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- ■छत्तीसगढ़ी में रचना : डॉ. पीसी लाल यादव [गंडई छत्तीसगढ़]●
■छत्तीसगढ़ी में रचना : डॉ. पीसी लाल यादव [गंडई छत्तीसगढ़]●
♀ ग़ज़ल
तोर-मोर सबके मन हा खोंटा हे।
चेहरा ऊपर चेहरा अउ मुखोटा हे।
अंतस म घुसरे दुरयोधन दुससान
कपटी सकुनि के हाथ म गोंटा हे।
कइसे फुरनावय पिरीत के पिलवा
मंग्गर के डाढ़ा मया के टोंटा हे।।
थर-थर काँपत हे माड़ा म बघवा,
कोलिहा-खेखर्री के हाथ सोंटा हे।
जात-धरम के नाँव म होत झगरा,
असत के मुँह म सत के पोटा हे।।
चर-चर हरहा भोगावत हे बरहा,
हंडा ल कलेचुप डुमत लोटा हे।।
♀ दिल हिंदुस्तान बसा
तैं मनखे अस येखर,पहिली पहिचान बता।
तेखर पाछु जात-धरम भगवान बता।।
जिनगी म सुख-दुख के, बरोबर बाँटा हमर।
बाट म बोंथन एक दूसर के काँटा काबर?
राखन करेजा कस कुटका मितान बना।
तैं मनखे अस येखर,
पहिली पहिचान बता।
परोसी के घर आगी,ढिले परोसी काबर?
मया रहत ले मनखेपन के निमोसी काबर?
मंदिर-मस्जिद के पहिली, दिल हिंदुस्तान बना।
तैं मनखे अस येखर
पहिली पहिचान बता।।
आगी खा के काबर कोनो अंगरा उगले ?
भाईचारा के हाड़-मास ल काबर चगले?
सुमता के रद्दा रेंग, मया-ईमान बता।
तैं मनखे अस येखर,
पहिली पहिचान बता।
मुरकेट के मार दे, मन के द्वेस घिरना ल।
ओगरन दे अंतस ले,मया-पिरीत के झिरना ल।
एके फुलवारी के फूल, कोन कहाँ बिरान बता।
तैं मनखे अस येखर
पहिली पहिचान बता।।
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