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रचना आसपास : डॉ. अंजना श्रीवास्तव [भिलाई छत्तीसगढ़]
▪️ नुमाइशी तहज़ीब
अक्सर मुझे महसूस होता है, कुछ लोग मुझसे कतरा रहे है।
कुछ लोग आंख चुरा रहे हैं, कुछ लोग रास्ता बदल ले रहे हैं।
तो कुछ लोग मुझसे दूर भाग रहे हैं, कुछ सामने हैं मगर खामोश-खामोश
मगर क्यों ? पता नहीं ? …..
सोचा आइना सच बोलता है, देखने की ही हिमाक़त कर बैठी।
अपनी शख्सियत पर गौर-फरमाने की गुस्ताखी कर बैठी।
आज के दौर में रिवाजे-दस्तूर करवटे बदल रहे हैं।
शायद गै़र-वाजिब पोशाक, नया अन्दाज, नया अक्स हो।
नुमाइशी तस्वीर गै़र-मुनासिब फलसफा तो नहीं कह रही।
नहीं फिर क्या ? फिर क्या है मुझमें? लोगों की नजरें बदलती क्यों है ?
सादगी, समझदारी, सच्चाई का मुखौटा मेरा उन्हें मन्जूर नहीं।
खुदगर्ज शातिर इरादे, चाटुकारिता मुझे मन्जूर नहीं।
जोड़ने-तोड़ने की रचनात्मक कला मेरी फितरत में नहीं।
वसूल अपने-अपने, रास्ते अलग-अलग, नसीहतें अपनी-अपनी।
मुझे सकूने-इल्म है, खतावार ही सही, मगर मायूस मैं नहीं।
जहां आहत हो आत्म-सम्मान, ऐसे नये रिवाज मेरी मंजिल नहीं।
नापाक इरादे इबादतगार हो नहीं सकते, उनके निगारे-आलम उनके
जिल्लत उठाना मेरा शौक नहीं, खुद परस्त दीवानापन मुझमें नहीं।
बात सिर्फ निगाहें-अन्दाज की है, तहजीब की मग़रुरी दुनिया मेरी आदत नहीं।
नुमाइशी तहजीब मेरी फितरत नहीं, शौक नहीं, अन्दाजे बया नहीं।
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•99819 23250
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