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●लघुकथा – डॉ. बीना सिंह ‘रागी’
♀ अधिकार
विनीता प्रतिदिन सुबह 5:00 बजे बिस्तर से उठ जाया करती थी मगर आज 7:00 बजे तक वह बिस्तर से उठ नहीं पाई सरकारी नल से पानी आने की आवाज सुनकर अचानक उठ बैठी मन से सुस्त थकी हारी खुद को महसूस कर रही थी बीते कल की वाक्यों से वह मानवता समानता human rights wuman rights की परिभाषा समझने की कोशिश अंदर ही अंदर कर रही थी
पतिदेव विवेक के दूर का रिश्तेदार जो 5 महीने से यहीं रह रहा है क्योंकि उसका तबादला बंगाल से छत्तीसगढ़ हो गया रिश्तेदारी निभाने के चक्कर उस से बढ़कर अपना उदार व्यक्तित्व दिखाने की लालसा में विवेक ने सोहन को यहां आराम से रहोगे खाना-पीना देखरेख हो जाएगी यह कह कर अपने घर में रहने की इजाजत दे दी क्योंकि यह सब करने के लिए विनीता जो थी
कल यूं हुआ वाश बेसिन में पान और गुटके के दाग देखकर विनीता को बहुत बुरा लगा क्योंकि सफाई तो उसे ही करनी पड़ती थी क्रोध में आकर उसने पति विवेक से कहा यह सब मुझसे नहीं होगा इतने महीने से अपने रिश्तेदार को बुला कर रख लिए हो अगर मैं ऐसा किसी को रख लूं तो आपको कैसा लगेगा इतना सुनते हैं पतिदेव आग बबूला हो गए कहने लगे तुम्हारी इतनी हिम्मत तुम किसी को बुला कर रखोगी यह सुनकर विनीता टी टेबल पर रखे हुए चाइना बोनके कप पर अपनी तस्वीर देखकर घृणा से भर उठी उसके मन में यूं लगा कप उठाकर दीवाल पर मार दे पर वह खामोश होकर अपना अस्तित्व खुद में टटोलने लगी पुरुष महिला मानवता समानता human right wuman right बराबरी का अधिकार आखिर यह सब क्या है जिसकी जगह ख्यालों में भी नहीं हो दैनिक जीवन में कैसे हो सकता है
●लेखिका संपर्क-
●62663 38031
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