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▪️ ग़ज़ल : डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘ नवरंग ‘
2 years ago
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▪️ सबसे निराला सजन है मेरा
जग में सबसे निराला सजन है मेरा
टूट जाऊँ मैं टूटे ना बंधन मेरा
थोड़ा नटखट है थोड़ा सा चंचल भी है
देखकर उसको खिलता है यौवन मेरा
मेरी साँसों में रहता है वो हर घड़ी
हमसफ़र, रहनुमा, हमवतन है मेरा
मेरी दीवानगी का असर देखिए
रोज़ मुझको चिढ़ाता है दरपन मेरा
प्यार से देखता है वो जब भी मुझे
होने लगता है अक्सर मगन मन मेरा
उसकी ख़ातिर सँवरती हूँ मैं बारहा
रूप सौंदर्य है वो चमन है मेरा
चूड़ियां खनखनाती है हर बात पे
उसकी ख़ातिर निखरता है जोबन मेरा
पुतलियाँ नाचती हैं इधर से उधर
सोने देता नहीं मुझको कंगन मेरा
वो सलामत रहे है यही आरजू
नामपर उसके होता है वंदन मेरा
रखती हूँ मैं बचाकर सभी से उसे
ख़त्म ना हो कभी ऐसा धन है मेरा
मोह दौलत का दिल में रहा ही नहीं
वो ही माणिक मेरा वो ही कंचन मेरा
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