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- ▶️ ‘ हिंदी साहित्य भारती ‘ व ‘ छत्तीसगढ़ और भाषा भारती मंच ‘ के संयुक्त तत्वावधान में गूगल मीट पर परिचर्चा.
▶️ ‘ हिंदी साहित्य भारती ‘ व ‘ छत्तीसगढ़ और भाषा भारती मंच ‘ के संयुक्त तत्वावधान में गूगल मीट पर परिचर्चा.
▶️ अतिथि –
•डॉ.रामनारायण पटेल
•डॉ.चंद्रशेखर शर्मा
•डॉ.दीपक त्रिपाठी
•डॉ.रंजन यादव
•डॉ.चितरंजन कर
•स्वागत उद्बोधन –
– डॉ. बलदाऊ राम साहू
•संचालन –
– डॉ. सुनीता मिश्रा
•सरस्वती वंदना –
– रमेश यादव
•विषय प्रवर्तन –
– डॉ. गिरजाशंकर गौतम
हिंदी साहित्य भारती, छत्तीसगढ़ और भाषा भारती मंच, छत्तीसगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर गूगल मीट पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसका विषय था ” स्वातंत्र्योत्तर भारत में हिंदी की भूमिका।” इस कार्यक्रम मे मुख्य अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ.रामनारायण पटेल थे। प्रमुख वक्ता डाॅ चंद्रशेखर शर्मा, प्राध्यापक , छत्रपति शिवाजी तकनीकी महाविद्यालय दुर्ग ,डाॅ दीपक त्रिपाठी सहायक प्राध्यापक, हिंदी-विभाग, रामकृष्ण महाविद्यालय,मधुबनी, बिहार और डॉ राजन यादव, प्राध्यापक, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डाॅ चित्तरंजन कर भाषाविद् द्वारा की गई। स्वागत उद्बोधन हिंंदी साहित्य भारती छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष श्री बल्दाऊ राम साहू ने और कार्यक्रम का संचालन महामंत्री डॉ .सुनीता मिश्रा ने किया ।
ध्येय गीत और सरस्वती वंदना से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। श्री रमेश यादव शिक्षक एवं लोक गायक ने सुमधुर वंदना की। विषय प्रवर्तन डाॅ गिरजा शंकर गौतम, सहायक प्राध्यापक, भाषा अध्ययन शाला पं. रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर ने किया। प्रथम वक्ता के रूप में डाॅ चंद्रशेखर शर्मा ने कहा कि “हिंदी दिवस के आसपास हिंंदी में चिंतन करने की एक लहर आती है। एक पखवाड़े तक लोग भाषा के प्रति सजग भी रहते हैं, पर उसके बाद भी सजगता आवश्यक है। उन्होंने कहा कि समाज को अपनी मानसिकता में बदलाव करने की आवश्यकता है। मधुबनी बिहार से जुड़े डाॅ दीपक त्रिपाठी कहा कि “हिंदी विश्व मंच पर अपनी उपस्थित दर्ज करा रही है लेकिन विकास की जो अपेक्षा की गई थी वह स्वंतत्रता के बाद भी पूरी नहीं हुई । इसके लिए एकजुटता की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि हम यह भी नहीं कह सकते कि हिंंदी का विकास नहीं हुआ है । वह विकास के नये प्रतिमान गढ़ रही है। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ के प्राध्यापक डाॅ राजन यादव ने कहा कि ” हिंदी अपने आसपास के क्षेत्रों में बोली जा रही बोलियों से समृध्द हुई है। लेकिन हिंदी संस्कृत के माध्यम से पुष्ट होती है। भाषा विभाजक नहीं होती, बल्कि एक दूसरे को जोड़ती है। उन्होंने पंजाबी ,लहंदा ,मराठी , मैथिली, बांग्ला का उदाहरण देकर ओजस्वी वक्तव्य देते हुए हिंदी की विविधता और व्यापककता पर अपने विचार रखे। मुख्य अतिथि डाॅ. रामनारायण पटेल प्राध्यापक दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा कि “जब किसी प्रांत के आदमी का भाव उद्वेलन अपनी भाषा में हो तो समझ जाना चाहिए कि समाज का विकास अवश्यंभावी है ।जन और जन संस्कृति के बीच भाषा सेतु का काम करती है। उन्होंने कहा कि अपनी एकता का कारण भी भाषा है। सांस्कृतिक एकता राजनैतिक एकता से बहुत प्राचीन है। भूमि, भाषा और संस्कृति की एक सूत्रता के लिए एक सर्वमान्य भाषा की आवश्यकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे भाषाविद् डाॅ चित्तरंजन कर ने अपने उद्बोधन में कहा कि “भाषा जनता के मनोभावों को संप्रेषित करती है। भाषा का सवाल संवैधानिक नहीं यह जन से जुड़ा हुआ है।” स्वागत उद्बोधन देते हुए अध्यक्ष बलदाऊ राम साहू जी ने हिंंदी साहित्य भारती के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा “माँ, माटी और मातृभाषा हम सब के लिए गौरव का विषय है। इसीलिए हमें इन तीनों के सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। हिंंदी के महत्व को बतलाते हुए उन्होंने कहा कि “भाषा से ही वैचारिक आदान-प्रदान होता है। अब हिंंदी का प्रयोग क्षेत्र बढ रहा है । ” महामंत्री संचालनकर्ता डॉ .सुनीता मिश्रा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि किसी भी राष्ट्र का सर्वांगीण विकास उसकी भाषा में ही होता है आज हम हिंंदी को बाजार के साथ साथ वैश्विक विपणन क्षेत्र, अंतरराष्ट्रीय संबंधों की भाषा और देश के युवाओं की भाषा के रूप में विकसित करें और विश्वभाषा के रूप में हिंदी को प्रतिष्ठित करें।अंत में धन्यवाद ज्ञापन और स्वस्ति वाचन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ ।
इस राष्ट्रीय तरंग संगोष्ठी में देश, अन्य प्रांत के हिंदी प्रेमियों के साथ छत्तीसगढ़ से उषा मिश्रा , सुनील ओझा, विजय मिश्रा,सीता राम साहू, जगदीश देशमुख, अखिलश मिश्र, शिवकुमार अंगारे सहित दिल्ली विश्वविद्यालय के विद्यार्थी बडी संख्या मे जुडे थे ।
[ •समाचार प्रेषित : डॉ. बलदाऊ राम साहू ]
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