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- ▪️ व्यंग्य : बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा ❗ – राजेंद्र शर्मा
▪️ व्यंग्य : बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा ❗ – राजेंद्र शर्मा
ये मोदी जी के विरोधी वाकई इतने ही नासमझ हैं या बाहर वालों की तरह ये भी मोदी जी के राज में भारत की तरक्की से जलते हैं? अब बताइए, वहां इतनी दूर पश्चिमी अफ्रीका के किसी कोने में, गांबिया नाम के एक नामालूम से देश में, मुश्किल से पांच-छ: दर्जन बच्चों की मेड इन इंडिया कफ सीरप पीकर मौत क्या हो गयी, भाई लोगों ने चिल्ला-चिल्लाकर ऐसे आसमान सिर पर उठा लिया है, कि पूछो ही मत। और बाहर वाले तो बाहर वाले, देश में विपक्ष वाले भी इसका शोर मचा रहे हैं कि दवा के नाम पर बच्चों को जहर कैसे पिला दिया? और भीतर वाले राष्ट्रविरोधी तो इस छोटी सी घटना का सहारा लेकर, दुनिया भर में मोदी जी के नये भारत का डंका बजवाने को ही झुठलाने की भी कोशिश कर रहे हैं। कह रहे हैं कि भूख, प्रैस की स्वतंत्रता, जनतंत्र वगैरह, वगैरह के विश्व सूचकांकों से लेकर कोविड मौतों की गिनती के घपले तक में, भारत की इज्जत को रसातल में पहुंचाने के डंके बजवाना क्या काफी नहीं था, जो मोदी जी भारत को दवा के नाम पर जहर बेचने वाले देशों में भी नंबर वन पर पहुंचाने पर तुले हैं! अगर यही दुनिया में डंका बजना है तो, अक्खा दुनिया में बदनाम होना क्या है?
बेशक, मोदी जी के विरोधी नाहक ही तिल का ताड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वर्ना इसमें बदनामी वाली ऐसी कोई खास बात है नहीं। दुनिया में सबसे बड़े पांच की गिनती में आने वाली बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में, ऐसी छोटी-छोटी दुर्घटनाएं तो होती ही रहती हैं। कुछ पांच-छ: दर्जन मौतें और वह भी बच्चों की। वह तो गांबिया में मोदी जी वाली डबल इंजन सरकार नहीं है और हमारे जैसा डेवलप्ड गोदी मीडिया भी नहीं है, वर्ना या तो बच्चों की मौतों के लिए मेडन फार्मा के कफ सिरप को छोडक़र, बाकी किसी को भी जिम्मेदार साबित कर दिया गया होता या बच्चों की मौतों को ही झूठा बता दिया गया होता या दुश्मनों का षडयंत्र। खैर, गांबिया इत्तू सा तो देश है, कुल चौैथाई करोड़ की आबादी का। सब के सब मिलकर कातिल-कातिल का शोर मचाएंगे, तब भी मोदी जी के बजवाए डंके के सामने नहीं टिक पाएंगे।
वैसे भी यह भारत को पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था नहीं बनने देने की साजिश भी तो हो सकती है। दोस्त अमरीकी न सही, दुश्मन चीनी-पाकिस्तानी तो ऐसा भारत विरोधी षडयंत्र कर ही सकते हैं। उन्हें पता है कि मोदी जी ऐसे ही गद्दी पर जमे रहे और भारत को ऐसे ही आत्मनिर्भर तथा दुनिया को भारत-निर्भर बनाते रहे, तो पांच ट्रिलियन ही नहीं, भारत का विश्व अर्थव्यस्थाओं में दूसरा नंबर भी कहीं गया नहीं है। पक्का ये भारत विरोधी षडयंत्र ही है। षडयंत्रकारियों ने सोचा होगा कि मोदी जी इकानमी को बचाएंगे और कफ सिरप बनाने वाली कंपनी के खिलाफ कुछ नहीं करेेंगे, तो दुनिया में दवा के नाम पर जहर बेचने की बदनामी होगी। और अगर कंपनी को हाथ लगाएंगे, तो आत्मनिर्भर वाले बिदक जाएंगे और इकानमी को और गहरे गड्ढे में धकेल आएंगे! फिर मोदी जी भी भूखों, बेरोजगारों को संभालने लिए मंदिर की डोज कहां तक बढ़ाएंगे? हो न हो यह देश के अंदर से मोदी विरोधियों और बाहर के भारत विरोधियों की, ज्वाइंट साजिश ही है, एक सौ तीस करोड़ भारतीयों के चुने हुए नेता को हटवाने की।
खैर! मोदी जी ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं। उन्होंने तय कर लिया है कि कफ सिरप बनाने वाले कंपनी का बाल भी बांका नहीं होने देेंगे, आत्मनिर्भर भारत की रफ्तार धीमी नहीं होने देंगे। बदनामी से क्या डरना — बदनाम होंगे, तो क्या नाम न होगा! रहे भारतीयों के वोट तो उसके लिए तो इतना ही बताना काफी है कि जहरवाली दवा, मोदी जी ने तो भारत में बिकने ही नहीं दी थी। थैंक यू मोदी जी जहरवाले कफ सिरप से अपने वोटरों के बच्चों को बचाने के लिए! वैसे पांच ट्रिलियन के लिए थोड़ा बहुत जहर तो नये इंडिया वाले भी खा ही सकते हैं। शिव-भक्ति में कब सिर्फ कांवड़ ही ढोएंगे, थोड़ा-बहुत नीलकंठ भी तो बनकर दिखाएं।
[ •राजेंद्र शर्मा ‘ लोकलहर ‘ के संपादक हैं ]
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