- Home
- Chhattisgarh
- ■इस माह की कवयित्री : बांग्ला की सुप्रसिद्ध कवयित्री वाणी चक्रवर्ती.
■इस माह की कवयित्री : बांग्ला की सुप्रसिद्ध कवयित्री वाणी चक्रवर्ती.
[ ●बांग्ला की सुप्रसिद्ध कवयित्री वाणी चक्रवर्ती का जन्म आसाम में हुवा,मगर विवाह के बाद वे इस्पात नगरी भिलाई में स्थायी रूप से रहने लगी. ●वाणी चक्रवर्ती अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं. ●वाणी चक्रवर्ती की 4 काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी है. ●उनकी कविताएं देश-विदेश की तमाम बांग्ला पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित होते रहती है. ●वर्तमान में वाणी चक्रवर्ती ‘बंगीय साहित्य संस्था’ में उपसभापति हैं और ‘मध्यबलय’ पत्रिका के संपादन में सहयोग कर रही हैं. ●वाणी चक्रवर्ती का लेखन 1995 में ‘मध्यबलय’ पत्रिका से हुआ. ●स्कूली अध्य्यन में वाणी जी दीवाल पत्रिका का संपादन किया करती थी,उनकी विशेष रुचि पुस्तकें पढ़ना और चित्रकारिता में है. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ में वाणी चक्रवर्ती की पहली रचना, जिसे हिंदी में अनुवाद बांग्ला के ही लेखक कवि शुभेन्दु बागची ने किया.
-संपादक ]
♀ ख्वाहिशों को सज लेने दें
[ आज़ एक्टू साजुक ]
■मूल कविता : वाणी चक्रवर्ती
■अनुवाद : शुभेन्दु बागची
तमन्नाओं को हो जाने दें मनमौजी …
क्लान्ति रोक रहा दिल दरिचा तो क्या…!
पहली किरण में जब फूलों ने ली अंगड़ाई…
पराग उड़ाने का ज़श्न है हवाओं में…
शाम ढले…, ज़रा आहिस्ता…
खो जाएं चलो संगीत के सुरूर में…!!
शब-ए-हयात ठहर जाएं गर मोहब्बत के आशियाने में!
सितारों की दुनिया छू लेने दो लफ़्ज़ों को…
मौसिकी हो जब अंग-अंग में…
पिघलती चांदनी में, बरसने दें फूलों को!!
ऐसे में ख्वाहिशों को सज लेने दें रंगों से…
आशिकी की फिज़ाओं में…!!
●●●
♀ नूर-ए-आशियाना
[ मोहमय आशियाना ]
■मूल कविता : वाणी चक्रवर्ती
■हिंदी अनुवाद : शुभेन्दु बागची
मेरी अज़ीज़ ख्वाहिशें…,
जाने क्यों अनजानी सी लग रही…!
बदल रहा हूं मैं…,
मेरी रूह भी बदलती रही…!!
रक़्स-ए-सबा…; दूर तलक…
सागर की लहरों को निहारता रह गया!
खुशियों के चंद पन्नों को…
महदूद जीवन से, उड़ाकर चला गया !!
रहबर कोई हो.. न हो…
चलते-चले जाना है…चलते ही जा रहा!
कयाम किया किसी सराय पर…और,
दिल के अरमानों को भिगोता जा रहा!!
एहसासों में है एक सूनापन…
ज़ेहन की गहराइयों में…!
कुछ चेहरे हैं, हैं एक टीस…आज भी,
दिव्य रौशनी की आगोश में…!
है शबनम की बूंदों पर पहली किरण…,
नजरें झुकाकर.. चमेली है, चांदनी रात में!
ज़िन्दगी की दहलीज़ पर…
आज भी हैं, ख्वाहिशें इन्तज़ार में…!!
नाकाम हर कोशिश है…,
कैसे भुलाऊं वो नूर-ए-आशियाना!!
●●●
♀ कहना है
[ जवाब देबो ]
■मूल कविता : वाणी चक्रवर्ती
■हिंदी अनुवाद : शुभेन्दु बागची
हसीन जिंदगी; महकती सुबह की इनायत…
मन मेरा परिंदा…; आंखों में ख़्वाब-ए-हयात!!
अलबेला “अचिंतो”, मासूम चेहरा,
सवालों की झड़ियां,…हुई ग़म-ए-दिल से मुलाकात!!
किया था तुमने जाने-अंजाने जो सवाल…
मायने उसका समझने लगी हूं!
अनसुनी बातों की गहराईयों को
आज नापने चली हूं!!
युनिवर्सिटी के रास्ते कभी पूछा था जो…;
ज़िन्दगी के रास्ते..बताने चली हूं!
ढलती शाम, मैं मुंतज़िर…
उदास है रैन बसेरा; जिंदगी मुंतशिर!!
जिगर में मेरे…,
क्या है, गम का कोई प्याला ?!
जानना चाहा था तुमने…।
तोड़ कर उसे छलकाने चली हूं!
“अचींतो”…
था तुम्हारे कयासों में, या सच्चाई..!
सांसों में…
फ़ासलों की ये गहराई !!
कहां हो तुम !?
कहना है आज मुझे…,
वक़्त के सहारे…,
ग़म भी पीने लगी हूं!!
●●●
■शुभेन्दु बागची
■वाणी चक्रवर्ती संपर्क
[ 98264 31944 ]
■शुभेन्दु बागची संपर्क
[ 62601 48065 ]
◆◆◆ ◆◆◆ ◆◆◆