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■समीक्षा : ‘देवकी का दर्द’
■कृतिकार सूर्य प्रकाश कुशवाहा
■समीक्षक डॉ. नीलकंठ देवांगन
अपनी प्रिय सहधर्मिणी स्व. सुदामी देवी को समर्पित यह कृति उसकी याद में, वियोग के दर्द में कृतिकार के हृदय का प्रस्फुटन है | इसमें तीन कहानियां और आठ कवितायें हैं | कवितायें भावनाओं के समंदर में गोते ही नहीं लगाती बल्कि संवेदना और सत्य के उस यथार्थ का साक्षात्कार कराती हैं जो उसका भोगा हुआ है |
” जब भी अकेला हो जाता हूं
तेरे गम में खो जाता हूं | ”
जनम जनम साथ निभाने की बात करने वाली प्रिय पत्नि के असमय साथ छोड़ देने की विरह वेदना में व्यथित मन उसकी याद में खोया एक अजीब सा खालीपन का अहसास कराता है-
अमृत घट है भरा प्रिये,
कोठी कोठार सब भरा प्रिये |
बाग बगीचा सब हरा प्रिये,
बस बाग की मालन नहीं प्रिये | ”
‘ देवकी का दर्द ‘ कहानी में काल्पनिक नामों में ही सही, देवकी- यशोदा के पौराणिक सत्य का उद्घाटन हुआ है | जैसे देवकी का स्वयं का पुत्र कृष्ण होते भी उसे वात्सल्य सुख से वंचित होना पड़ा था | सारा सुख और आनंद यशोदा को मिला था वैसे ही राम महतो की पत्नि सुखी बाई के पुत्र जनमते ही ऐसे रोग से ग्रसित हुई कि अपने दिल के टुकड़े को दूध पिलाने, दुलारने, पुचकारने,वात्सल्य प्रेम से वंचित रहना पड़ा | उसके घर झाड़ू पोंछा करने वाली चैती बाई खुद के पुत्र होते उसके पुत्र का भी लालन पालन बखूबी किया | दुग्ध पान कराया | दोनों को गोद में बिठाकर वात्सल्य, लाड़- प्यार देकर यशोदा के चरित्र को चरितार्थ किया | वह कहती-
” मैंहा दोनोंच के दाई हंव, बेटा हो, दोनोंच के | ”
दुखी बाई ‘ उस ‘ सुख से वंचित रही | चैती बाई को यशोदा मैया के रूप में बाल लीला का आनंद पाते देख अपने दर्द को पीकर रह जाती | दर्द सहना उसकी नियति थी |
‘ अछूत ‘ गरीबी में जीते, जिंदगी से संघर्ष करते, समाज से तिरस्कृत, अपमानित, दलित, दरिंदगी का शिकार, तंगहाल जिंदगी जीने मजबूर किशोरवा ( किशोर ) और उसकी मां की दर्द भरी व्यथा कथा है | एक तरफ जात पात का भेद रखने वाले, कुलीन कहलाने वाले किस कदर उन पर जुल्म ढाते, गरीबी में जीने विवश करते इसका हकीकत बयां है | दूसरी तरफ रहम दिल इंसान जिनमें संवेदना, दया के भाव हैं जो मदद के हाथ बढ़ाते | हम वय लेखक और किशोर में मित्रता हो जाती लेखक की मां किशोर और उसकी मां की दयनीय दशा पर तरस खा उन्हें मदद करती है, सहारा बनती है | पर पूर्ण रूप से समान नहीं मान पाती | सामाजिक मर्यादा का ख्याल था | तभी तो खाना थाली में देने के बजाय पतरी में परोसती है | ” मां! काकी को थाली में खाना क्यों नहीं दी? ” मां के बोलने के पहले ही चैती बाई बोल पड़ी- ” ना लाला ना | अभी लरिका हो ना | ऐही लिए नहीं जानते हो | हम थाली में कइसे खा सकीत हई | हम अछूत जे हई न | ”
