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■आयोजन : ‘स्वयंसिद्धा’… ■छायाचित्र पर लेखन कार्यशाला संपन्न.
♀ मुख्य अतिथि प्रमोद यादव
♀ छायाकार प्रमोद यादव ने कहा-‘आदिवासी जनजीवन’ मेरा सबसे फेवरेट विषय है.
“तू मेरा अविनाशी बालक
हिन्द धरा का तू अभिमान
दुग्ध पान कर खेल धूल में
मुझको हैं बहुतेरे काम
इस संझा ढ़लने के पहले
धान रोपना है बस काम
धन अर्जन कर लौटूंगी जब
खील खिलौनें होंगें न तब
फिर तेरी माँ और तू
साथ हंसेंगे,मिलजुल कर
तेरी ही ख़ातिर मेरे लल्ला
घाम ओढ़ तपती दिन रैन”
यह पंक्तियां लिखी गई
स्वयंसिद्धा एनजीओ के साप्ताहिक स्तंभों के दौरान मातृ दिवस पर आयोजित लेखन कार्यशाला में दीपा सिंह द्वारा।
एक अभिनव प्रयोग के अंतर्गत स्वयंसिद्धा ने अंचल के विख्यात फोटोग्राफर श्री प्रमोद यादव जी की खींची तस्वीर पर लेखन कार्यशाला का आयोजन किया।
इसमें संस्था के सदस्यों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। तकरीबन 190 प्रतिभागियों ने अपने विचार लिखें।
श्री प्रमोद यादव भिलाई इस्पात संयंत्र से सेवानिवृत्त फोटोग्राफर है एवं छत्तीसगढ़ में एक जाना माना नाम है।
छत्तीसगढ़ की अग्रणी महिला संस्था स्वयंसिद्धा की डायरेक्टर डॉ सोनाली चक्रवर्ती ने बताया कि सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रयोग के साथ हम लगातार गृहिणियों की ग्रूमिंग व व्यक्तित्व विकास के क्षेत्र में कार्यरत हैं जिसमें सप्ताह में हर एक दिन साहित्य,संगीत
संस्कृति,फोटोग्राफी एवं सिनेमा पर चर्चाएं व विचार गोष्ठियां आयोजित की जाती हैं जो महिलाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम बनती है। इसी के अंतर्गत मातृत्व दिवस पर आयोजित इस कार्यशाला में हमने प्रमोद यादव जी की तस्वीर पर लेखन कार्यशाला आयोजित की।
जिसमें सबने स्वरचित पंक्तियां, क्षणिकाएं,छोटी कविताएं भेजी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री प्रमोद यादव जी थे।
माँ इस सारे जग में,
तुमसे सुंदर कोई नही
तुम पशु,जलचर,खग में,
नदियों की कल-कल मे।
हो धरा के कण-कण में,
तुम प्रकृति के हर सृजन में।।
माँ..! इस सारे जग में,
तुमसे सुंदर कोई नहीं।।
-मेनका वर्मा
“आंखे खोली जबसे मैंने भगवान का रुप तुझमे पाया है! मेरी माँ की आंखों में सारा जहाँ समाया है!
पिया तेरे दुध को मां मुझमे तेरा कर्ज है!
तेरा श्रवण मै बन जाऊ, तेरा पूजा मेरा फर्ज है!”
-दीपा तिवारी
इस धरा में शीतल छांव सी,
पतवार हो तुम हर नाव की।।
लगती बिन साज-श्रृंगार के भी,
सुंदर जैसे तुम चांद सी।।
तेरी महिमा कैसे गाऊं मां,
नि:शब्द हूं अब कोई बोल नहीं।
तेरा जो अलौकिक तेज है मां,
उसके आगे कोई लोक नहीं,
-नीतू साहू
मेरी हर कदमों में तू है, मेरी हर शब्दों में तू है,
तुझे क्या मैं रचू……
ममता की अंबर है तू
फैलाकर आंचल कुटुंब को
प्रेम सुधा- सा आलिंगन करने में
तपती धूप को छांव में बदलने में
तू श्रेष्ठ है मां
स्वयं सृष्टा भी स्तब्ध है तुझे रच कर…….
क्या मैं रचू इस श्रेष्ठ रचना पर…….
-काकोली चौधरी
मां
भूखा पेट अधंनग शरीर
मां कि ऐसी विशाल
तस्वीर
खुद भूखी पर ललना को
करा रही
स्तनपान
चेहरे के अद्भुत है भाव
थाम लला को
खूद को
भूली
ईश्वर कि है यह अनुठी
रचना मां ही है
जग मे
देवी स्वरूपा
मां सा जग मे कोई न
दूजा
-शीलू लुनिया
बहुत सुंदर तस्वीर,निश्चलता,ममता ,वत्सलता ओर बहुत कुछ कहती हुई तस्वीर!माँ की ममता को दर्शाती हुई तस्वीर😍🙏श्री प्रमोद यादव जी को🙏👏👏👌
सिर्फ रिश्ता नही
एक भाव ………..
एक अहसास है माँ,
जीवन के तपते रेगिस्तान में
ठंडी घनी छाँव है माँ,
सर्दियों की नर्म धूप सी तो
ग्रीष्म में ठंडी बूँद है माँ ।
मुश्किलों के बीच भी मुस्कुराती,शब्दो मे बांधी न जा सके !
ऐसी एक मिसाल है”माँ”।।
-सीमा गुप्ता
छायाकार प्रमोद यादव जी ने कहा कि
बैगा जनजाति की काफी तस्वीरें ली मैने। लगभग चार दशक पहले नारायणपुर बस्तर गया था फोटोग्राफी करने।1976 की बात होगी। एक राष्ट्रीय पत्रिका के लिए गया था तब मैं भिलाई इस्पात संयंत्र का मुलाजिम नहीं था।श्वेत श्याम का दौर था वहां मैने आदिवासी जन जीवन की ढेर सारी तस्वीरें ली जो उन दिनों के कई मशहूर पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।मेरा सबसे फेवरेट विषय “आदिवासी जन जीवन “ही रहा है इसलिए इसमें काम करने में मुझे काफी संतुष्टि मिलती है।यह तस्वीर लगभग तीन दशक पहले की है।
सभी प्रतिभागियों ने मां की ममता,सरलता,सहजता,
पर बातें की है.सबने मां के रिश्ते को सर्वोपरि माना है जो सचमुच है भी।कहते हैं ना कि भगवान हर जगह है..हां..बिलकुल है..भगवान मां की सूरत में हर जगह व्याप्त है..हर जगह मौजूद है.. मां के कितने ही रूप हैं.. कहीं सीता है तो कहीं दुर्गा ,कहीं यशोदा है तो कहीं लक्ष्मी.. मां और बेटे के संबंध को तो शाश्वत माना गया है..एक मां अपने बच्चे के लिए क्या कुछ नहीं करती ? वो भी बिना किसी स्वार्थ के..जन्म देने के पहले भी और बाद भी इस रिश्ते को जीने वह अपना जीवन निछावर कर देती है ।
किसी ने निराला जी की पंक्तियों के साथ इस तस्वीर की कल्पना की है तो किसी ने इस तस्वीर को एक मेहनतकश श्रमजीवी माँ की संज्ञा दी है एक ने मां की तुलना प्रकृति के साथ की है।दोनों सहनशील होते हैं।
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