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- ०हरेली के तिहार हरे हरियाली उत्सव. ०धरती दाई करे पुकार, बिरवा जगाके करव सिंगार. – अशोक पटेल ‘ आशु ‘ [शिवरीनारायण, छत्तीसगढ़]
०हरेली के तिहार हरे हरियाली उत्सव. ०धरती दाई करे पुकार, बिरवा जगाके करव सिंगार. – अशोक पटेल ‘ आशु ‘ [शिवरीनारायण, छत्तीसगढ़]
ए कबिता हर इहाँ सुग्घर लागत हे जिहाँ
धरती ल हरा भरा बना के परियावरन ल सुरकछा सरंक्षन और ओखर संवर्धन करना हे,आउ अधिक से अधिक बिरवा जगाके हरियाली के उत्सव मनाय मनाना हे।साथ ही छत्तीसगढ़ के प्रमुख फसल धान के अब्बड़ उपज के कामना करके उत्सव भी मनाना हे।
हरेली पर्व ले तंत्र-मंत्र के सुरवात:-
छतीसगढ़ के प्रमुख तिहार म एक हरेली पर्व हरे जेहर सबसे पहिली इही ल मनाए जाथे, जेमा छत्तीसगढ़ के संस्कृति इहा के रीति- रिवाज ,नेंग,येखर धरोहर ह इसपस्ट रूप ले झलकथे।हरेली तिहार सावन अमावस्या के दिन मनाय जाथे।आउ ऐसे मान्यता हावे कि इही दिन ले रात के बेरा म गांव के बैइगा मन के दुवारा
यंत्र-तंत्र-मंत्र जोतिष ज्ञान के शिक्षा जवान लईका मन ल प्ररदान करे जाथे।एहर सावन पुन्नी तक चलथे। आउ इही दिन ए बइगा गुरु मन अपन चेलामन ल परीच्छा ले के योग्य चेला ल गुरु मंत्र परदान करथे।
हरेली नकारात्मक प्ररकोप ल दूर करथे:-
हरेली तिहार के सम्बंध म ये माने जाथे कि हरेली तिहार हर नकारात्मक प्ररकोप ले छुटकारा देवाथे।बुरा शक्ति मन के एहर समन करथे।आउ एखरे खातिर गांव के बइगा-गुनिया मन के दुवारा गांव के सब्बो घर के मोहाटी, देवालय आउ चौउखट म लीम के नान्हे-नान्हे डारा ल खोंचे जाथे। ताकि आने वाला पूरा बछर भर गांव-घर-परिवार म खुसियाली बने राहय।
ग्राम देवी-देवता आउ कुलदेवता के
पूजा-अर्चना:-
हरेली तिहार के दिन गांव-गांव के मंदिर म बिराजीत देवी-देवता मन के पूजा-अर्चना करे जाथे।आउ ये बइगा मन गांव के सुरक्षा बर अरजी-बिनती करथें। आउ गांव के नकारात्मक शक्ति मन ल रात म गांव,सीयार के बाहिर ससम्मान बिदा करथें।एती ग्रामवासी मन
आपन-आपन घर के कुलदेवता ल नरियर चढ़ाके गुर आउ चीला म भोग लगाथे।ताकि ओ मन के घर म फसल,धन-धान्य आउ खुसयाली बने राहय।
खेती-उपकरन के पूजा:-
हरेली के दिन हमर गांव के किसान भाई मन आपन खेती उपकरन के साफ -सफाई करथे, आउ पूजा-अर्चना करथे।जेमा नागर कोपर,जुड़ा,रापा,कुदारी मन होथे।एखर सम्बन्ध म ये मान्यता हावे की हरेली तिहार के आत ले खेत म धान के बियासी हो जाय,आउ ये पाय के आपन खेती के हथियार मन ल धो-धा के ओखर पूजा करके ओला सुरकच्छित रख दे।आपन कुल-देवता ल सुरता करके ए हथीयार ह उमन ल लाभदायक सिद्ध होय।अंत म गुर-चीला से भोग लगाके ओखर प्ररसाद ल गरहन करे जाथे।
गेंड़ी के नेंग आउ बैईला पूजा के चलन:-
हरेली तिहार के दिन गेंडी चढे के आउ बैईल के पूजा हर बिसेस आकरसन के केंद्र रथे।, ए दिन ग्रामीण मन बिहनीया ले गेंडी बनाय बर सुरू कर देथे,ए गेंडी हर सूख्खा आउ लम्बा बांस ले बनाय जाथे, जेहर बांस के एक तिहाई भाग म फूट भर बांस के टुकड़ा ल नरियर डोरी म बांधे जाथे, फेर गेंडी ह तियार हो जाथे। एमा माटी के तेल आउ चूंदी ल भी डारे जाथे ताकि ओमा ले चर्र-चर्र के अवाज आए। आउ फिर लईका,जवान,बुढ़वा सब्बो मन गेंडी के आनन्द लेत रहिथे।कई एक ठऊर म गेंडी दौउड़ के भी आयोजन करे जाथे,जेहर अब्बड़ रोचक आउ कउतूहल भरे होथे।लोगन मन इही दिन नररियर फेंके वाला हार-जीत भी खेलथे। हरेली के दिन ग्रामीन मन आपन अन्नदाता सरूप बैईला मन ल नहुआ के उमन ल
रंग-रोगन करके अड़बड़ सजाथे।आउ उमन के अड़बड़ पूजा करथें। ताकि खेती-किसानी के कारज म सदा साथ मिलत राहय।
ये परकार ले कहे जा सकथे कि छतीसगढ के हरेली तिहार ह विसेस होथे।जेमा ईहां के पारम्परिक रीति-रिवाज, नेंग-बड़ाई, सांस्कृतिक
ईमान-धरम,आस्था- विश्वास ल मजबूत बनाथे।आउ संगे संग हरेली तिहार के पाछू म परियावरन संरक्षन के संदेश घलो ल दे थे
जेला हम छत्तीसगढ़ के गांव गंवाई में देखे जा सकथे।
०लेखक सम्पर्क –
०9827874578
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