बात नहीं पता थी, जो उसने किसी यूट्यूबर के मंच द्वारा पुरस्कृत यह तस्वीर तो प्रमुखता से छाप दी, लेकिन यह नहीं छापा कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में अब भी सीवर की मैनुअल सफाई आखिर क्यों हो रही है? ख़बर तो यही थी। लेकिन राष्ट्रवाद और कमाल की राष्ट्रवादी पत्रकारिता का यह एक और बेमिसाल नमूना भर है।

बहरहाल, जनता को राहुल गांधी से यह जरूर पूछना चाहिए कि जब कांग्रेस सरकार में आएगी, जब भी आए, तो क्या जनता का पैसा तिजोरियों से निकाल कर जनता के खजाने में डाला जाएगा? हर एक के खाते में पंद्रह लाख न सही, लेकिन सरकार कोई लेखा-जोखा करेगी कि नहीं? राहुल गांधी जिस तरह से ग़रीब और अमीर हिंदुस्तान के बीच की खाई का जिक्र कर रहे थे, लगता यही है कि लोकसभा चुनाव का एजेंडा उन्होंने सेट कर दिया है। यह चुनाव सूट-बूट बनाम गरीब की वैचारिक लड़ाई की थीम पर हो सकता है। भाजपा के धर्मशास्त्र को कांग्रेस अर्थशास्त्र के बूते पीछे छोड़ने को आतुर है। इसका सफल प्रयोग किसान आंदोलन के रूप में कर भी चुकी है। देखते हैं कि भाजपा और संघ के पास इसका कोई तोड़ है कि नहीं। एक मजेदार बात और, मोदी ने 2014 और 2019 के चुनाव में राहुल गांधी को शहजादा कहा था। राहुल ने उन्हें संसद में शहंशाह करार दिया और कहा कि मोदी देश के संघीय ढांचे को परे रख इस पर किसी शहंशाह की भांति हुकूमत कर रहे हैं, जो कि अशोक से लेकर अंग्रेज़ हुकूमत तक किसी ने भी नहीं किया। मोदी खुद को शहंशाहों का शहंशाह मान बैठे हैं…। कुलमिलाकर राहुल गांधी अपने इस भाषण से गहरी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं। यह भाजपा के लिए चिंता का विषय हो सकता है।

■संजय शेखर मिश्र
■संपर्क-
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