इस कहानी में व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में लेखक अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज कराई है | निजी अनुभवों की दुनिया को बसाया है | तीखी प्रतिक्रिया दी है | जीवन की सच्चाई को गहराई से बताने के साथ छानबीन का प्रयास भी है | जिंदगी के टूटते मूल्य और आदर्श के अंधियारा में भटकते लोगों का वास्तविक चित्रण है | जमीनी हकीकत है |
‘ मित्रता ‘ बड़ी मार्मिक कहानी है | सच्चा साथी तो वही है जो विपत्ति में साथ दे | मुसीबत में फंसे चौधरी को गांव के ठाकुर और मकबूल मियां से धोखा मिला था | अपनी बड़ी बेटी के ब्याह के लिए जमीन के एवज में उसे कर्ज लेना पड़ा था | ब्याज सहित चुकाना उसके लिए नामुमकिन था | तब उसका सच्चा साथी हितैषी बन नंदलाल ने उसे संकट से उबारा और उसकी दूसरी बेटी का विवाह बिना कोई तामझाम के, दिखावा के करवा कर समाज में एक नजीर पेश किया | सुदामा उसके अहसान के नीचे दबने के बजाय उसके घर काम करके अपने स्वाभिमान का परिचय दिया |
लेखक ने कृष्ण सुदामा की मित्रता को इस कहानी के माध्यम से चित्रांकित किया है | समाज में फैले अंध विश्वास, कुरीति, कुप्रथा, दकियानूसी विचार को प्रकट कर उससे निजात पाने की नसीहत दी है | उनके विचार यथा स्थिति के खिलाफ संघर्ष करता नजर आता है | उनमें वर्तमान को उर्जस्वित करने की क्षमता है |
‘नारी’ कविता में नारी की महिमा को प्रतिपादित किया है –
“जहां नारी पूजी जाती है,
वहां देवतावों का वास होता है |
जहां नारी प्रताड़ित होती है,
वहां परिवार का विनाश होता है |”
‘माघ की पूनम रात ‘ में शहर वासियों की अपेक्षा वनवासियों ग्रामीणों को भाग्यशाली बताते बसंत के उल्लास को व्यक्त किया है | प्रकृति का सुंदर शब्द चित्र खींचा है | सरस्वती वंदना, याद, हे भीमराव, पाकिस्तान अब तो सोच, जागो जवानों, फूल खिलते रहेंगे में भी निहित संदेश हैं | कवितायें छोटी जरूर हैं पर अर्थ विन्यास की दृष्टि से बड़ी दिखाई देती हैं |
रचनाकार के पास जिंदगी का गहरा अनुभव है, विचार की गहनता है, वैचारिक परिपक्वता है | इस सत्य को स्थापित करता है कि आदमी कहीं भी रहे उनकी मानवीय उष्मा हर कहीं जिंदा रहनी चाहिए –
“अगर खून है, बुद्ध- फुले का तुममें
मानवता का दीप जलाना तो सीखो |”
भाषा के स्तर पर रचनायें सहज और सरल हैं | इसलिए आसानी से हृदयंगम होती चली जाती हैं | इसमें हिंदी, छत्तीसगढ़ी, बिहारी का समावेश है | पहली कृति होते भी उनके शिल्प कथ्य को और भी अर्थवेत्ता एवं संप्रेष्णीयता प्रदान करते हैं | उनकी भावना एवं अंतर्वेदना समय के साथ जूझती दिखाई देती हैं | कथ्य और शिल्प दोनों ही समृद्ध हैं |
कृति की कहानी, कवितायें पाठकों के मन मस्तिष्क को आंदोलित करेंगी, दिल को छुयेंगी और रचनाकार को पहचान दिलायेंगी, ऐसी मेरी शुभ आशा है |
■समीक्षक संपर्क-
■84355 52828
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