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■संत कबीर जयंती पर दोहे : महेश राठौर ‘मलय’.
3 years ago
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सदा क्षीर को क्षीर ही,
और नीर को नीर।
कड़वा किंतु सत्य कहा,
निर्गुण भक्त कबीर।।
नीमा-नीरू के लला,
असली साधक, संत।
सबकी परत उधेड़ दी,
छद्मी संत, महंत।।
‘लोई’ जीवन-संगिनी,
‘कमल, कमाली’ अंश।
अनुयायी संतान सब,
फैलाये गुरु-वंश।।
कविता, कपड़ा ध्यान से,
बुनते दास कबीर।
जिह्वा-तरकश में रखे,
व्यंग्य वचन के तीर।।
साईं से धन को कहा,
सीमित, नहीं अकूत।
जितने में सब निभ सकें,
पाहुन, पत्नी, पूत।।
औरा इनका सूर्य-सा,
और प्रभाव प्रचंड।
अपने दर्शन से किया,
खंड-खंड पाखंड।।
दे गए उपदेश परम,
गुरु कबीर साहेब।
भीतर भक्ति भरी रहे,
रिक्त भले हो जेब।।
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